चारों ओर गहरा अंधकार पसरा था। इक्की-दुक्की मशाले, धुआं उगल रही थी। सरदार के आते ही कई मशालें जाग उठीं। बीच में पड़ी चट्टान पर एक अधेड़ व्यक्ति, सितारों जड़ी, खाकी वर्दी पहने खड़ा था। उसकी आंखों पर पट्टी बंधी थी। इशारा पाते ही पट्टी खोल दी गई। वह आंखें, मिचमिचाकर नीम अंधेरे में देखने का प्रयत्न करने लगा।
कौन हैं आप? हमें यहां क्यों लाया गया है?
एक-एक सवाल करो छोटे कप्तान। तुम, हमारे मेहमान हो।
एक पुलिस अफसर को, अगवा करने का अंजाम शायद तुम नहीं जानते?
हम सब जानते हैं छोटे कप्तान। पुलिस के साथ आंख मिचौली में ही तो अब हमारी जिन्दगी गुजर रही है।
लगता है हमने आपको कहीं देखा है?
जरूर देखा होगा, दो साल पहले थाना अमनपुर में जब ठाकुरों ने बेबात की बात पर, मेरे बाप के घर पर तलवार, तमंचों से लैस होकर हमला किया था और मां, बाप, भाई के आगे मेरी इज्जत लुटी थी। जब इस घटना की रिपोर्ट, तुम्हारे थाने में की गई, तब तुम्हारे सिपाहियों ने भी, वही सब कुछ ठीक ठाकुरों की तरह दुहराया। मेरी मां, इस सदमे से पागल हो गई। बाप ने जहर खा लिया और भाई को मुठभेड़ में मरवाकर तुम छोटे कप्तान बन गये।
तुम सरजू हो?
हां मैं सरजू हूं, डाकू सरजू, जिसका नाम सुनकर माही का पानी खौल जाता है। बीहड़ सुलग जाते हैं। चट्टान दरक जाती है।
तुमने सारे ठाकुरों से तो बदला ले लिया। अब, उनके वंश में पानी देने वाला तक कोई नहीं बचा है।
लेकिन एक बचा है।
कौन?
ठाकुर रुपनारायण।
यानि हम।
हां, छोटे कप्तान तुम। मेरे बाप, भाई, मां की भटकती आत्मा मुझे चैन नहीं लेने दे रही है। इज्जत, गंवाकर भी मैं बदला लेने के लिये जिन्दा हूं। देखो, सामने कौन है?
अरे, हमारी बेटी और बीबी को तुमने कहां से उठवा लिया?
ये भी, तुम्हारी तरह हमारी मेहमान हैं, छोटे कप्तान। अब, हमारी मेहमाननवाजी, तुम अपनी आंखों से देखोगे।
सरजू ने दृष्टि घुमाई। एक डाकू ने छोटे कप्तान और उसकी बीवी को पेड़ से बांध दिया। उनकी बेटी, वहीं खड़ी-खड़ी थर-थर काप रही थी।
जोधा, नारायण, अब मेहमाननवाजी शुरु की जाये।
दोनों डाकुओं ने यंत्रवत, आगे बढ़कर लड़की के शरीर से कपड़े उतारने शुरू कर दिये। वह कत्ल होती, बकरी की तरह बेटी की अस्मत की भीख मांगने लगे।
सरजू, तुम चाहे जितना पैसा ले लो, लेकिन हमारी बेटी को बेइज्जत मत करो।
छोटे कप्तान, इज्जत का मोल, अब भी रुपयों से आंकना चाहते हो?
सरजू, हमसे इतना भयानक बदला मत लो। हम मानते हैं कि हमने आंख मूंदकर ठाकुरों का साथ दिया। हम पर ठाकुर वीरेन्द्र सिंह विधायक और ठाकुर गजेन्द्र सिंह मंत्री का भी दबाव था। काश, तुम समझ सकती कि हम पुलिसवाले कितने जायज-नाजायज, दबावों के बीच काम करते हैं।
हां, छोटे कप्तान, माना कि हमारी इज्जत से, तुम्हारी ठकुराई ज्यादा बड़ी थी, लेकिन नकली मुठभेड़ में, भाई को मरवाकर तरक्की खरीदने में, कौन सी मजबूरी थी।
छोटे कप्तान खामोश हो गये। जोधा और नारायण ने लड़की के शरीर से कपड़े नोच फैंके थे और वे उसके मांसल शरीर से खेलने लगे थे। सहसा लड़की, जोधा की ओर झपटी लेकिन नारायण ने उसे बीच में ही पकड़कर धरती पर गिरा दिया। लड़की रोती रही, चीखती रही, मौत की भीख मांगती रही। छोटे कप्तान के भिचे होंठों से खून बहने लगा, और उनकी बीवी बेहोश हो गई।
सरजू ने छोटे कप्तान के बंधन खोल दिये और उनका गिरहबान पकड़कर जहर बुझे स्वर में बोली-
छोटे कप्तान, इज्जत सबकी एक होती है, चाहे वह दीनाराम केवट की बेटी सरजू हो, या ठाकुर रुपनारायण की बेटी। सेवा धर्म का आचरण ओढ़कर, अपने, छोटे-छोटे स्वार्थ के लिये अमीरों और सत्ताधीशों के इशारे पर नाचने वाले तुम जैसे लोगों ने ही नैतिकता को गहरे दफना दिया है। तुम्हीं जैसे लोग, अपराध और अपराधी के जन्मदाता हो। काश आज का सबक, तुम्हें और तुम्हारे आडंबरी समाज को सही रास्ते पर लाने में सफल होगा। अब तुम आजाद हो।
अपनी बीवी और बेटी के साथ जा सकते हो।
पलक झपकते ही, सरजू सहित सारा डाकू गिरोह अंधेरे में गुम हो गया। छोटे कप्तान अपनी बीवी और बेटी को होश में लाने का, प्रयत्न करने लगे।