बाल कथा- साझे की हांडी

edd55161e5554accba1c864df94f409e

करनदेव खिलौनों का व्यापारी था। वह ईमानदार और मेहनती था। धन्नू और मन्नू भी खिलौनों का व्यापार करते थे। दोनों बहुत बेईमान और ईर्ष्यालु थे। हमेशा करनदेव को नीचा दिखाने की सोचते थे। यदि करनदेव किसी खिलौने को पचास रूपए में बेचता तो वे उसे चालीस रूपए में बेच देते। देखते-देखते करनदेव का व्यापार चौपट होने लगा।


करनदेव को चिंतित देख एक दिन पत्नी ने पूछा, ‘क्या बात है। आजकल आप परेशान दिखाई देते हैं?‘


पत्नी के पूछने पर करनदेव ने सारी बात कह सुनाई। पत्नी बोली, ‘पास के गांव में एक साधु बाबा का आश्रम है। सुना है, उनके आशीर्वाद से संकट कट जाते हैं। क्यों न हम उनके दर्शनों को चलें।‘


अगले दिन दोनों साधु बाबा के आश्रम पर पहुंच गए। करनदेव ने साधु बाबा को अपना कष्ट बताया।


साधु बाबा कुछ देर मौन रहे। फिर बोले, ‘बच्चा, तुम्हारी समस्या का समाधान हो सकता है। तरीका यही है कि वे दोनों साझेदारी में व्यापार शुरू कर दें।‘ यह कह, साधु बाबा ध्यान मग्न हो गए।


करनदेव साधु बाबा की बात का मर्म समझ गया। वह और उसकी पत्नी घर लौट आए। उसी शहर में करनदेव का एक मित्रा था देवचरण। वह धन्नू और मन्नू से भी परिचित था। करनदेव ने उसे अपनी समस्या बताई। फिर साधु बाबा वाला उपाय भी कह सुनाया। देवचरण ने कहा, ‘मैं पूरी कोशिश करूंगा। तुम जरा भी मत घबराओ।‘


वह एक दिन धन्नू और मन्नू से मिला। बोला, ‘तुम्हारे कारण करनदेव का व्यापार दिन प्रतिदिन चौपट होता जा रहा है। यदि तुम दोनों साझेदारी में व्यापार शुरू कर दो तो उसके भूखों मरने की नौबत आ सकती है।‘


धन्नू और मन्नू को देवचरण की बात जंच गई। अगले ही दिन से दोनों ने साझेदारी में व्यापार शुरू कर दिया। दोनों ने तय किया कि धन्नू खिलौने बेचा करेगा और मन्नू मंडी से वसूली करके लाएगा लेकिन दोनों थे एक नंबर के बेईमान। मन्नू मंडी से जितनी भी वसूली करके लाता, उसमें से काफी पैसे अपनी जेब में रख लेता। धन्नू को केवल घाटा दिखाता। धन्नू बहुत परेशान था। सोचता था कि मैं इतनी मेहनत करके खिलौने बेचता हूं, पर मन्नू के कारण घाटा ही हो रहा है। वह जरूर बेईमानी करता है।


अब धन्नू ने भी अपनी जेब गरम करने की सोची। वह खिलौने बनाने के लिए जो पैसा लेता, उसमें से आधा बचा लेता। बाकी पैसों से घटिया सामान खरीद कर खिलौने बना देता।
मन्नू जब मंडी से वसूली करने जाता तो दुकानदार उससे घटिया खिलौनों की शिकायत करते। धीरे-धीरे उन्होंने खिलौने खरीदने बंद कर दिए। पिछला भुगतान भी रोक दिया। इस तरह उनका धंधा चौपट होने लगा। मन्नू सोचने लगा, धन्नू खिलौने बनाने के लिए ढेर सारे रूपए लेता है। इसके बावजूद दुकानदार खिलौनों की घटिया किस्म की शिकायत करते हैं। लगता है, वह बेईमानी पर उतर आया है।‘


उसने एक दिन धन्नू से कहा, ‘तुम खिलौने बनाने के लिए इतने सारे रूपए लेते हो। फिर भी दुकानदार खिलौनों की घटिया किस्म की शिकायत करते हैं। तुम्हारे कारण हमारा व्यापार चौपट होता जा रहा है।‘


यह सुन, धन्नू ने भी उसकी सारी पोल खोल दी। बोला, ‘तुम भी तो काफी पैसा अपनी जेब में रख लेते हो। मुझे झूठ-मूठ का घाटा दिखाते हो। व्यापार में घाटे के लिए तुम भी जिम्मेदार हो।‘


बस, फिर क्या था। अब तो छोटी-छोटी बातों को ले कर वे एकदूसरे से लड़ने लगे। मंडी में उन दोनों के झगड़े की बात तो फैल ही चुकी थी। उनकी बेईमानी का भी भांडा फूट गया। वह दिन भी आया, उनका व्यापार बिलकुल ठप्प हो गया। उधर करनदेव का व्यापार उसकी मेहनत और ईमानदारी के कारण फिर से चमक उठा।


एक दिन दोनों पति-पत्नी साधु बाबा का धन्यवाद करने उनके आश्रम गए। करनदेव ने साधु बाबा को सारी घटना बताई। सुन कर साधु बाबा बोले, ‘बेईमान लोगों के बीच साझेदारी का यही परिणाम होता है।‘