नयी दिल्ली, सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) योजना के तहत न तो पैसे की कमी है न कार्ययोजना की, बल्कि नियमानुसार काम न मिलने की स्थिति में राज्य सरकारों को संबंधित अधिकारियों से ‘पूछना’ चाहिए।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने सदन में प्रश्नकाल के दौरान बेरोजगारी भत्ता से संबंधित एक पूरक प्रश्न के उत्तर में यह बात कही।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने केरल में मनरेगा श्रमिकों को पर्याप्त काम नहीं मिलने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि मनरेगा कानून की धारा 7.1 के तहत आवेदन करने के 15 दिन भीतर यदि राज्य सरकार काम उपलब्ध नहीं कराती है तो आवेदक को प्रतिदिन बेरोजगारी भत्ता दिये जाने का प्रावधान है, लेकिन उनके राज्य केरल में ऐसा नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे राज्य में मनरेगा के तहत काम मांगने वाले श्रमिकों की संख्या उपलब्ध काम के लिए जरूरी श्रमिकों की संख्या की तुलना में दोगुनी है तथा कुछ ही लोगों को निर्धारित नियमों के तहत 100 दिन का काम मिल रहा है।’’
कांग्रेस सांसद ने कहा कि केरल में मनरेगा के तहत 92 फीसदी श्रमिक महिला हैं, ऐसे में क्या (केंद्र) सरकार विलंबित बेरोजगारी भत्ता देने की योजना बना रही है।
इस पर सिंह ने कहा कि श्रमिक बजट लाना केंद्र का नहीं राज्य सरकार का काम है। उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से न बजट की कमी है न कार्ययोजना की दिक्कत, बल्कि राज्य सरकार को उन अधिकारियों से ‘पूछना’ चाहिए, जो काम नहीं दे रहे हैं।
इसके बाद थरूर ने बजट बढ़ाने की सरकार को सलाह दी।
इससे पहले द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की सदस्य के. कनिमोई ने कहा कि मनरेगा के तहत श्रमदिवस अभी 50 दिन से ऊपर भी नहीं जा रहे हैं, जबकि कम से कम 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराने का प्रावधान है। उन्होंने यह भी कहा कि मजदूरों का भुगतान भी देर से होता है, ऐसे में सरकार क्या श्रमिकों को कोई भत्ता देने पर विचार कर रही है।
इस पर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज राज्य मंत्री साध्वी निरंजना ज्योति ने कहा कि चूंकि संबंधित प्रश्न एक विशेष राज्य के बेरोजगारी भत्ते से संबंधित है, इसलिए सदस्य को इसका उत्तर भेज दिया जाएगा।