नंगे पैर यानी बिना जूता या चप्पल पहने चलना हाईजीन और स्वास्थ्य दोनों ही के लिए लाभदायक होता है। विद्वान कहते हैं हरी घास पर प्रातःकाल चलने से आँखों की रौशनी बढ़ती है। इसीलिए सवेरे पार्क में बहुत से लोग यह क्रिया करते हुए दिखाई देते हैं।
बहुत से घरों में आज आधुनिक सुविधाओं वाले माडर्न रसोईघर बन गए हैं। वहाँ सारा कार्य खड़े होकर किया जाता है, इसलिए वहाँ जूता या चप्पल ले जाने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। अभी भी बहुत से परिवार ऐसे मिल जाएँगे जिनके रसोईघर में जूते-चप्पल ले जाने की मनाही है। वे मानते हैं कि जहाँ खाना बनता है वहाँ इन्हें ले जाने से शुद्धता नहीं रहती और इनके साथ कई कीटाणु घर में प्रवेश कर जाते हैं।
इसी तरह आज भी अनेक घर ऐसे मिल जाएँगे जहाँ घर के भीतर जूते आदि नहीं लाए जाते बल्कि घर का हर सदस्य उन्हें मुख्य द्वार के बाहर ही उतार कर घर में प्रवेश करता है। इसका कारण है कि वे अपने घर को बाहर की गन्दगी से बचाकर शुद्ध रखना चाहते हैं।
प्रायः सभी धर्मस्थलों में भी जूते-चप्पलों को बाहर उतारा जाता है। अधिकांश स्थानों पर उनके लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। यहाँ भी उन स्थलों की पवित्राता और शुद्धता मुख्य कारण होती है। इसी प्रकार के अन्य सभी धार्मिक आयोजनों में चाहे वे घर पर हों अथवा कहीं अन्यत्रा क्यों न हो रहे हों इन्हें बाहर ही उतारने का विधान है। घरों, दुकानों, फैक्टरी या किसी भी आयोजन में पूजा करते समय इन्हें उतार दिया जाता है। इस धार्मिक आस्था पर कोई भी प्रश्नचिह्न नहीं लगाता।
अस्पतालों के गहन चिकित्सा कक्ष यानी आई सी यू में रोगियों को बाहरी कीटाणुओं के आक्रमण से बचाने के लिए जूते-चप्पलों को उस कक्ष के बाहर ही उतारने का आदेश लिखा होता है।
नंगे पैर रहने से एनर्जी लेवल बढ़ता है और घुटनों एवं कूल्हों की हड्डियाँ मजबूत होती हैं। खाली पैर चलना एक प्रकार की एक्सरसाइज है। रोजाना आधा घंटा पैदल चलने से हार्ट की बीमारी, डायबिटीज और कैंसर जैसे रोगों से मुक्ति मिल सकती है।
कुछ लोग घर में भी खाली पैर घूमना पसंद करने लगे हैं क्योंकि इससे कई तरह के पाजिटिव इफेक्ट्स भी शरीर पर पड़ते हैं। गर्मी के दिनों में नंगे पैर चलना अधिक फायदेमंद होता है। यह शरीर को ठंडा रखता है। ऐसा भी देखा गया है कि बचपन में अधिक खाली पैर रहने से
बड़े होने पर पैर की तकलीफें कम होती हैं।
इन बातों में सार अवश्य है। इसे मान लेने से किसी प्रकार की हानि नहीं हो सकती। इस प्रकार नंगे पाँव चलने से पैर अवश्य गन्दे हो सकते हैं परन्तु उसके लाभ अधिक हैं।
जैन साधु आज भी बिना जूता पहने रहते हैं। वे एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा नंगे पैर ही करते हैं। उनका विचार है कि जूतों के नीचे आकर मरने वाले कई जीवों की हत्या के पाप से बचा जा सकता है।
कुछ लोग अपनी गरीबी या विपन्न अवस्था की लाचारी के कारण सड़कों पर घूमते हुए भी दिखाई दे जाते हैं। वे लोग भी प्रायः स्वस्थ ही रहते हैं।
हमारी पृथ्वी में हर तरह की धातुएँ पाई जाती हैं जो हमारे शरीर के लिए उपयोगी हैं। नंगे पैर चलकर हमें वे धातुएँ स्वतः मिल जाती हैँ जिनकी कमी हो जाने पर हम डाक्टरों के पास जाकर अपना अमूल्य समय व कमाया हुआ धन खर्च करते हैं और फिर उनके निर्देशानुसार उन्हें दवा के रूप में खाते हैं।
नंगे पैर चलने से पंजों, एड़ियों के प्रेशर प्वाइंट देखते हैं जो हमारे पैरों, टांगों को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। नंगे पैर चलने से हमें भूमि तत्व मिलता है जो हमें निर्भीक बनाए रखता है।
नंगे पैर चलना चाहे धार्मिक कारण से हो अथवा स्वास्थ्य के लिए हो, उसके पीछे भावना मनुष्य के कल्याण की ही होती है। इससे कोई हानि नहीं होती, इसलिए इसे अपनी आदत में शामिल कर लेना चाहिए।