खलीफा जी!’ ‘कहो भाई, क्या है?’ ‘एक बात कहूं? ‘जरुर कहो। खलीफा हजरत उमर ने बड़ी शालीनता से कहा। ‘आप एक साधारण कर्मचारी दिखते हैं।‘ ‘वह कैसे? ‘आप इतने ऊंचे पद पर होते हुए भी एक साधारण कर्मचारी सा वेतन लेते हैं। साधारण पोशाक पहनते हैं। आप का रहन-सहन भी बड़ा सादा है। ‘मुझे यही अच्छा लगता है।‘ बहुत ही ईमानदार, बुद्धिमान दयालू तथा धर्म में पूर्ण आस्था रखने वाले खलीफा जी विनम्र भाव से कह रहे थे। ‘पर हम चाहते हैं कि आप अपने पद के गौरव के अनुसार ही सरकारी खजाने से वेतन लें तथा पूरे ठाठ बाठ से रहें ताकि सब को पता चले कि आपकी हैसियत क्या है?’ ‘अरे भाई नहीं। हैसियत कपड़ों या रहन-सहन से नहीं आंकी जाती। शुद्ध और उच्च विचारों से जानी जाती है। रही कम वेतन लेने की बात, मुझे जीवन यापन के लिए जितना चाहिए मैं ले ही लेता हूं। ओहदा जरूर ऊंचा है, पर पेट तो उतना ही है जितना अन्य कर्मचारियों का..जो मैं पाता हूं उससे मेरा पेट भर जाता है…कभी भूखे पेट सोने की नौबत ही नहीं आई।‘