मनोपचार (मानसिक स्वास्थ्य केंद्र) रायपुर में सीनियर कंसल्टेंट (साइकाइट्रिस्ट) के पद पर गत 10 वर्ष से कार्यरत डॉ. मूलचंद हरजानी युवा मनोचिकित्सक हैं। उनसे बातचीत हुई तो अनेक अनसुलझे सवालों का जवाब सामने आया। प्रस्तुत है उनसे बातचीत का एक ब्यौरा-
मानसिक रोग वस्तुत: मन की बीमारी है या दिमाग की? इस सवाल के जवाब में डॉ. साहब ने कहा-
मन में जो विचार उठते हैं , वे अनेक बार उलझ जाते हैं। व्यक्ति गुस्सैल हो जाता है। अपने आप में उलझ जाता है। अपने आप से ही भिड़ जाता है। मानसिक संतुलन खो बैठता है। उसे इलाज की जरूरत पड़ती है। दरअसल मनोरोग पूरा मन-मस्तिष्क के विचारों का खेल मात्र है।
महिला एवं बच्चों में कौन सर्वाधिक मनोरोग का शिकार है?
चूंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है , इसलिए शहर से दूर के इलाकों में महिलाओं के साथ किसी न किसी हद तक अत्याचार होता है। शहरों में चूंकि पुरुष और महिला के बीच बराबर की टक्कर है, इसलिए दोनों की मानसिक अस्वस्थता का प्रतिशत लगभग बराबर है।मनोरोग से किसी की मृत्यु भी हो सकती है?
बिल्कुल नहीं , ऐसा एक भी वाकया सामने नहीं आया। हां मरीज अगर हृदय रोगी , रक्तचाप रोगी , मधुमेह रोगी हो तो उसकी मृत्यु हो सकती है।
बी.पी. शुगर, हार्ट का क्या प्रभाव है?
बी.पी. शुगर , हार्ट की बीमारियां अधिकतर मानसिक तनाव व स्ट्रेस से बढ़ती हैं। और जब मनोचिकित्सक मानसिक तनाव व स्ट्रेस को कम करने की दवा देते हैं तो मरीज के मानसिक तनाव व स्ट्रेस में कमी आ जाती है। इससे बी.पी. शुगर व हार्ट की बीमारियों में राहत आ जाती है। मरीज अलग – अलग दवाइयां लेने से बच जाता है और साथ ही साथ कई जगह दौड़ लगाने से भी बच जाता है। यह एक प्रमाणित सत्य है।
डॉ. साहब ने और एक बड़ी जानकारी दी , इस सवाल के जवाब में कि मरीज कितना प्रतिशत सही है यह कैसे बताया जा सकता है ? यह तय करना काफी मुश्किल है कि मरीज कितने प्रतिशत सही है। मरीज की बीमारी कभी बढ़ सकती है और कभी घट सकती है। और इसके मुताबिक दवाइयों को बढ़ाना – घटाना पड़ सकता है। जब मरीज अपने रूटीन पर आ जाता है , तो उसे फिट मान लिया जाता है। मेंटेंनेंस दवा चलाई जाती है।
डॉ. हरजाने ने बताया कि मानसिक रोग की दवा लंबी चल सकती है , इस कारण मरीज और उसके साथ आने वाले पूछने लगते हैं कि अब और कितने दिन दवा चलेगी? कुछ मरीज अपनी समस्या को नजरअंदाज कर दुकान से दवा लेकर खाने लगते हैं । कुछ मरीज झाड़ – फूंक , तंत्र – मंत्र – यंत्र के पीछे दौड़ लगाते हैं। इस सब के कारण मामला और पेचीदा हो जाता है।
संस्थान में नशेडिय़ों का इलाज भी किया जाता है। कुछ मरीज स्वत: आकर कहते हैं कि उन्हें लत लग गई है और वे ठीक होना चाहते हैं। ऐसे मरीज दवा व कॉउंसलिंग से ठीक हो जाते हैं। ये कंफीडेंट होते हैं , इसलिए फिर नहीं बिगड़ते। नशा पीडि़तों को मोटीवेशन व साथ – साथ दवाइयों की भी जरूरत होती है। ग्रसित मरीजों को ठीक करने की भरपूर कोशिश होती है। इलाज में लंबा समय लगता है।
मनोपचार में सारी आधुनिक व्यवस्थाएं हैं , दवा , सुई , समझाइश सहित सभी तरह के मशीनी इलाज की भी व्यवस्था है। अब पुरानी तरह के बिजली के झटके नहीं दिए जाते।
हमारी सरकार ने नेशनल हैल्थ प्रोग्राम का दो प्रतिशत हिस्सा मानसिक रोगियों के लिए तय किया है।
जिला स्तरीय अस्पतालों से लेकर मेडिकल कॉलेज , यहां तक कि एम्स में भी मानसिक रोगियों का मुफ्त में इलाज होता है।
डॉ. साहब ने कहा लोगों को ज्यादा से ज्यादा सामाजिक बनना चाहिए। भ्रमण में भी समय खर्च करना चाहिए। एकाकीपन में ज्यादा नहीं रहना चाहिए।