अनेकता में एकता ही भारत की विशेषता रही है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इसके राष्ट्रीय त्यौहार ही हैं, जो कि सारे वर्ष चलते रहते हैं। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और पक्का करने का एक त्यौहार भाई दूज का है, जो भारतीय समाज की चेतना की गहराई में उतरकर धर्म व जातियों के बंधन तोड़कर एकता व भाई-चारे का प्रतीक बन गया है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाए जाने वाले भाई दूज के संबंध में एक बहुचर्चित कथा है, जिसका धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है।
कार्तिक शुक्ल पक्षस्य द्वितीयाया च भारत।
यमुनाना ग्रहं यस्मान यमने भोजनं कृतम्ï॥
अतो भगिनिहसाने निधिवस्या च भोजनय।
धनं यशश्चैवायु एवं वृद्धते कामसाधनम्ï॥
इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए हुए थे। भोजन करने के पश्चात् यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि आज के दिन जो यहां स्नान करेगा, आप उसका भला करेंगे। यमराज ने यह बात स्वीकार कर ली। उन्होंने कहा कि जो भाई आज के दिन बहन के घर भोजन करके दक्षिणा देगा उसका भी कल्याण होगा। पूर्वी उत्तरप्रदेश, बंगाल व बिहार में भाई दूज पर भाई की लंबी उमर की कामना की जाती है। पूजा में गोबर का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इसे शुद्ध माना जाता है। गोबर से यम और यमुना का चित्र बनाते हैं। इस संबंध में कहावत है कि खिड़ारिन नाम की चिडिय़ा जो शुभ मानी जाती है, परन्तु ईशान कोण में इसे देखना अशुभ माना जाता है, ने तय किया कि आज के दिन वह अपने भाई को श्राप नहीं देगी, जिसके कारण सांप चिडिय़ा के भाई को खा गया।
एक वर्ष के पश्चात् चिडिय़ा ने अपने भाई को श्रापना आरंभ कर दिया और सात वर्ष के पश्चात् सांप ने चिडिय़ा के भाई को उगल दिया, इस प्रकार चिडिय़ा ने अपने भाई की रक्षा की। इसलिए पूर्वांचल में पहले बहनें अपने भाइयों को कांटे से श्राप देती हैं फिर पूजा-अर्चना पूर्ण होने के पश्चात् पानी पीकर अपना दिया हुआ श्राप वापिस लेती हैं और भाई की लम्बी उम्र की कामना करती हैं ।
श्राप देने की परम्परा भारत के कई प्रांतों में भी प्रचलित है, जहां बहनें, भाई को श्राप देने के पश्चात् चावल के जलते हुए दीए को मुंह में रखती हैं और बाद में उसे निगल लिया जाता है। हर जगह भाई दूज का त्यौहार विभिन्न ढंगों से मनाया जाता है। देश के कुछ भागों में यह त्यौहार पूरे महीने भर चलता रहता है। दूज की शाम को कुंवारी व विवाहित सभी लड़कियां गोबर को गोलाकार रूप में दीवार पर चिपकाती हैं और प्रात-सायं गीत गाती हैं। दूज के बाद छठ को गोलाकार आकार को बड़ा करती हैं। पूर्णिमा तक आकार बड़ा किया जाता है, उसके बाद अमावस्या तक उस आकार को छोटा करती हैं और व्रत रखती हैं। व्रत वाले दिन हर लड़की चावल की पीडिय़ां बनाती हैं और सायंकाल हर लड़की अपने भाई की लम्बी उम्र की कामना करते हुए चावल के दानों को दूध के साथ निगलती है। उसके बाद नदी के किनारे जाकर लड़कियां अपनी-अपनी पीडिय़ां पानी में विसर्जित करती हैं। पश्चिम उत्तरप्रदेश व दिल्ली के के कुछ भागों में लड़कियां प्रात:काल चावल पीसकर चौकोर खाने के अंदर चार खाने बनाकर भाई और सूरज-चांद बनाती हैं उसके बाद चना, सुपारी, फूल चढ़ाकर इसकी पूजा की जाती है और भाई को टीका लगाकर लम्बी उम्र की कामना की जाती है। पंजाब में बहनें टीका लगाते समय भाइयों को खिचड़ी भी खिलाती हैं, जिसे शुभ माना जाता है। इस प्रकार भैया दूज का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और मजबूत करता है।