देहरादून, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि देश में एक छोटा वर्ग है जिसके मन में भारत की पांच हजार साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत के प्रति कोई सम्मान नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति पर गर्व करने वालों को ऐसी ताकतों का प्रतिकार करना चाहिए।
हरिद्वारा के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा, ‘‘ यह चिंता का विषय है कि देश में एक वर्ग है जिसके मन में भारत की पांच हजार साल पुरानी संस्कृति या इसके गौरवशाली अतीत के प्रति कोई सम्मान नहीं है, लेकिन यह वर्ग बहुत छोटा है। उनके मन में तिरस्कार का भाव है और वे देश की छवि खराब कर रहे हैं। वे या तो भ्रमित हैं या गुमराह हैं। ऐसे लोग उन लोगों द्वारा प्रतिकार के पात्र हैं जो अपनी संस्कृति और जड़ों पर गर्व करते हैं।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस ‘महान देश’ में कुछ गुमराह लोग हैं जो हाल के वर्षों में हुई प्रगति को पचा नहीं पा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ वे मातृ भाषा में समावेशी शिक्षा नीति के खिलाफ हैं। वह दिन दूर नहीं जब भारत में सारी शिक्षा मातृभाषा में दी जायेगी।’’
उपराष्ट्रपति ने गुरुकुल कांगड़ी (मानित) विश्वविद्यालय को भारतीय राष्ट्रवाद का केंद्र और इसके सांस्कृतिक लोकाचार के सार का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि कुछ पश्चिमी विश्वविद्यालय भारत की विकास यात्रा को धूमिल करने में लगे हुए हैं। उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय से इसका मुकाबला करने को आह्वान किया।
धनखड़ ने कहा, ‘‘ आपके पास वह विद्वता और पांडित्य है जो इस कुत्सित अभियान का मुकाबला कर सकता है।’’ उन्होंने कहा कि अगर भारत को फिर से ‘विश्वगुरु’ का दर्जा हासिल करना है तो उसे वेदों की ओर लौटना होगा।
उन्होंने कहा कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की सांस्कृतिक जड़ों पर गर्व करने पर आधारित है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस देश की पहचान और मूल पांच हजार साल पुरानी संस्कृति को दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान खूबसूरती से प्रदर्शित किया गया और पूरी दुनिया ने उत्सुकता के साथ इसकी झलक देखी और तारीफ की।
उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन संस्कृति के प्रतीक कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र और नटराज की मूर्ति की शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली में एकत्र विश्व नेताओं ने सराहना की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत धीरे-धीरे अपनी औपनिवेशिक मानसिकता की बेड़ियों’को तोड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए संसद द्वारा पारित तीन नए कानून इस बदलती मानसिकता को प्रतिबिंबित करते हैं।