ऊर्जा क्रांति से तीव्र होती विकास की गति

वर्तमान में भारत विकास के मार्ग पर तेजी से कदम रख रहा है। विकास की तीव्र गति से अब आगे आने वाले समय में ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बन कर विश्व में भारत तीसरा स्थान प्राप्त कर लेगा जिसका लाभ देश के प्रत्येक नागरिक को जरुर मिलेगा। विकास की गति को तेज करने में जहां संचार व ड़िजिटल क्रांति ने अपना योगदान दिया है वहीं ऊर्जा क्रांति भी पीछे नहीं है तथा अक्षय ऊर्जा के विभिन्न माध्यम काम में लाये जा रहे है। ईंधन के लिए कोयले, ड़ीजल व पैट्रोल पर निर्भरता धीरे धीरे कम करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। सरकार ने भी इसके लिए हरित ईंधन, हरित ऊर्जा, हरित खेती, हरित गतिशीलता, हरित भवन तथा हरित उपस्कर इत्यादि अनेक ऊर्जा से संबंधित कार्यक्रम घोषित किये है।

 

अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2040 तक देश में बिजली की खपत 1280 टेरा वाट प्रति घंटे तक पंहुच सकती है। सरकार ऊर्जा क्रांति में पर्यावरण पर भी पर्याप्त ध्यान दे रही है जबकि भारत में जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है जिसका सीध सीधा प्रभाव ऊर्जा की खपत पर भी पड़ रहा है। सरकारी व निजी कम्पनियां भी ऊर्जा की खपत की अपनी योजनाओं में तीव्र गति से बदलाव कर रही है। निजी व सरकारी क्षेत्र की ( एनटीपीसी, आइओसी, ओएनजीसी, गेल, आदि ) कम्पनियां महसूस कर रही है कि भविष्य में टिके रहने के लिए परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों से बाहर निकलना ही पड़ेगा। ओएनजीसी आगामी एक दशक में ही आॅफ शोर विंड़ एनर्जी तथा बायो फ्यूल को बढ़ावा देने वाली प्रमुख कम्पनी के रुप में स्वंय को विकसित करेगी। आईओसी तथा गेल भी रिनीवेबल ऊर्जा के कई सेक्टरों को विस्तृत करने की अपनी रणनीति में तेजी से बदलाव को अंतिम रुप दे रही है।

 

देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन करने वाली एनटीपीसी लि. ने वर्ष 2032 तक अपना लक्ष्य निर्धारित किया है कि वह अपनी कुल उत्पादन क्षमता का 45 प्रतिशत रिनीवेबल सेक्टर बनाने का लक्ष्य निर्धारित कर रही है तथा वह इसके लिए 2.5 लाख करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बना रही है। वह कार्बन कैप्टरिंग यूनिट को सितम्बर 2022 में ही शुरु कर चुकी है। इंड़ियन आयल कार्पोरेशन ने वर्ष 2046 तक नेट जीरो कम्पनी (कार्बन उत्सर्जन नहीं करने वाली कम्पनी) का लक्ष्य रखा है। कम्पनी ने बहुत गम्भीरता से ग्रीन एनर्जी के लिए अलग से एक सब्सिड़ियरी कम्पनी स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। कम्पनी की नजर ग्रीन हाइड्रोजन नीति के साथ साथ इलैक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग सुविधा के नेटवर्क में विस्तार पर भी है। यह कम्पनी सौर व पवन ऊर्जा क्षेत्र में भी काफी काम कर चुकी है परन्तु यह कम्पनी ग्रीन हाइड्रोजन में अपने लिए बहुत सम्भावनाऐं महसूस कर रही है।

 

आईओसी के प्रमुख श्रीकांत माधव वैद्य स्वीकार करते है कि सौर व पवन ऊर्जा दो बड़े सेक्टर है तथा दोनों सेक्टरों के लिए बायोगैस में बहुत सम्भावना महसूस की जा रही है। श्रीकांत माधव वैद्य का कहना है कि हमें पूरा विश्वास है कि हाइड्रोजन सेक्टर में भी आईओसी देश को एक नई दिशा दिखाएगी। इससे पूर्व भारत पैट्रोलियम भी दिल्ली- जालंधर हाइवे पर फास्ट चार्जिंग कॉरिडोर बनाने की घोषणा कर चुकी है। अधिकतम तेल कम्पनियां भी इलैक्ट्रिक वाहनों को लेकर बहुत उत्साहित है। ओएनजीसी भी ऊर्जा सेक्टर में जिस तेजी से बदलाव हो रहा है, उस पर पूरी नजर गड़ाये हुए है परन्तु उसका यह भी मानना है कि देश में अभी लम्बे समय तक पारंपरिक ईंधन की जरुरत तो रहेगी ही। हरित ईंधन को देश भर में अपनाने से पहले एक ऐसा दौर भी चलेगा जिसमें कम प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों की मांग काफी ज्यादा रहेगी।  

 

केन्द्र सरकार ने ग्रीन हाईड्रोजन सेक्टर में कुल आठ लाख करोड़ रुपये के निवेश के बारे में सोचा है। रिफाइनिंग, स्टील, सीमेंट, लौह अयस्क, जहाजरानी, आवागमन इत्यादि सेक्टरों से प्रदूषण फैलाने वाली गैसों के प्रयोग की जगह ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग के लिए 19,744 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी स्वीकार किया है। सरकार की इस योजना से छः लाख नई नौकरियां मिल सकेंगी। वर्ष 2070 तक देश में नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया गया है। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की तरफ से निर्धारित लक्ष्य एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। 2030 तक घरेलू स्तर पर 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। इससे भारत एक लाख करोड़ रुपये के कम ईंधन का आयात करेगा तथा औद्योगिक सेक्टर से 50 लाख टन कम कार्बन उत्सर्जन किया जा जायेगा। अभी उद्योगों में ग्रे-हाइड्रोजन का प्रयोग हाइड्रोजन के रुप में होता है। इसमें इलैक्ट्रोलाइसिस की भूमिका बहुत महत्व रखती है परन्तु इस मिशन में रिन्यूवेबल सेक्टर से प्राप्त हुई बिजली का प्रयोग हाइड्रोजन बनाने में किया जायेगा। यह मिशन भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की घरेलू मांग पैदा करने, उसका उत्पादन करने और उसके निर्यात को बढावा देगा।

 

भारत में अभी 1.8 करोड़ टन हाइड्रोजन या अमोनिया का प्रयोग होता है जबकि वर्ष 2030 तक इसको 5 करोड़ टन तक करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार देश के कई हिस्सों में ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाना चाहती है। ग्रीन हाइड्रोजन की वर्तमान में कीमत 300-400 रुपये प्रति किलो है जिसको वर्ष 2030 तक घटा कर 100 रुपये प्रति किलो करना है। अमेरिका, जर्मनी, जापान, भी ग्रीन हाईड्रोजन को लेकर योजनाऐं बना रहे है परन्तु इसके लिए भारत के पास सबसे मजबूत आधार है। ग्रीन हाईड्रोजन व ग्रीन अमोनिया सेक्टर के विकास के लिए भारत विश्व के अन्य देशों से भिन्न अपनी योजना बना रहा है। भारत सरकार को उन देशों के साथ अच्छे व गहरे संबंध बनाने होंगे जो ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर में लगने वाले कच्चे माल की आपूर्ति करते है तथा ग्रीन हाइड्रोजन के लिए इलैक्ट्रोलाइजर्स और फ्यूल सेल्स का निर्माण बड़े पैमाने पर करना होगा।

 

रुस, यूक्रेन के बीच युद्ध होने से विश्व में कोयले की आपूर्ति प्रभावित हो गई है। जर्मनी व अन्य यूरोपीय देश ऊर्जा संकट के दौर से गुजर रहे है। इस ऊर्जा संकट से निपटने के लिए विश्व में अब अक्षय ऊर्जा के स्त्रोत ढूंढे जा रहे है। उधर पर्यावरण का प्रदूषण भी अक्षय ऊर्जा के बारे में सोचने को मजबूर कर रहा है। यह देखने में आया  कि कोयले की खानों की खुदाई के लिए जर्मनी में एक गांव को खाली करवाया गया था परन्तु पर्यावरण के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया तो जर्मनी ने यह फैसला वापस ले लिया। वर्ष 2021 में अक्ष्य ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता 28 प्रतिशत थी जो 2027 तक बढ़ कर 38.1 प्रतिशत हो जायेगी। इसी प्रकार कोयले से बिजली उत्पादन 36.3 प्रतिशत जो 2027 तक 29.7 प्रतिशत हो जायेगा। इस प्रकार अन्य गैर नवीकरणीय स्रोतों से बिजली का उत्पादन 2021 में 35.7 प्रतिशत था तो 2027 तक घट कर 32.2 प्रतिशत हो जाने की आशा है। भारत भी 2006 -07 तक 27 देशों से कच्चा तेल क्रय करता था जो 2021-22 में 39 देशों से क्रूड़ तेल की खरीद कर रहा है। सरकार एथनाल मिश्रण को क्रमबद्ध तरीके से बढ़ा कर 50 प्रतिशत तक करने के विकल्प पर अध्ययन कर रही है। भारत में अर्थव्यवस्था का 6 प्रतिशत गैस पर निर्भर है जिसे वर्ष 2030 तक बढ़ा कर 15 प्रतिशत किया जाना है जिसमें एथनाल और दूसरे बायोगैस के उत्पादन को बढ़ाया जाने का विकल्प है। 2025-26 से देश में 20 प्रतिशत एथनाल मिश्रित पैट्रोल की बिक्री शुरु हो जायेगी। 2025-26 के बाद सरकार एथनाल मिश्रण को क्रमबद्ध तरीके से बढ़ा कर 50 प्रतिशत तक का विकल्प पर अध्ययन कर रही है।

 

देश में विकास के लिए ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार एक रोड़मैप तैयार कर रही है जिसके अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा देशों से क्रूड की आपूर्ति सुनिश्चित कर वर्ष 2040 तक हरित ईंधन मार्केट में भारत को एक वैश्विक हब के तौर पर स्थापित करने का उद्देश्य है। इस रोड मैप के लागू होने के बाद आयातित ईंधन पर निर्भर भारत वर्ष 2040 तक पर्यावरण अनुकूल ईंधन का निर्यातक देश बन सकता है जिससे भारत के विकास की गति को तीव्र करने में सहायता मिल सकेगी। इस समय भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व वर्ष 1973 के बाद से सबसे बड़े ऊर्जा संकट से गुजर रहा है लेकिन इस का प्रभाव भारत पर ज्यादा नहीं पड़ा है। दिसम्बर 2021 से दिसम्बर 2022 के दौरान भारत में ड़ीजल की कीमतों में सिर्फ तीन रुपये प्रति लीटर की बृद्धि हुई जबकि अमेरिका में 34 प्रतिशत, कनाड़ा में 36 प्रतिशत, स्पेन में 25 प्रतिशत, ब्रिटेन में 10 प्रतिशत मंहगा हुआ है।

 

भारत में क्रूड़ उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने वर्ष 2030 तक 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कच्चे तेल की खोज और उत्खनन शुरु करने का लक्ष्य रखा है। भारत अपनी आवश्यकता का 86-87 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। सरकार ने 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए 19,744 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी है। भारत में पैट्रोल पम्पों पर इलैक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन की सुविधा दी जायेगी जिससे कुछ ही समय में भारत का प्रदूषण कुछ हद तक समाप्त हो सकेगा तथा भारत के विकास की गति को तीव्रता प्राप्त हो सकेगी।