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त्योहार तो हमारे लिए खुशियों का अवसर लेकर आता है, सामाजिक समरसता बढ़ाने की उम्मीद जगाता है और हम जो करते हैं वह खुद के साथ सबके लिए नुकसान ही होता है। दीपावली में वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी काफी हद तक बढ़ा, इस बात में दो राय नहीं। ऐसी भी खबरें आईं कि दिवाली और उसके तुरंत बाद देशभर के विभिन्न अस्पतालों और निजी डाक्टर के पास आने वाले मरीजों में दमा, खांसी, इंफेक्शन, आंखों में जलन इत्यादि के मरीजों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई।
इस संबंध में कई कुतर्क करने वाले लोग सोशल मीडिया पर यह संदेश फैलाते दिखे कि अगर बकरीद पर बकरे काटे जा सकते हैं, क्रिसमस के दिन पटाखे फोड़े जा सकते हैं और दूसरे त्यौहारों पर दूसरे कार्य किए जा सकते हैं तो सिर्फ दीपावली पर हम पटाखों पर नियंत्राण क्यों करें? क्या अजीब तर्क है? इतना ही नहीं, पटाखों के समर्थन में यह संदेश भी फैलाया गया कि ओलंपिक या कामनवेल्थ गेम के उद्घाटन में जब पटाखें छोड़े जाते हैं तो दीपावली में हम क्यों न छोडे़ं? समझा जा सकता है कि ऐसे लोग अपनी बुद्धि को किसी अलमारी में बंद किए बैठे हैं। किसी भी समुदाय का कोई भी त्यौहार हो, या कोई भी ऐसा अवसर हो, उसे मनाने के नाम पर समाज और पर्यावरण विरोधी कार्य नहीं किए जाने चाहिए किंतु इस आधार पर हम किसी कुतर्क का समर्थन नहीं कर सकते।
वैसे भी अन्य अवसरों पर जो पटाखे चलाए जाते हैं वह 10 मिनट 20 मिनट या आधे घंटे तक सीमित मात्रा में चलाये गए पटाखे होते हैं किंतु दीपावली पर 1 दिन 2 दिन पहले से लेकर दीपावली के एक या दो दिन बाद तक जिस तरह से अनवरत् पटाखे चलाये जाते हैं, वह जल्द ही हमारे देश में स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर देगें जिसे नियंत्राण करना लगभग असंभव होगा। हमें यह भी समझना चाहिए कि लगभग एक दशक पहले तक ज्यादा घातक, तेज आवाज करने वाले और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे नहीं थे तो लोगों के पास पैसे भी कम मात्रा में थे।
तब प्रदूषण शायद पता नहीं चलता था किंतु अब तो हद हो गई है। ऐसे-ऐसे पटाखों की पेटी आ रही है कि एक बार उसे आग लगाकर छोड़ दो तो वह आधे घंटे तक आटोमेटिक बजते रहते हैं। कई-कई मीटर के चटाई बम आ रहे हैं, जो कई मिनटों तक जलते हैं और भयानक रूप से प्रदूषण फैलाते हैं। इसी तरह रोशनी फैलाने वाले अनार-पटाखे तो इस कदर धुंआ देते हैं कि उतना धुंआ बिजली बनाने वाली फैक्ट्री भी न छोड़े। देखा जाए तो पहले से ही औद्योगिक विकास, वाहनों की बेतहाशा संख्या और प्रदूषण को लेकर नागरिकों में जागरूकता की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहा हमारा देश प्रत्येक वर्ष लगभग 6 लाख लोगों की मौत का कारण बनता है। ये मौतें सिर्फ वायु प्रदूषण के कारण ही हो जाती हैं।
सवाल उठता है कि दिवाली के बहाने शुरु हुई इस प्रदूषण-चर्चा का हल आखिर क्या है? अगर अनुभव से बात करें तो दिल्ली जैसे महानगरों में प्राइवेट गाडि़यों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाना एक स्थाई विकल्प दिखता है किन्तु एनजीटी और सभी संबंधित अथारिटीज की सहमति के बावजूद 10 साल पुरानी डीजल गाडि़यां तक सड़कों से नहीं हट पाई हैं तो सभी प्राइवेट गाडि़यों की बात दिवास्वप्न ही है। वैसे भी प्राइवेट गाडि़यों को पूरी तरह सड़कों से हटाना कई लोगों को व्यावहारिक निर्णय नहीं लग सकता है पर आप इस बात को यूं समझ सकते हैं कि इसके अतिरिक्त हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा है!
अगर दिल्ली जैसे शहरों में रह रहे करोड़ों लोगों को बीमारियों से बचाना है तो हमें इस तरह के सख्त कदम उठाने की ही आवश्यकता है। हाँ, इस बीच इससे उत्पन्न होने वाली अन्य समस्याओं के निराकरण के लिए हमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट और शेयरिंग टैक्सी माडल को पूरी तरह से प्रमोट और व्यवस्थित जरूर करना होगा जिससे यातायात और आवागमन की समस्याएं बाधित ना हों।
ध्यान रहे अगर प्राइवेट गाडि़यों पर दिल्ली जैसे महानगरों में पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है तो आने वाले कुछ सालों में प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों की संख्या भयानक रुप से बढ़ेगी और तब हमारे पास किसी आड-ईवन फार्मूले के लिए कोई जगह नहीं होगी। दिल्ली में हालाँकि दो बार आड-ईवन फार्मूला अप्लाई करने की कोशिश की गई पर उसका कितना असर हुआ, यह बात हम सब जानते हैं। बस पंफलेट बैनर छपवा कर वाहवाही ले ली गयी और दिल्ली हो गई प्रदूषण मुक्त।
उस अवसर से जो चर्चा उत्पन्न हुई थी, उस चर्चा को केजरीवाल सरकार ने पीछे छोड़ दिया और प्रदूषण दूर करने का जो उदाहरण वह समूचे देश के सामने प्रदर्शित कर सकती थी, उस से वंचित रह गई पर सवाल वही है कि केजरीवाल को देश भर की राजनीति करने से फुरसत मिले, तब तो वह दिल्ली पर ध्यान दें। समझ नहीं आता कि उन्हें जनता ने दिल्ली को दुरुस्त करने के लिए चुना था या राष्ट्रीय राजनीति करने के लिए? देश में उनसे काफी पुराने और सक्रिय सीएम हैं, जिन्हें अपने राज्य की व्यवस्था से शायद ही फुरसत मिलती हों और केजरीवाल महोदय के पास फुरसत ही फुरसत है।
खैर, प्राइवेट गाडि़यों से प्रदूषण के अतिरिक्त औद्योगीकरण के संबंध में सरकार परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा दे ही रही है जिससे कोयले इत्यादि से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण पर आने वाले वर्षों में लगाम लग सकेगी। जहां तक बात दीपावली की है तो निश्चित रुप से इस अवसर पर होने वाली आतिशबाजी को नियंत्रित करना पड़ेगा अन्यथा जो प्रदूषण पूरे महीने भर में हजारों-लाखों गाडि़यां करती हैं, वह कुछ बुद्धिहीन लोग इस अवसर पर भयानक मात्रा में पटाखे चलाकर एक आध दिन में ही कर डालते हैं।
नागरिकों के स्तर पर भी यहां-वहां कूड़े इकट्ठे कर हम जला देते हैं जिससे प्रदूषण होता है। ऐसे में कूड़े के निस्तारण का ठोस उपाय भी किया जाना चाहिए। तो आइए, दिवाली के बाद उत्पन्न हुई इस प्रदूषण नियंत्राण चर्चा को हम एक हल पर पहुंचाएं और निश्चित करें कि देश में प्रदूषण की मात्रा को हर हाल में कम करेंगे। इसके लिए हमें प्राइवेट गाडि़यों को स्वेच्छा से छोड़कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करना पड़े अथवा फसलों को जलाना न पड़े, वह सभी उपाय अवश्य करेंगे। इसके साथ कुछ सामान्य उपाय भी आजमाये जा सकते हैं जैसे ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए घर में टीवी, संगीत इत्यादि की आवाज कम रखना, अनावश्यक हार्न नहीं बजाना, लाउडस्पीकर का कम प्रयोग करना इत्यादि उपाय शामिल हो सकते हैं तो जल-प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या बन चुका है।
इससे बचने के लिए नालों, तालाबों और नदियों में गंदगी न करना और पानी बर्बाद न करना शामिल हो सकता है तो रासायनिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए जैविक खाद का अधिकाधिक प्रयोग, प्लास्टिक की जगह कागज, पालिस्टर की जगह सूती कपड़े या जूट आदि का इस्तेमाल करना और प्लास्टिक की थैलियां कम से कम प्रयोग करना शामिल हों सकता है। इसके साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना हमारे लिए अमृत हो सकता है ताकि धरती की हरियाली बनी रहे और फैल रहे प्रदूषण को कम करने में सहायता मिल सके।
उम्मीद की जानी चाहिए कि हर बार की तरह मुद्दा उठाकर हम भूल नहीं जाएँ और सरकार के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी यथासंभव उपायों को आजमाएं ताकि हम और हमारी आने वाली पीढि़यां प्रदूषण-रहित धरती पर अपनी स्वस्थ जीवनशैली विकसित कर सकें।