मनुष्य ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में जो गंवाता है उसे शीत ऋतु में पुनः प्राप्त कर सकता है। ठंड के समय मौसमी फल-फूलों व साग-सब्जियों की प्रचुरता रहती हैं जिसे ग्रहण कर वह पुनः स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता है। इस मौसम में सूर्य की प्रखरता में कमी रहती है। तापमान कम रहता है।
बाहर ठंड रहती है जबकि शरीर के भीतर की अग्नि प्रबल रहती है जो खाए गए पदार्थों को सुगमता से पचाकर शरीर को सबल बनाती है। इसी कारण जानकार लोग इस मौसम में पौष्टिक खानपान का उपयोग कर स्वास्थ्य लाभ उठाते हैं। सबके लिए यह स्वास्थ्य बनाने का उपयुक्त मौसम होता है।
इस मौसम में सबकी पाचन शक्ति बढ़ जाती है। रातें बड़ी होती है। ऐसी स्थिति में पुष्टिकर भारी भोजन को पचाने के लिए शरीर को पर्याप्त समय मिल जाता है जो स्वास्थ्य संवर्धन कर दीर्घायु प्रदान करता है। रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बनी रहती है किंतु हर मौसम की अपनी कुछ बीमारियां होती हैं जो उस मौसम की प्रखरता के साथ प्रकट होती हैं। बाहर की ठंड से शरीर को बचाने के लिए उपयुक्त कपड़ों की जरूरत पड़ती है। उचित कपड़ों के साथ प्रातः भ्रमण से इस मौसम में शरीर को बहुत लाभ मिलता है।
सूर्योदय के पूर्व बेला की वायु प्राणप्रद होती है। भोर की प्रथम सुनहली धूप से शरीर निखरता है। उससे प्राप्त विटामिन डी से हड्डी व मांसपेशियां मजबूत होती हैं। व्यायाम, उबटन, तेल मालिश एवं स्नान जैसे नित्य कर्म से शरीर चमकीला, लचीला बना रहता है। यह व्यक्तित्व को प्रभावी बनाता है। इस मौसम की धूप सबसे भली होती है।
प्रातःकालीन नित्य एवं सभी नित्य कर्म के बाद स्नान कर पौष्टिक जलपान करें। गर्म जलेबी, हलवा, लड्डू, रसगुल्ला, घी, पनीर, खोवा, मेवा, अंकुरित अनाज, दलहन, पराठा, दही, दूध सब कुछ जो उपलब्ध हो, खाया जा सकता है पर शुगर व रक्तचाप के रोगी अपना खानपान डाक्टर की सलाह के अनुकूल रखें। अंकुरित अनाज, कम तेल वाला परांठा, मलाई बिना दूध, दही खाया जा सकता है। हर भोजन में सब्जी, सलाद का भरपूर सेवन किया जा सकता है।
दूध के सापेक्ष में दही से प्राप्त पोषक तत्व बेहतर होते हैं। पके (पकाए गए) अनाज की तुलना में अंकुरित अनाज व दालों में अधिक पौष्टिक तत्व होते हैं। दही कैल्शियम देकर हड्डी व मांसपेशी मजबूत बनाता है जबकि अंकुरित अनाज मल्टी विटामिन का काम करता है। सब्जी-सलाद भोजन को पचाकर पोषक तत्व देते हैं एवं पेट को साफ रखते हैं। ये शुगर एवं रक्तचाप रोगियों के लिए सर्वथा एवं सबसे उपयुक्त हैं।
ठंड के प्रकोप से बचने के लिए रात को बाहर निकलते समय उचित कपड़े जूता मोजा अवश्य पहनें। गर्म बिस्तर से सीधा बाहर ठंड में न निकलें। ठंड लगने का खतरा बना रहता है। तेज ठण्ड से शरीर की त्वचा फटती है। इसकी देखभाल अपनी व्यवस्था के अनुसार करनी चाहिए। क्रीम या तेल भी लगा सकते हैं।
इस मौसम में हल्के गुनगुने पानी से नहाना चाहिए। त्वचा एवं कपड़ों की सफाई के अभाव में चर्म रोग होने की संभावना बनी रहती है। सर्दी, खांसी एवं नाक का बहना प्रमुख रोग हैं। खान पान में अदरक, सोंठ, तुलसी पत्ती, काली मिर्च, पीपर, हल्दी, नींबू, आंवला किसी का भी व्यवस्था के अनुसार दैनिक खान पान में उपयोग सभी रोगों के आक्रमण से बचाता है या उसके प्रभाव को कम करता है और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
ठंड के मौसम में वसा का सीमित व उचित उपयोग जरूरी है। पुलाव, परांठा, सूप, खीर सबका सेवन कर सकते हैं। महंगे मेवों की तुलना में चना, मूंगफली उपयोग कर सकते हैं। किसी वस्तु का सीमित व उचित सेवन लाभ पहुंचाता है जबकि अधिकता नुकसान देती है। व्यक्ति जहां है, जैसी स्थिति में है, जो खानपान वहां प्रचलन में है उसमें से उपयुक्त का सेवन कर ठंड के मौसम में स्वास्थ्य लाभ अवश्य लें।