ऐसे शुरू हुआ समुद्री यात्राओं का सिलसिला

तेरहवीं शताब्दी से पूर्व काल को अंधकार युग की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस अवधि के दौरान भौगोलिक ज्ञान काफी क्षीण अवस्था में जा पहुंचा था। 13 वीं शताब्दी में लोगों में भौगोलिक ज्ञान प्राप्त करने के प्रति पुनः जिज्ञासा पैदा हुई और  विभिन्न अन्वेषकों ने इस तथ्य पर काम करना प्रारंभ कर दिया।


अन्वेषकों, व्यापारियों एवं विभिन्न देशों में अपने उपनिवेश स्थापित करने की लालसा वाले सम्राटों ने द्वीपों तथा यमुद्र तटों आदि की खोज करने का कार्य प्रारंभ कराया। उस समय अपने इस खोजी उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए प्रमुख रूप से समुद्री मार्ग का चुनाव किया गया।


सन 1250 से लेकर 16वीं शताब्दी तक लगातार खोजों एवं समुद्री यात्राओं का क्रम जारी रहा। समुद्री यात्रा का श्रीगणेश फ्रांसीसी नागरिक विलियम रूबरेक ने किया। वह एक साहसी एवं जिज्ञासु नाविक था। उसने सन 1256 में समुद्री यात्रा प्रारंभ की तथा कालासागर, कैस्पियन सागर, डॉन तथा वोल्गा बेसिन को पार किया और सोवियत रूस, मध्य एशिया तथा मंगोलिया की धरती तक जा पहुंचा। 13 वीं शताब्दी के मध्य से प्रारंभ हुई इस समुद्री यात्रा के बाद ही समुद्री यात्राओं का सिलसिला निर्बाध गति से प्रारंभ हो गया।


विलियम रूबरेक के बाद तेरहवीं शताब्दी में ही वेनिस के व्यपारी मार्को पोलो ने समुद्री यात्रा आरंभ की। वह भूमध्य सागंर से प्रशांत महासागर तक की यात्रा पर निकला तथा एक बड़े समुद्री मार्ग को उसने साहस और धैर्य के साथ सफलतापूर्वक पूर्ण किया। इसलिए मध्य युग के प्रथम महान समुद्री यात्रा होने का श्रेय मार्कों पोलो के पक्ष में ही जाता है।


मार्कोपोलो ने समुद्री यात्रा करके पूर्वी यूरोपीय देश, सोवियत रूस, मध्य एशिया, मंगोलिया, चीन, मलेशिया, श्रीलंका, भारत, ईरान तथा पश्चिमी एशियाई देशों के विभिन्न नगरों का अवलोकन किया। अपनी यात्राओं का वर्णन मार्कोपोलो ने स्वयं के द्वारा रचित पुस्तक में क्रमवार किया है। उसने यह पुस्तक 1287-88 में लिखी थी।


यूं तो भूमध्य सागर के तट पर बसे छोटे से देश पुर्तगसल के नाविक बहुत पहले से ही पश्चिमी यूरोप के तटों पर नौका संचालन किया करते थे परंतु जब पुर्तगाल में बढ़ती जनसंख्या के कारण भरण -पोषण की समस्या पैदा हुई तो उससे निपटने के लिए पुर्तगाल के राजकुमार ने महासागरीय व्यापार को प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया।


राजकुमार के आहवान और प्रोत्साहन में असंख्य उत्साही पुर्तगाली नाविकों ने भूमध्य सागर में दूर-दूर तक यात्राएं की। यात्राओं के दौरान उन्होंने उत्तरी पश्चिमी अफ्रीकी तटों का पता लगाया। पुर्तगाली नाविकों ने दिन-रात समुद्र में नौका संचालन करके 1417, 1420 तथा 1426 ईस्वी में मदीरा, कनारी तथा एजोर्स द्वीप खोज निकाले। इन्हीं नाविकों ने 1443 में केप अंतरीप का चक्कर भी पूरा किया। पुर्तगाली नाविकों ने 15वीं शताब्दी के मध्य तक अपनी समुद्री यात्राएं जारी रखीं।


1486 ईस्वीं अर्थात 15 वीं शताब्दी क अंत में वास्कोडिगामा ने अपने नाविक साथियों के साथ समुद्री यात्रा की तथा अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी सिरे -केप आफ गुड होप’ का चक्कर लगाया तथा भारतवर्ष के दक्षिण पश्चिम में स्थित कालीकट बंदरगाह पर जा पहुंचा।
वास्कोडिगामा ने व्यापारियों के लिए एक नवीन समुद्री मार्ग प्रशस्त किया। बाद में इसी मार्ग से भारत, श्रीलंका, गर्मा, इंडोनेशिया, हिंद चीन तथा आस्ट्रेलिया में डच, फ्रांसीसी ,पुर्तगाली एवं ब्रिटिश व्यापारियों का आगमन शुरू हो गया। इन देशों ने व्यापार के साथ ही साथ यहां अपने उपनिवेश भी स्थापित करने प्रांरभ कर दिए।


क्रिस्टोफर कोलम्बस ने नई दुनियां अमेरिका की खोज कही थी। जिनोवा में रहने वाले कोलम्बस को स्पेन की रानी इजाबेला के संरक्षण में भारत के लिए यात्रा पर रवाना होना था परंतु यूनानी भूगोल वेत्ता टॉलेमी की गणना के आधार पर वह यूरोप से पश्चिम दिशा की ओर बढ़ गया और भारत पहुंचने की बजाए अमेरिका जा पहुंचा।


कोलम्बस अटलांटिक महासागर पार करके बहामा, जमैका, क्यूबा तथा ट्रिनिडाड एवं पश्चिम द्वीप समूह देशों तक गया।


प्रमुख समुद्री यात्रा के अतिरिक्त कुछ अन्य यात्राएं भी की जाती रहीं। अंग्रेज जॉन केवट ने सन 1486 में न्यूफाउण्ड लैण्ड कनाडा से ‘केपरेस’ तक समुद्रीक यात्रा कीं 1500 में पुर्तगाल का अमेरिगों वस्पुक्की दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील तट तथा अंर्टाटिका के द्वीप जार्जिया पहुंचा। अमरिगो की यात्रा के कारण ही नई दुनिया को अमेरिका नाम दिया गया।
मैगेलन ने संकटपूर्ण प्रलयकारी तूफान वाले मार्ग जलडमरूमध्य से गुजर कर संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाया।


1510 में अलबुकर्क ने हिंदी महासागर होते हुए भारत की यात्रा की। फ्रांसिस ड्रैक ने जल मार्ग से विश्व भ्रमण किया। हडसन ने कनाडा के उत्तरी भाग की यात्रा की। इनके नाम पर कनाडा की हडसन खाड़ी का नाम पड़ा। एक अन्य डच तसमैन ने आस्ट्रेलिया महाद्वीप में टजमानिया द्वीप की खोज की।


समुद्री मार्गों की जानकारी से विभिन्न देशों के भौगोलिक वातावरण, रहन सहन एवं रीति रिवाजों का ज्ञान उपलब्ध हो सका। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी के लोगों ने उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा पूर्वी दक्षिणी एशिया में रहना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार 16 वीं शताब्दी के अंत तक इस खोजपूर्ण समुद्री यात्रा का सिलसिला जारी रहा।