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तंत्राशास्त्रा में तरह-तरह की सिद्धियों में उल्लू का एक विशेष महत्त्व है। लोग उल्लू को गाली देने के लिए भी प्रयुक्त करते हैं लेकिन इसके बावजूद उल्लू अपने आप में एक विशेष महत्त्व रखता है।
उल्लू का शरीर विशिष्ट रचनाओं से मिलकर बना हुआ है। इसके शरीर का तापमान वातावरण के अनुसार घटता बढ़ता नहीं है, हमेशा एक सा रहता है। तापमान स्थिर रहने का प्रमुख कारण इसके कुचालक पंख हैं। उल्लू अनेक प्रकार के होते हैं
जंगली कौओं की तरह दिखने वाले करेल
बिलकुल जंगली कौओं जैसे दिखने वाले ये उल्लू जंगल में ही निवास करते हैं। इनके ऊपरी पंखों का रंग हरा, पीला और धूसर होता है। पंखों के ऊपर काली, सफेद चित्तियां भी पाई जाती हैं। नीचे के पंख सफेद या पीले होते हैं। सिर बड़ा एवं गोल होता है। इस प्रजाति के नर एवं मादा एक जैसे दिखाई देते हैं।
करेल जाति के ही एक दूसरे प्रकार के उल्लू भी होते हैं जो खंडहरों व सुनसान स्थानों पर निवास करते हैं। ये मनुष्य के रहने के स्थानों से अधिक दूर नहीं रहते। ये पूर्णतः रात्रिचर होते हैं। ये चूहों का शिकार करते हैं। इनके अंडे सफेद होते हैं। नवाजात बच्चे की देखभाल नर तथा मादा दोनों करते हैं। घोंसला बनाने का कार्य मादा अकेली करती हैं।
कलगी वाले विशेष उल्लू
इन्हें सामान्य बोलचाल की भाषा में घुग्घू कहते हैं। इसके शरीर का ऊपरी रंग हल्का पीला तथा निचला गहरा पीला होता है। इनकी विशेष पहचान कलगी हैं। कलगी सिर पर दिखाई देती है, जो पंखों की होती है। आंखों का रंग सुनहरा होता है। ये नदी किनारे स्थित वृक्षों पर निवास करते हैं। इनकी आवाज सुबह, शाम या मध्य रात्रि में सुनाई देती है। भारत के अलावा ये यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, पाकिस्तान, बंगलादेश, बर्मा आदि देशों में पाये जाते हैं।
श्रृंगयुक्त उल्लू
ये कलगीविहीन उल्लू हैं। इन्हें मरचिरैया के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इन्हें मौत का पूर्वाभास हो जाता है। जब कहीं कोई आदमी मरने वाला होता है तब ये उसके घर के आसपास वृक्षों पर डरावनी आवाज निकालते हैं। ये संसार के सभी भागों में पाये जाते हैं। ये अंडे घोंसलों में न देकर चट्टानों की दरार में रखते हैं।
काली धारियों तथा चित्तियों से युक्त थर्कावी चुगद
यह सफेद रंग का उल्लू है। इसके शरीर पर काली धारियां और चित्तियां होती हैं। यह प्रजाति बहुत कम दिखाई देती है लेकिन इनकी आवाज रात भर सुनाई देती है। इनके नर एवं मादा एक जैसे दिखाई देते हैं। इसे हिंदी भाषा में ’थर्कावी चुगद‘ कहते हैं। ये चहचहाहट या खिलखिलाने जैसी ध्वनि उत्पन्न करते हैं। रात्रि में प्रकाश दिखाने पर इनकी आंखें लाल रत्न की तरह चमकती हुई दिखाई देती हैं।
ये बस्तियों के काफी नजदीक रहते हैं। दिन के समय ये पेड़ों के कोटर में आराम करते हैं। रात्रि में ये सक्रिय हो जाते हैं। ये अपने अंडे वृक्षों के कोटर या दीवार की दरारों में देते हैं।
इस उल्लू की एक जंगली किस्म भी होती है। ये दिन के समय भी सक्रिय रहते हैं जो एक विशिष्ट लक्षण है। बांस तथा टीक के वृक्ष पर ये निवास करते हैं। इनकी आवाज संगीत की तरह होती हैं। ये काआें-काओं की ध्वनि करते हैं।