भारत ही एक ऐसा देश है, जहां सर्वाधिक त्यौहार मनाये जाते हैं। वैसे होली, दशहरा, रक्षा बंधन, ईद, सरस्वती पूजा जैसे त्यौहार तो बहुत हैं पर इनमें दीपावली का अपना ही अलग ही महत्व है। दीपावली के दिन दीपों की कतार लगायी जाती है। दुकानों और घरों की सफाई व रंगाई की जाती है। हमारे देश के अधिसंख्य लोग होली के बाद जिस त्यौहार को सर्वाधिक हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, वह दीवाली ही है।
यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो धनतेरस से आरंभ होकर भैयादूज तक चलता है। दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। पांच दिनों तक मनाये जाने वाले इस त्यौहार में धनतेरस, नरक चौदस, लक्ष्मी पूजन तथा भैया दूज शामिल हैं।
धनतेरस के दिन बर्तनों की खरीद की जाती है। नरक चौदस के दिन नरक से मुक्ति की कामना के लिए एक दीपक जलाकर भगवान की पूजा की जाती है। लक्ष्मी पूजन के दिन घरों एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में लक्ष्मी की पूजा होती है। पूजा के बाद प्रसाद वितरण का कार्य संपन्न होता है। बच्चे इस दिन नये नये कपड़ों में सज धज कर फुलझड़ियां व पटाखे छोड़ने का आनंद उठाते हैं।
भैया दूज के दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनके मंगल की कामना करती है। इस अवसर पर भाई अपनी बहनों को अपने सामर्थ्य के अनुसार उपहारस्वरूप कुछ वस्तुएं देकर स्नेह प्रकट करते हैं।
जिस प्रकार प्रत्येक त्यौहार से कोई न कोई लोककथा जुड़ी होती है, उसी प्रकार दीपावली से भी कई लोककथाएं जुड़ी हैं जिनमें से कुछेक इस प्रकार हैं। जब भगवान श्रीराम रावण का वध कर विभीषण को लंका का राजा बनाकर अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने उनके आगमन की खुशी में घर-घर की सफाई कर दीप जलाये थे। तभी से यह त्यौहार मनाया जाने लगा।
दूसरी लोककथा के अनुसार द्वापर युग में नरकासुर नामक एक भयानक राक्षस से समस्त जनता त्रास्त थी और उसका आतंक इतना बढ़ चुका था कि देवतागण भी त्राहि त्राहि कर रहे थे। देवताओं ने नरकासुर के आतंक से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु जी की शरण ली। विष्णु जी ने उनकी व्यथा कथा सुनने के बाद उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के पास भेज दिया।
श्रीकृष्ण ने अपने शरण में आये देवताओं की रक्षा के लिए नरकासुर का वध किया पर वह भयानक राक्षस प्राण त्यागते समय उनसे यह वरदान ले गया कि उसकी मृत्यु का दिन उत्सव के रूप में मनाया जाए। आज हम उसी दुष्ट राक्षस की मृत्यु याद में नरक चौदस मनाते हैं। नरक चौदस से हमें पाप से दूर रहने की शिक्षा मिलती है।
दीपावली मनाने के कुछ वैज्ञानिक कारण भी रहे हैं जैसे जब पावस काल में कीट पतंग जन्म लेकर मानवों को कष्ट पहुंचाते हैं तो अधिसंख्य घरों की पुताई चूने से की जाती है क्योंकि चूना कीट पतंग को खत्म करने में सहायक है। दूसरी ओर कीड़े दीपक के समीप पहुंचकर उसकी परिक्रमा करते हैं तो दीपक की ताप या लौ से कीड़े जलकर समाप्त हो जाते हैं। इस प्रकार लोगों को कीड़ों से छुटकारा मिल जाता है।
दीपावली मनाने का दूसरा वैज्ञानिक कारण गंदगी से मनुष्य को छुटकारा दिलाना है। जब पावस काल में वर्षा होती है तो चारों ओर गंदगी का ढेर ही ढेर दिखाई देता है। दीपावली के समय वर्षा नहीं होने के कारण लोगों को सफाई करने का बढ़िया अवसर मिल जाता है। अतः यह त्यौहार स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है।
दीपावली स्वच्छता, चमक दमक, शानो-शौकत तथा हर्षाल्लास का त्यौहार है। इस प्रकार ’दीपों के संग, दीवाली के रंग‘ का यह त्यौहार भौतिक और आध्यात्मिक प्रकाश का संदेश लेकर प्रत्येक वर्ष आता है। अगर हम पांच दिनों के इस त्यौहार से भली भांति परिचित हो जाएं तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह त्यौहार मानव समाज के समस्त मंगलों का प्रतीक है।
आज हमारे समाज के बीच कुछेक ऐसे व्यक्ति भी हैं जो इस त्यौहार में शराब पीकर जुआ खेलते हैं। शायद उन्हें यह पता नहीं कि जुए के कारण ही धर्मराज युधिष्ठिर को क्या क्या दिन देखने पड़े थे।
दीपावली का त्यौहार पापाचार, भ्रष्टाचार, दुराचार और अनाचार को रोकने की प्रेरणा देता है। अतः ज्योति के इस महापर्व के साथ हम यह प्रण करें कि राष्ट्र के हित में उक्त दोषों को हम जड़ से उखाड़ फैंकेंगे।