कुछ समय पूर्व शिक्षक समाज से जुड़ी दो घटनाएं हुई थीं, एक गुजरात से, दूसरी केरल से। गुजरात की घटना शर्मसार करती है तो केरल की गौरवान्वित।
केरल की घटना के मुताबिक इडुक्की में एक स्कूल में चोरी की घटना हुई। खेल प्रतियोगिताओं की पुरस्कार राशि किसी ने चुरा ली थी। उधर जब प्राचार्य को इस घटना का पता चला तो उन्होंने बड़े बच्चों को एक जगह इकट्ठा किया और बताया। फिर एक बेंत से स्वयं के ही शरीर पर प्रहार किया। सभी शिक्षक व छात्रा स्तब्ध रह गये कि यह क्या हुआ।
प्राचार्य मीनाक्षी कुट्टी अम्मा ने कहा कि दोषी छात्रा स्वयं सामने आकर अपना अपराध स्वीकार करने की हिम्मत दिखाये। कुछ ही देर में छात्रा ने सामने आकर अपनी चोरी करने की घटना स्वीकारी। यह घटना बहुत चर्चित रही। इस घटना पर प्राचार्य का बयान बहुत ही संतुलित व सार्थक आया, उनका कहना था-मेरे अधिकांश छात्रा भोले, निर्दोष, बेहद गरीबी वाली पृष्ठभूमि के हैं। उनकी परिस्थितियों ने उन्हें इस तरह के कृत्य के लिए उकसाया होगा। मेरा विश्वास है कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी।
दूसरी घटना उत्तरी गुजरात की है जहां पाटण में प्राथमिक शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय में शिक्षकों ने छात्राओं का यौन शोषण किया। ऐसी ही एक घटना दिल्ली की भी सामने आयी थी जिसमें शिक्षिका द्वारा छात्राओं से शारीरिक धंधा कराने की बात खुली थी। ऐसी घटनाएं शर्मसार करती हैं।
केरल की मीनाक्षी कुट्टी अम्मा सम्पूर्ण शिक्षा जगत व समाज के प्रति एक प्रेरक के रूप में सामने आयी हैं। उनके द्वारा की गयी कार्रवाई अनूठी है जिससे प्रेरणा लेकर सुधारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं।
गुजरात की घटना ने समाज का एक घिनौना चेहरा उजागर किया है। इस तरह के संबंध नम्बर बढ़ाने, प्रेक्टिकल में अच्छे मार्क्स दिलाने के नाम पर मजबूरन बनाये जाते हैं। एक बार के बाद यह सिलसिला चल पड़ता है। इसमें अभिभावकों की भी जिम्मेदारी कम नहीं है। हमारी बच्चियां स्कूल में कितना समय बिता रही हैं? कहां आती-जाती हैं? उन्हें इसका ध्यान रखना चाहिए। लड़कियों को मोबाइल आदि ऐसे दिला दिये जाते हैं मानो वे खिलौने हों। परिवार में बच्चों से वार्ता न करना उनकी गतिविधियों व स्कूल आदि के बारे में चर्चा न करना भी इसका एक कारण है।
ऐसा नहीं कि सभी लड़कियों के साथ ऐसा हो। ऐसी घटनाएं भावनात्मक रूप से कमजोर बच्चियों के साथ होने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। भावनात्मक रूप से मजबूत करने का सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है परिवार में संवाद। आपसी संवाद ही भावनात्मक सुरक्षा, मजबूती प्रदान करता है।
केरल वाली घटना में भी देखें तो छात्रा के द्वारा अपराध स्वीकारने में संवाद ने ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। प्राचार्य का छात्रों से भावनात्मक संवाद ही उन्हें प्रेरित कर गया अपराध स्वीकारने को।
यदि ऐसा ही संवाद परिवार में बच्चों के साथ हो तो सार्थक परिणाम ही होंगें। बातचीत जहां उनकी मानसिकता को उजागर करेगी, वहीं उन्हें भावनात्मक को मजबूती भी देगी। नैतिक बल प्रदान करेगी। उनके मन की ग्रन्थि को खोलेगी और फिर वे बेहिचक अपनी बात परिवार जनों के सामने रख सकेंगें।
अपने बच्चों के साथियों से भी संवादपूर्ण व्यवहार रखें। जब भी वे घर आये या कहीं मिलें, उनसे सौहार्दपूर्ण बातचीत करें। हम जो धन कमाने में व्यस्त हैं, जब वह धन हमें हमारे बच्चों से दूर कर रहा हो, बच्चों को मानसिक भावनात्मक रूप से कमजोर बना रहा हो तो हमारी व्यस्तता किस काम की? यदि स्वार्थी समाज में बच्चों को भटकने से बचाना है तो उन्हें भावनात्मक मजबूती प्रदान कीजिए।