भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का एक विशेष महत्व रहा है। दीपावली का त्यौहार हमारी आत्मा से जुड़ा हुआ है यह न केवल रोशनी का त्यौहार है यह ज्ञान के प्रकाश का भी प्रतीक है। जब मानव की आत्मा में ज्ञानदीप का प्रकाश होता तो इन अज्ञान का अंधकार सदा के लिए समाप्त हो जाता है। दीपावली मनाने का दिन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में दीपक जलाने का दिन है। अंधेरा कितना ही गहरा क्यों न हो लेकिन दीपक की एक लौ उसे भेदने में सफल होती है।
आज ही के दिन क्षीरसागर से लक्ष्मी देवी प्रगट हुई थी उन्होंने भगवान श्री विष्णु का पति रूप में वरण किया है। इस अवसर पर देवी-देवताओं ने दीपक जलाकर अपनी खुशी को प्रगट किया। आज ही के दिन यम ने नचिकेता को बह्म ज्ञान का उपदेश दिया था। सनत कुमार संहिता के प्रसंग के अनुसार आज के दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि के कारागार में बंदी देवी लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवताओं को मुक्त कराया था जिससे खुश होकर स्वर्ग में देवी-देवताओं ने दीप माला की थी। महाराजा राम आज के दिन चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या आये थे। अयोध्या निवासियों ने श्री राम लक्ष्मण एवं सीता माता का दीप माला करके स्वागत किया था। दीपावली सत्ता की राजनीति में मर्यादा की स्थापना का पर्व भी माना जाता है जहां भाई सत्ता के लिए युद्ध नहीं करते अपितु सत्ता के अधिकारी को सत्ता सौंपने के लिए त्याग और बलिदान देते हैं। श्रीराम जी के वनवास जाने के पश्चात भरत अयोध्या को भाई श्रीराम की धरोहर समझ कर जनता की सेवा में प्रवृत्त रहे। राम का आदर्श धर्म, परिपालन एवं मर्यादा की स्थापना की ऐसी हालात में दिल में अनेक भावों के दीपों से हृदय में खुशी होती है।
सिखों में भी दीपावली का खास महत्व है क्योंकि सिखं के धर्म गुरु हर गोविंद सिंह जी द्वारा ग्वालियर के किले में नजरबंद अन्य 52 राजपूत राजाओं सहित नाटकीय ढंग से आजाद करवाया गया था। सारा ग्वालियर रोशनी से जगमगा उठा था। दरबार साहिब की दीवाली इतनी प्रसिद्ध थी कि महाराजा रणजीत सिंह विशेष रूप से अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब में दीपों की जगमग और आतिशबाजी देखने आया करते थे। महाराजा रणजीत सिंह ने इस मदिर में स्वर्ण चढ़ाया था जिसके कारण बाद में इसका नाम स्वर्ण मंदिर पड़ गया। गुरु ग्रंथ साहिब में कई संतों ने अपनी वाणी से दीवाली के बारे में लिखा है। भाई गुरुदासजी के एक शब्द में लिखा है- दीवाली दी रात दीवे बालिअनी। पंचम बादशाह ने लिखा है कि दीवा बले अंधेरा जाए। गुरुवाणी में आगे फरमाया गया है कि साधो आबिदिया हित कीन-विवेक दीप मलीन। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों में रामायण के पात्रों और श्रीराम का नाम जगह-जगह पर आता है।
सिखों के धर्म गुरु हरगोविन्द सिंह अमावस्या की रात कैद से मुक्त होकर अमृतसर आए तो श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर और आतिशबाजी करके स्वागत किया था। बाद में बाबा दीप सिंह ने दीपावली की रात्रि कोदीप माला की परम्परा शुरू की। 1738 को भाई मनी सिंह ने दीपावली पर विशाल मेला लगाने का निर्णय लिया। सूबा गर्वनर जकारिया खां ने मेले पर रोक लगा दी और भाई मनी सिंह का अंग-अंग काटकर शहीद कर दिया गया।
आज जितनी महंगाई हो गई है इसे लेकर आम आदमी के लिए त्यौहारों का महत्व खोता जा रहा है। मिठाई, सब्जी, फलों के भाव आसमान को छू रहे हैं। आज भारत में राम राज्य कहीं नजर नहीं आता। चारों तरफ भ्रष्टाचार और नेताओं ने लूट मचा रखी है। राम जैसा चरित्र रखने वाले नेता कहीं दिखाई नहीं देते। आपसी भाईचारे को बढ़ाने के लिए त्यौहार एक प्रकार से बढिय़ा साधन है। आओ हम मिलकर दीपावली पर खुशी के दीपक जलाएं। अज्ञान को दूर करे और देश में राम राज्य स्थापित करने के लिए बच्चों को अच्छे संस्कार दे और नैतिकता का पाठ पढ़ाएं।