नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जब तक असाधारण स्थिति नहीं हो, संवैधानिक अदालत को लंबित मामले के निस्तारण के लिए समयबद्ध सुनवाई निर्धारित करने से बचना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने एक आपराधिक मामले के निस्तारण के लिए समयबद्ध सुनवाई का निर्देश देने का अनुरोध करने संबंधी याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए यह कहा।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि प्रत्येक उच्च न्यायालय और विशेष रूप से बड़ी अदालतों में बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएं दायर की जाती हैं और इसलिए, ऐसी याचिकाओं के निस्तारण में कुछ देरी अपरिहार्य है।
पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि देश के प्रत्येक उच्च न्यायालय और प्रत्येक अदालत में बड़ी संख्या में लंबित मामले हैं, इसलिए जबतक स्थिति असाधारण नहीं हो, संवैधानिक अदालत को किसी भी अदालत के समक्ष किसी भी मामले के निस्तारण के लिए समय सीमा तय करने से बचना चाहिए।”
शीर्ष न्यायालय शेख उज़्मा फिरोज़ हुसैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में उन्होंने महाराष्ट्र उच्च न्यायालय को समयबद्ध तरीके से अपनी जमानत याचिका पर फैसला करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
पीठ ने कहा कि यदि कोई असाधारण तात्कालिकता है तो याचिकाकर्ता हमेशा ही संबंधित पीठ का रुख कर सकता है। न्यायालय ने कहा,”हमें यकीन है कि अगर अनुरोध वास्तविक है, तो संबंधित पीठ इस पर विचार करेगी।”