नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले के खिलाफ दायर उपचारात्मक याचिका पर 24 जनवरी को विचार करेगा जिसमें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले राज्य के कानून को रद्द कर दिया गया था।
उपचारात्मक याचिका शीर्ष अदालत में अंतिम कानूनी सहारा है और आम तौर पर इस पर कक्ष में विचार किया जाता है जब तक कि फैसले पर पुनर्विचार के लिए प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है।
शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पांच मई, 2021 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मराठा समुदाय को आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया था।
शीर्ष अदालत ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा तय करने वाले अपने 29 साल पुराने मंडल फैसले पर फिर से विचार करने के लिए एक बड़ी पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था। न्यायालय ने राज्य में दाखिले और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि यह समानता के अधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
बाद में, इस साल 11 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने 2021 के अपने फैसले की समीक्षा के अनुरोध वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इसमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर याचिका भी थी।
राज्य द्वारा दायर उपचारात्मक याचिका पर छह दिसंबर को प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की थी। छह दिसंबर के आदेश में कहा गया कि उपचारात्मक याचिकाओं पर 24 जनवरी 2024 को सुनवाई की जाएगी।
मई 2021 में, संविधान पीठ ने मराठा समुदाय के लिए कोटा रद्द करने का फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को पार करके मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के लिए कोई ‘‘असाधारण परिस्थितियां’ नहीं बनी हैं।