नयी दिल्ली , वरिष्ठ गीतकार एवं लेखक जावेद अख्तर का कहना है कि उन्हें आज की नई पीढ़ी के अभिनेताओं के लिए रोमन लिपि में हिंदी संवाद लिखना पड़ता है क्योंकि ‘वे इसके अलावा कुछ और नहीं पढ़ सकते।’
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बृहस्पतिवार की शाम ‘हिंदी और उर्दू: सियामीज़ ट्विन्स’ सत्र का आयोजन किया गया। सीडी देशमुख सभागार में हुए इस समारोह में 79 वर्षीय शायर अख्तर ने कहा, “फिल्म उद्योग में हम नई पीढ़ी के अधिकतर कलाकारों के लिए रोमन (अंग्रेजी लिपि) में (हिंदी) संवाद लिखते हैं, क्योंकि वे इसके अलावा कुछ और नहीं पढ़ सकते।”
प्रोफेसर आलोक राय के साथ बातचीत में जावेद अख्तर ने कहा कि भाषा एक क्षेत्र की होती है और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
उन्होंने कहा ‘‘हिंदी और उर्दू का अलगाव स्वीकार किए करीब 200 बरस हो गए लेकिन वे हमेशा एक रही हैं। पूर्ववर्ती पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली कहते थे ‘हम मर जाएंगे लेकिन उर्दू नहीं पढ़ेंगे, हमें अन्य देश (बांग्लादेश) चाहिए। ये 10 करोड़ लोग कौन थे, क्या वे उर्दू बोलते थे?’’
जावेद अख्तर ने कहा ‘‘क्या पश्चिम एशिया में अरब उर्दू बोलते हैं ? उर्दू केवल भारतीय उपमहाद्वीप की भाषा है। इसका मजहब से कोई लेना-देना नहीं है। आप तमिलनाडु जा कर लोगों से कहिए कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है। फिर देखिये, क्या होता है?’’
उन्होंने हिंदुस्तानी शब्दों के एक शब्दकोश की जरूरत रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदी का इस्तेमाल किया बिना आप उर्दू नहीं बोल सकते। उन्होंने कहा कि एक फिल्म लेखक होने के नाते वह जानते हैं कि हिंदी या उर्दू के शब्द कब उपयोग करना है। ‘‘इसीलिए मैं हिंदुस्तानियों के लिए हिंदुस्तानी लिख रहा हूं। मैं उर्दू वालों और हिंदी वालों के लिए नहीं लिख रहा हूं, मैं हिंदुस्तानियों के लिए लिख रहा हूं। जिस दिन हिंदुस्तानियों की रुचि विकसित हो जाएगी, उस दिन भाषा अपने आप परिष्कृत हो जाएगी।’’
जावेद अख्तर ने प्याज का हवाला देते हुए कहा कि फिल्म उद्योग सहित संचार के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए, शुद्ध उर्दू या शुद्ध हिंदी की कोई अवधारणा नहीं है,
उन्होंने कहा, “आप एक प्याज लें और यह देखने के लिए उसकी परतें उतारना शुरू करें कि असली प्याज कहां है। प्याज छिलकों में ही छिपा होता है। इस तरह विभिन्न स्रोतों से शब्द भाषा में शामिल होते रहते हैं और भाषा समृद्ध होती जाती है।”