जब सियार हाथ मलता रह गया

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एक बार की बात है, जंगल में अकाल पड़ गया। अनेक पशु पक्षियों को खाने के लाले पड़ गये। एक सियार एक दिन का भूखा था। उसने खाने की थोड़ी-बहुत खोजबीन की लेकिन उसे जब कुछ न मिला तो वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। वह आसमान को देखते हुए भोजन किस तिकड़म से पाया जाए, यह सोच रहा था। असल में अभी तक बिना कोई खास प्रयास किये उसे भोजन मिलता रहा था, इसलिए अब जब आसानी से भोजन न मिलने की स्थिति आ गई तो उसे बड़ी चिंता सताने लगी।


वह लेटे-लेटे तिकड़में सोचने लगा। कैसे किसी को मूर्ख बनाए और भोजन प्राप्त करे? उसके दिमाग में यह बातें नहीं थीं कि ईमानदारी से मेहनत की जाए और भोजन की प्राप्ति के लिए कोई बढ़िया तरीका अपनाया जाए।


कुछ देर में एक कौआ आया। उसकी चोंच में एक पाव रोटी थी।  सियार के मुंह में पाव रोटी देखकर पानी आ गया। उसने सोचा कि कौए को मूर्ख बनाकर रोटी प्राप्त की जाए। सियार सोच रहा था कि कौए से प्यार से बातें की जाएं, कौआ बोलेगा तो मुंह खोलेगा और मुंह खोलते ही पाव रोटी नीचे गिर जाएगी। उसने कौए को संबोधित कर कहा,‘कौए भाई, बड़े दिनों बाद दिखाई दिए। क्या हाल हैं? तुम्हारी आवाज तो मुझे बड़ी अच्छी लगती है, और सुंदर तो तुम खूब हो ही।’


कौए ने कुछ क्षण सियार की ओर देखा। कौआ बड़ा होशियार था। उसने सोचा सियार आज तक तो इतनी मीठी बोली कभी नहीं बोला, जरूर कोई इसमें उसकी चाल है। कौए ने पाव रोटी अपने पंजों में दबाई और सियार से बोला,‘ठीक हूं, तुम बताओ मेरी इतनी तारीफ कैसे कर रहे हो? आजतक तो तुम इतना मीठा कभी नहीं बोले!’


सियार कौए की होशियारी से पस्ता हो गया, फिर भी उसने तमाम बहाने बनाते हुए कौए से बातें कीं। कौआ सियार से बातें भी करता रहा और पंजे में दबी पाव रोटी भी चोंच से तोड़-तोड़ कर खाता रहा। सियार ने पूछा,‘पाव रोटी कहां से लाए?’


कौए ने कहा,‘भाईसाहब, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। बड़ी दूर शहर से लाया हूं।’ तुम भी मेहनत करो, भोजन की तलाश में इधर- उधर जाओ तो तुम भी खाने को कुछ पा सकते हो।’


कौए की रोटी जब खत्म हो गयी तो वह सियार को रामराम करके उड़ गया। सियार हाथ मलता रह गया। उसे यह उम्मीद न थी कि कौआ अक्लमंद होगा।