12 नवम्बर 2023 को जब देश भर मे कार्तिक मास की आमवस्या की रात के अंधेरों पर दीपावली का प्रकाश हावी हो, अपना प्रकाश चारों ओर फैला रहा था, तभी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले मे स्थित यमुनोत्री राष्ट्रीय राज मार्ग पर सिल्कयारा सुरंग मे कार्यरत 41 श्रमिक मौत के भयावह अंधेरे से जूझ रहे थे। अचानक आयी इस विपदा की खबर ने न केवल इन श्रमिकों अपितु इनके परिवारों जनों के जीवन को भी संकट के स्याह बादलों ने घेर लिया और देश के सामान्य जनों मे एक चिंता एवं दुःख की लहर फ़ेल गयी। एक साथ इतने लोगो के जीवन का संकट होने से शासन प्रशासन सहित दिल्ली की केंद्रीय सरकार को सकते मे ला दिया। आनन फानन मे इन मजदूरों को बचाने के प्रयास शुरू तो हुए लेकिन प्राकृतिक आपदा की तीव्रता गहन थी, शुरू किये गए प्रयासों मे एक के बाद एक बधाएं आने लगी, इसके बावजूद प्रधानमंत्री कार्यालय के नेतृत्व मे सुरंग मे फंसे मजदूरों को बचाने हेतु देश और दुनियाँ से हर मुमकिन तकनीकि, और उपकरणों की निर्वाध उपलब्धि सुनिश्चित की गयी।
देश और विदेश के कोने कोने से भूगर्भ वैज्ञानिकों और आपदा विशेषज्ञों को घटना स्थल ला कर उनको भी संकट के समाधान हेतु हर संभव साधन उपलब्ध कराये गए। इस अभियान मे प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा अभियान मे लगी एजेंसियों के बीच आपसी सूझ-बूझ और समन्वय काबिले तारीफ था। बचाव और राहत कार्य मे इस तरह के कार्यों मे निपुण भारतीय थल सेना, वायु सेना सहित एनडीआरएफ़, एसडीआरएफ़, बीआरओ, आरवीएनएल, एसजेवीएनएल, ओएनजीसी, आईटीबीपी, एनएचएआईडीसीएल, टीएचडीसी सहित राज्य सरकार के अनेकों अधिकारियों और कर्मचारियों की महत्ती भूमिका रही।
जिस संकट का समाधान हल करने के प्रयास हेतु 900 मिमी॰ (2 फुट 11.43 इंच) पाइपों के माध्यम से सिल्कयारा सुरंग की 41 पीड़ितों तक पहुँचने के प्रयास मशीनों के माध्यम से जहां असफल हो गए, वहाँ भारतीय सेना की इंजीन्यरिंग रेजीमेंट और मद्रास इंजीन्यरिंग ग्रुप के जवानों का सराहनीय सहयोग भी प्रशंसनीय रहा।
इस विचार को धरातल पर देखने के लिए, जब आप जमीन पर 2 फुट 7.5 इंच के गोल घेरे मे बैठ कर देखें और कल्पना करें कैसे समाज के साधारण स्तर के चंद व्यक्तियों ने अपनी जान जोखिम मे डाल, 800 मिमी चौड़े गोल पाइप मे घुटनों के बल रेंगते हुए 70-80 मीटर अंदर जाकर पुनः 14-15 मीटर, आगे और खुदाई करते हुए 17 दिनों से सुरंग मे फंसे 41 श्रमिकों तक पहुँचे होंगे? कल्पना मात्र से ही एक अदृश्य भय और मौत के डर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं, तब इन बहादुर “रैट माइनर” अर्थात जो चूहों की तरह पहाड़ को खोद कर सुरंग बनाने मे माहिर जवानों ने कितने धैर्य और साहस से, कैसे इस कठिन, दुरूह और श्रमसाध्य कार्य को अंजाम दिया होगा जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी। सिल्कयारा सुरंग खोदने के दौरान हिमालय श्रंखला के पहाड़ दरकने के कारण इन 41 मजदूरों के जीवन मे आये मौत के संकट से न केवल केंद्रीय सरकार के अनेकों विभागों और कार्यालयों के बीच समन्वय की भी प्रशंसा की जानी चाहिए कि इस बचाव कार्य मे लाल फीताशाही आड़े नहीं आयी जिसके परिणामस्वरूप इन पीढ़ित मजदूरों उनके परिवार जनों के साथ सारे देश के लिए एक सुखद संदेश ले कर आये।
जहां एक ओर विभिन्न विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रत्यक्ष और परोक्ष सहयोग, बधाई और सम्मान का पात्र हैं, वहीं सुरंग मे फंसे उन 41 श्रमिकों के धैर्य, साहस और बहदुरी की भी सराहना करनी पड़ेगी जिन्होने 17 दिनों के 24सों घंटे मौत के तांडव को अपनी आँखों के सामने घटते देखा होगा। शुरू के दिनों मे जब इन मजदूरों का संपर्क शेष दुनियाँ से कटा रहा, खाने के भोजन और पीने के पानी का अभाव, अपनों की यादों के बीच वेबस और असहाय!! अपने दुर्भाग्य पर अफसोस और उदासी ने इन्हे एक पल के भी लिए चैन से सोने नहीं दिया होगा? एक झपट्टे से यम के दूतों द्वारा जीवन का हरण और तिल तिल कर मरने का अहसास, दोनों ही मृत्यु के एक रूप अवश्य हैं पर दोनों के खौफ, रौद्र रूप और भयावहता, मे जमीन आसमान का अंतर हैं, जिसे इन 41 श्रमिकों ने जीते जी सिकल्यारा सुरंग के अंदर 17 दिन तक जिया, महसूस किया और साक्षात देखा भी!! नमन है इन श्रमवीरों की बहादुरी और साहस को। सुरंग मे फंसे इन श्रमिकों ने बाद मे बताया कि कैसे वे अपने को स्वस्थ रखने के लिए, सुरंग के अंदर पैदल चल कर चहल-कदमी करते थे और योगा की मदद से अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को मजबूत करते हुए एक दूसरे की मदद कर हौसला अफजाई करते थे। संकट के इन 17 दिनों मे एक सीमित अंधेरे स्थान मे इन श्रमवीरों के हौसले, हिम्मत और पराक्रम की महज कल्पना ही की जा सकती है।
नये और विकसित भारत के इतिहास मे 28 नवम्बर 2023 का दिन स्वर्ण अक्षरों लिखा जायेगा जब राष्ट्रीय आपदा राहत अभिकरण के नेतृत्व मे उत्तराखंड के सिल्कयारा सुरंग मे 17 दिन से फंसे 41 श्रमिकों को तमाम बाधाओं, अबरोधों और चुनौती पूर्ण विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सफलता पूर्वक निकाल लिया गया। हमे इस बात की प्रसंशा करनी ही पड़ेगी कि मोदी सरकार ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया कि देश या विदेश मे आपदा या संकट के समय मे देशवासियों को बचाने या राहत पहुँचाने मे सरकार कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेगी।
देश की उन्नति, विकास और उत्थान के लिए जहां पहाड़ों को चीर कर सड़क राजमार्ग और रेल पथ का निर्माण लगातार किया जाता रहेगा और इन निर्माण कार्यों के फलस्वरूप रास्ते मे आपदाएँ और विपदाएं भी साथ साथ आएंगी और इन चुनौतियों का सामना करने के राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल जैसे संगठन देश के लिए सदा तत्पर खड़े रहेंगे पर एक बात निश्चित है कि उत्तराखंड की सिल्कयारा सुरंग के निर्माण मे सुरक्षा मापदंडों की अनदेखी की गयी। इतनी बड़ी और विशाल सुरंग मे राजमार्ग बनाने का कार्य निश्चित ही खतरनाक और जोखिम भरा हैं। एक आम आदमी की सोच के तरह मेरा मानना हैं कि सुरंग निर्माण मे कार्यरत श्रमिकों, इंजीनियरों और अन्य कार्यरत व्यक्तियों की सुरक्षा का मुद्दा सर्वोपरि होना ही चाहिये था और किसी भी प्रकृतिक आपदा के समय मुख्य रास्ते के साथ आकस्मिक वैकल्पिक मार्ग को होना इस सुरंग मे सुनिश्चित नहीं किया गया जो एक बड़ी भारी चूक थी। ऐसे कार्यों मे किसी अनिष्ट और आपदा की आशंका हमेशा बनी रहती हैं, तो क्यों नहीं व्यक्ति या व्यक्तियों के समूहों के लिए कुछ निश्चित दूरी पर सुरक्षित भोजन पानी के भंडार और वैकल्पिक मार्ग के लिए कुछ मानदंड निश्चित नहीं किए जाने चाहिये थे? सुरंग निर्माण के वैकल्पिक मार्ग के रूप मे क्यों नहीं हजार-बारह सौ मिमी के पाइप को भी साथ साथ बिछाना सुनिश्चित किया गया। विशेषज्ञों द्वरा निश्चित ही सुरंग निर्माण कार्य शुरू करने के पूर्व विस्तृत दिशा निर्देश दिये गए होंगे जिनकी अवेहलना इस सुरंग निर्माण मे की गयी? अब आवश्यकता इस बात के हैं कि भविष्य मे होने वाले निर्माण मे सुरक्षा मानदंडों का अनुपालन शक्ति से लागू किया जाय ताकि इस तरह मानव जीवन को संकट मे डालने वाली घटनाएँ दुबारा न हों।