हैदराबाद, तेलंगाना में कई एग्जिट पोल सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पर कांग्रेस की बढ़त का संकेत दिखा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत इन रुझानों से कितना मेल खाती है, इस पर रविवार को मतगणना के बाद फैसला होगा।
तेलंगाना में 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए 30 नवंबर को मतदान हुआ था।
रविवार शाम तक यह स्पष्ट हो जाएगा कि मतदाताओं ने आखिर अगले पांच वर्षों के लिए मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव नीत शासन को लगातार तीसरी बार मौका दिया है या फिर कांग्रेस की ‘छह गारंटियों’ ने अपना जादू दिखाया है या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पिछड़े वर्ग के नेता को मुख्यमंत्री बनाने का दांव सही बैठता है। इन सबसे अलग राज्य में खंडित जनादेश के आसार की भी संभावना है।
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में 2,290 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें बीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव, उनके बेटे और सरकार में मंत्री के. टी. रामा राव, तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ए. रेवनाथ रेड्डी और भाजपा के लोकसभा सदस्य बंदी संजय कुमार, डी. अरविंद और सोयम बापू राव शामिल हैं।
बीआरएस ने राज्य की सभी 119 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं जबकि चुनाव पूर्व समझौते के तहत भाजपा और जनसेना ने क्रमश: 111 और 8 सीट पर चुनाव लड़ा है। वहीं, कांग्रेस ने अपनी सहयोगी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को एक सीट दी। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम नौ विधानसभा सीट पर चुनाव मैदान में थी।
केसीआर (चंद्रशेखर राव) दो विधानसभा क्षेत्रों-गजवेल व कामारेड्डी से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि रेवंत रेड्डी-कोडंगल और कामारेड्डी से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने अपने विधायक एटाला राजेंदर को हुजूराबाद के अलावा गजवेल से भी मैदान में उतारा, जहां से वह मौजूदा विधायक भी हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कई सभाओं को संबोधित करने के अलावा भारी धूमधाम के बीच हैदराबाद में एक रोड शो भी किया जबकि केसीआर ने अपने जोरदार प्रचार अभियान के दौरान 96 रैलियों को संबोधित किया।
बीआरएस का प्रचार अभियान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की विफलताओं और किसानों व महिलाओं के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं पर केंद्रित रहा। राव ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने में अपने संघर्ष की बात को भी जोर-शोर से उठाया।
वहीं, कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान के दौरान बीआरएस सरकार के कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और अपनी ‘छह गारंटी’ तथा शासन में ‘बदलाव’ की आवश्यकता पर जोर दिया।
भाजपा ने अपने प्रचार अभियान के दौरान ‘डबल इंजन सरकार’, केसीआर के ‘परिवारवाद’ और कथित भ्रष्टाचार के मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरा और राज्य में सरकार बनने पर पिछड़ी जाति के नेता को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया।
तेलंगाना में 30 नवंबर को हुए चुनाव में कुल 3.26 करोड़ मतदाताओं में से 71.34 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ।