तोड़ना सरल, जोड़ना कठिन है

71mxE7rSyAL._AC_UF1000,1000_QL80_

भगवान बुद्ध एक बार, निर्जन वन को पार करके कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी भेंट अंगुलिमाल डाकू से हुई जो सदैव निर्दोषों का वध करके उनकी उंगलियों की माला अपने गले में धारण कर लिया करता था। आज सामने बुद्ध को देखकर उसकी बांछें खिल उठीं और वह बोला-आप ही मेरे आज के शिकार होंगे और अपनी पैनी तलवार म्यान से निकाली।
तथागत मुस्कुराये, उन्होंने कहा-‘वत्स’ तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा परंतु यदि दो क्षण का विलम्ब सहन कर सको तो मेरी एक बात सुन लो। डाकू ठिठक गया। बुद्ध ने कहा-सामने वाले पेड़ से एक पत्ता तोड़कर जमीन पर रख दो। डाकू ने वैसा ही कर दिया। उन्होंने फिर कहा-अब इसे पुनः पेड़ में जोड़ दो।


डाकू ने कहा-यह कैसे सम्भव है?
तोड़ना सरल है पर उसे पुनः जोड़ा नहीं जा सकता-बुद्ध ने गम्भीर होकर कहा – ‘वत्स’, इस संसार में मार-काट, तोड़-फोड़, उपद्रव और विनाश यह सभी सरल है। इन्हें तुच्छ व्यक्ति भी कर सकता है। फिर तुम इसमें अपनी क्या विशेषता सोचते हो? बड़प्पन की बात निर्माण है, विनाश नहीं। तुम विनाश के तुच्छ आचरण को छोड़कर निर्माण का महान कार्य क्यों नहीं अपनाते?


ये शब्द अंगुलिमाल को तीर की तरह बेध गये। बुद्ध की करूणा व सत्परामर्श ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी।