दीपोत्सव यानि अहंकार का विनाश

दीपावली का दिन ज्यों ज्यों नजदीक आ रहा था, त्यों-त्यों घरों में दीपावली की तैयारियां जोरों से होने लगीं। घरों में साफ-सफाई, रंग-रोगन, लिपाई पुताई व नई खरीदारी की तैयारियां चल रही थी। इसी बीच दीपावली से एक रोज पहले महालक्ष्मी जी ने अजय और विजय को रात्रि में स्वप्न में दर्शन दिये और उनसे कहा, मैं दीपावली के रोज तुम्हारे घर आऊंगी और तुम्हें जो चाहिए वह वरदान मुझसे मांग लेना। वरदान देकर मैं पुन: लौट जाऊंगी।


अजय और विजय दोनों ने स्वप्न में लक्ष्मीजी से कहा हे धन की देवी! तुम्हें प्रणाम है।हम अपने परिजनों से पूछकर अपनी इच्छा से आपको अवगत करा देंगे। बस आप हम पर कृपा बनाये रखे एवं हमारी मनोकामना पूर्ण हो।


सबेरे दोनों ने अपने अपने परिजनों केबीचरात्रि में स्वप्न में आयी लक्ष्मी जी की बात बतायी और अपने-अपने परिजनों से पूछा, बोलो लक्ष्मी जी से क्या-क्या मांगा जाये?


अजय की पत्नी राधिका बोली? आप बस मेरे लिए हीरे का नौ लखा हार लक्ष्मी जी से मांग लेना। मां-बाप ने कहा, बेटा! हम बुढ़े हो चुके हैं, दवाएं ले-लेकर तंग हो चुके हैं। बस तुम तो हमारे स्वस्थ व मंगलमय जीवन की दुआ मांग लेना।


बच्चों ने कहा पापा, पापा आप हमारे लिए एक अच्छी सी कार एवं बंगला मांग लेना।
लेकिन विजय के परिजनों ने विजय से कहा, हमें तो बस लक्ष्मीजी का आशीर्वाद चाहिए। अत: तुम मां लक्ष्मी से कहना, हे मां! आपकी हम पर सदा पूरी कृपा बनी रहे। हमें धन दौलत नहीं चाहिए। बस हमारा आप से यही निवेदन है कि परिवार व समाज संस्कारवान, सदाशयतापूर्ण व परस्पर प्रेम सद्भावयुक्त हो। परिवार बिखरे नहीं, टूटे नहीं व एकजुट हो।
विजय की पत्नी ने कहा, आप लक्ष्मीजी से प्रार्थना कीजिए कि फिर से समाज में पारिवारिक मूल्यों की स्थापना हो। समाज में करुणा, ममता, वात्सल्य, दया, प्रेम, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना हो। मानव मूल्यों का पतन न हो एवं समस्त देशवासियों का चरित्र उज्जवल हो। छल, कपट, प्रपंच, लोभ, लालच, घृणा, नफरत का नामोनिशान न हो। सबी साधन सम्पन्न हो, खुशहाल हो, समृद्धशाली हो, सभी अवसाद व मानसिक तनाव से दूर हो तथा अज्ञानता, अंधकार व अहंकार का विनाश हो और सभी के मन में सुन्दर, उच्च व पवित्र विचार उत्पन्न हो।


दीपावली के दिन जब लक्ष्मीजी अजय के निवास पर पहुंची तो अजय ने अपने परिजनों के विचार लक्ष्मी जी के समक्ष रखकर धन दौलत की मांग की।


लक्ष्मीजी ने अजय की यह मांग पूर्ण कर दी। मगर कुछ समय बाद में समय ने ऐसी करवट ली कि अजय का परिवार कुछ ही वर्षों बाद साधन सम्पन्नता से सड़क पर आ गया। सारी धन दौलत नष्ट हो गई। परिवार दर-दर की ठोकरे खाने लगा।


वही दूसरी ओर विजय की मांग पर लक्ष्मीजी ने विजय के घर में ही अपना स्थायी निवास बना लिया और आज भी विजय के यहां निवास कर रही है।


कहने का तात्पर्य यह है कि दीपावली मात्र दीपों का त्यौहार ही नहीं है, वरन प्रेम, सद्भाव, आपसी भाईचारा, सदाशयतापूर्ण जीवन जीने व मानवीय मूल्यों की पुन: स्थापना का दिन है। दीपों की यह जगमगाती लौ हमारे अहंकार का विनाश कर सुन्दर, उच्च व पवित्र विचारों को उत्पन्न करने का दिन है।


आइये! हम सब मिल बैठकर लक्ष्मी जी का पूजन करे व समस्त भारतवासियों के सुख समृद्धि और कल्याण की कामना करें। दीपों की इस जगमगाती लौ के बीच हम अज्ञानता रूपी अंधकार को मिटाये और ज्ञान रूपी प्रकाश को जन-जन में फैलायें।