रोग प्रतिरोधक शक्ति के महत्त्व को समझें

मानव शरीर एक पेचीदा मशीन है जिसे बनाने वाले की दाद देनी पड़ती है। हर अंग की अपनी अहमियत है और सभी अंगों में गजब का तालमेल है।

इसका काम सुचारू रूप से चले, इसके लिए सर्जक ने क्या-क्या यत्न किए हैं, वे हम आसानी से नहीं जान पाते या शायद हम जानने की जरूरत भी नहीं समझते क्योंकि काम चल रहा होता है। परेशानी तब खड़ी होती है जब इनमें अवरोध उत्पन्न हो जाता है लेकिन ऐसा कभी-कभी और कम ही होता है वर्ना बाजार में  लोगों का हुजूम दिखाई नहीं देता।

आपने देखा होगा कि छोटी मोटी खरोंच, मामूली सी चोट जो बच्चों को खासकर लगती रहती है, थोड़े ही समय में स्वयंमेव ठीक भी हो जाती है बशर्तें उससे छेड़छाड़ न की जाए। बौखला कर उल्टी सीधी दवा न लगाएं। दवा कभी पुरानी हुई तो नुक्सान कर सकती है। फिर हर दवा हर चमड़ी पर सूट भी नहीं करती। कभी किसी ने हल्दी बता दी, मसालेदानी से आपने हल्दी लगा ली तो उसमें भी गड़बड़ हो सकती है। नमक, मिर्च, गरम मसाला का पुट उसमें हो सकता है।

आजकल कुछ फैशन हो गया है खासकर धनाढ्य, नवधनाढ्य लोगों में कि जहां जरा सी गर्दन दुखी या छींक आई या गले में जरा सी¬¬ खराश हुई कि दौड़े डॉक्टर के पास। छोटे बच्चों को लेकर तो और भी बुरा हाल है। बेचारे बच्चे को न चैन से रहने देंगे, न खुद चैन से रहेंगे। बच्चे ने दूध निकाला तो फोबिया हो गया, जरा कहीं दूध उलट दिया तो घबराहट। सास अगर समझाने की कोशिश करती है तो बहू को लगता है कि मांजी पैसे बचाने के लिए डॉक्टर के पास जाने से मना कर रही हैं। पति को भी प्यार जताने का एक बहाना मिल जाता है। जरा-सी बात के लिये डॉक्टर के चंगुल में फंसे तो फंसे। फिर आसानी से न वह आपको छोड़ेगा, न आपकी जेब को।


अब मामूली सर्दी, जुकाम की बात ही लें। देसी नुस्खे आपको हर पत्रिका या अखबार में रविवारीय संस्करणों, पास पड़ोस में या घर में रहने वाले बुजुर्गों से मिल जाते हैं जैसे तुलसी की चाय, अदरक का रस शहद में मिलाकर चाटना, गले की खराश के लिए मुलहठी चूसना, विक्स की गोली चूसना, छाती में जमाव के लिए सादी या विक्स की भाप लेना आदि। डॉक्टर के पास जाना उसी हालत में ठीक होगा जब लगे कि एक सप्ताह होने पर भी आप नॉर्मल नहीं हुए या तकलीफ एलार्मिंग और सजग करने वाली हो।


मामूली सी अपच को अनदेखा करें। कब्ज है तो खूब पानी, सूप, खट्टे फल जैसे संतरा, मौसमी, अंगूर या फिर मीठे फलों में आम व चीकू आदि का सेवन राहत देगा। ज्यादा से ज्यादा ईसबगोल की भूसी ले लें। एलोपैथी की कतई जरूरत नहीं होती इस समस्या के लिये। लूज मोशन में भी कई बार पेट साफ होने पर खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है। हां, डिहाइड्रेशन न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए पानी, नमक, चीनी मिलाकर या इसी तरह के पेय पिये जा सकते हैं।


आजकल की तनावूपर्ण जिंदगी और आधुनिक जीवनशैली के कारण उच्च रक्तचाप की बीमारी बढ़ती ही जा रही है। सिरदर्द, चक्कर आना, असहज महसूस करना, इसके कुछ लक्षण हैं। जिन्हें यह बीमारी है, उन्हें तो नियमित इलाज की आवश्यकता है लेकिन अच्छे भले व्यक्ति को जिसे उपयुक्त कोई लक्षण न हों, वहम या दूसरों के कहने में आकर बारम्बार रक्तचाप नहीं  नपवाते रहना चाहिए क्योंकि केवल यही तनाव आपके स्वस्थ शरीर को अस्वस्थ बना सकता है और  आपको जबर्दस्ती उच्च रक्तचाप का मरीज बना सकता है।
मामूली सी हरारत हुई और आपने बिस्तर पकड़ लिया। डॉक्टर को फोन करके बुला लिया या खुद पहुंच गए क्लीनिक पर। यह आपके स्वभाव की असहनशीलता का द्योतक है। सामान्य वयस्क व्यक्ति को 102 डिग्री बुखार तक घबराने की जरूरत नहीं है। ज्यादा बुखार होने पर प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर माथे पर ठंडी पट्टी रखें और डॉक्टरी सलाह लें। शरीर की प्रतिरोधक शक्ति के महत्त्व को समझें। कहते हैं कई बार उच्च तापमान शरीर के विकारों को दूर कर अनचाहे जीवाणुओं को खत्म कर देता है।


इसी प्रकार आंख, कान, नाक के लिये भी दवाओं का प्रयोग कम ही करें। अगर चोट लग जाए, एलर्जी तथा संक्रमण हो तो जरूर डॉक्टरी सहायता लें। वह जरूरी भी है लेकिन आंख में मामूली सी खुजली ठंडे पानी से धोने से भी शांत हो जाएगी। शुद्ध गुलाबजल भी आंखों को आराम देता है। त्रिफला का पानी तो उत्तम है ही। मोतियाबिंद का इलाज तो केवल ऑपरेशन ही होगा। उसमें कोई घरेलू नुस्खा या होम्योपैथी काम नहीं करेगी।
कान में सरसों के तेल की गुनगुनी बूंदें डाली जा सकती हैं। वैसे सबसे अच्छी है ईयर बड जो कैमिस्ट के यहां मिल जाती है। प्रयोग के पहले उस पर हल्की वैसलीन लगा लें। कान को कभी भी किसी नुकीली चीज से साफ नहीं करना चाहिए। कान में अगर तेज दर्द हो तो अवश्य डॉक्टर के पास जाएं क्योंकि यह नाजुक अंग है। इसमें पर्दा फटने का डर रहता है।
अंग्रेजी में एक शब्द है ‘हायपोकोंंड्रया‘ यानी बीमारी का वहम। इसको पाल कर व्यक्ति कभी सुख से नहीं रह सकता। कई बार मेडिकल ज्ञान को लेकर देखा गया है कि ‘इग्नोरेंस इज ब्लिस‘ वाली कहावत ही सच साबित होती है। जागरूकता (अवेयरनेस) तो होनी ही चाहिए जैसे गंभीर रोगों के लक्षणों की जानकारी लेकिन यह सदा याद रखें कि आपके भीतर भी बैठा है एक कुशल डॉक्टर जो कितनी ही बीमारियों का इलाज बिना फीस, बिना दवा के करता है। उसे पहचानें।


ऐसे कितने ही दिल के मरीज हैं जिनका ऑपरेशन ‘एवॉइड‘ किया जा सकता था लेकिन कुछ निहित स्वार्थ के कारण उन्हें अनावश्यक रूप से हमेशा के लिये पाबन्दियों के कटघरे में डाल दिया गया। आजीवन दवाइयों का मोहताज बना दिया गया।  साओल हार्ट इंस्टीट्यूट़ के जन्मदाता डॉक्टर विमल छाजेड़ इस विषय में अत्यंत प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। दवाई व सर्जरी से ज्यादा वे खानपान की आदतों और जीने के तरीकों को महत्त्व देते हैं।
सार यह है कि बगैर जरूरत डॉक्टर के पास जाने का शौक न पालें। डॉक्टर का क्लीनिक कोई मंदिर नहीं कि चल दिये नियम से मत्था टेकने। डाक्टर के पास तभी जाएं, जब रोग गंभीर हो या आपको लगे कि हां, सचमुच डॉक्टरी सलाह की जरूरत है।