फिजिकल फिटनेस की बात तो आम है लेकिन क्या आप जानते हैं, फिजिकल फिटनेस की तरह इमोशनल फिटनेस भी उतनी ही जरूरी है।
इमोशनल फिटनेस आपके मन का सौंदर्य बढ़ाती है। कैसे रख सकते हैं आप अपने को इमोशनली फिट? यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं जिन्हें फॉलो करके आप अपना इमोशनल बैलेंस बनाए रख सकती हैं।
करें इमोशनल वर्कआउट
मन से नकारात्मक भावनाओं को निकाल दें। ये नकारात्मक भावनाएं जैसे कि क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आदि मन में खरपतवार की तरह पनपती है जिन्हें बाहर निकाल फेंक कर ही हम स्वस्थ मन की कामना कर सकते हैं। फिजिकल फिटनेस के लिए जैसे योगा, एरोबिक्स व नृत्य के द्वारा टॉक्सिन बाहर निकाल दिए जाते हैं, इमोशनल फिटनेस के लिए अच्छी सोहबत, अच्छी किताबें, सकारात्मक सोच अपनाई जा सकती है।
वर्तमान में जिएं
जीवन समस्याओं से घिरा है लेकिन उनका समाधान भी हमें ही खोजना है। उन्हीं में उलझे रहने से आप अपना जीवन बोझिल बना लेते हैं। एक अच्छा रिश्ता आया था जिसे आपने कशमकश में गवां दिया। नीलेश को जॉब करते पंद्रह वर्ष हो गए हैं मगर उसे यही गम खाये जा रहा है कि न तो वो अब तक अपना घर बना पाया है । न ही पड़ोसी की जैसी शानदार गाड़ी खरीद सका……।
बीते दिन की और आने वाले दिनों की सोच में उलझे आप अपने को कितना इमोशनल स्ट्रैस देते रहते हैं यह शायद आप रिएलाइज तक नहीं करते। होना ये चाहिए कि आप सपने वो ही देखें जो पूरे हो सकते हैं। भविष्य की प्लानिंग जरूर करें लेकिन जीना सीखें वर्तमान में यह वक्त जो हमारे पास है, बहुत कीमती है। इसमें गहरे डूबकर जियें और जीवन का भरपूर लुत्फ उठाएं।
पहचानें अपनी क्षमता
कुदरत ने हम सभी को कोई न कोई खासियत जरूर दी है। हमें उसी को पहचानकर आगे बढ़ना है। ऐसे में हमें अपने फील्ड की ऊंचाइयों को छूने से कोई नहीं रोक सकता। बस मेहनत और लगन चाहिए। अपनी पसंद का कार्य करते हुए आपको बोरियत भी न होगी और एक एक्सट्रा चीज जो कुदरत ने आपको खासतौर से भेंट की है, के कारण आप आसानी से औरों को मात देते हुए आगे बढ़ सकेंगें। अपनी इस क्षमता को पहचानना आपके लिए अहम बात है।
भावनाओं को अभिव्यक्ति दें
हमें भावनाएं इसलिए मिली हैं कि हम केवल इंटैलिजेंट रोबो न लगकर इंसान दिखाई दें। भावनाएं मिली हैं सुप्त न रहकर खुलकर खेलने के लिए। रोना, गाना, हंसना, सिंपेथी दिखाना, प्यार करना ये सब भावनाओं का खेल है। जहां अच्छी भावनाएं हैं। बुरी भावनाएं भी व्यक्ति में इनबिल्ट होती हैं लेकिन उनको अपने विवेक से हरा कर ही व्यक्ति अच्छा कहलाता है और सच्ची खुशी भी हासिल कर पाता है।
मन में अक्सर किसी की बातें चुभ जाती हैं तब व्यक्ति भीतर ही भीतर बेहद घुटन महसूस करता है। कभी कभी आंखें भर आती हैं। ऐसे में आंसुओं को खुलकर बहने दें। इससे मन हल्का हो जाता है नहीं तो यह घुटन,क्रोध अवसाद, प्रतिशोध में तब्दील हो सकती है।
भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए संगीत एक अच्छा जरिया है। गानों में हर तरह के भाव होते हैं जो गाकर अभिव्यक्ति पाते हैं। गाने वाला ईश्वर से एकाकार जैसी भावना उसे ओत प्रोत परमानंद की स्थिति महसूस करता है ऐसा होने पर मन पवित्रा और सुंदर हो जाता है।
कई लोग धर्म में विश्वास करते हैं कई नास्तिक होते हैं, उन्हें धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं होता। कई अंधविश्वासी होते हैं तो कई ईश्वर को लेकर डांवाडोल की स्थिति में रहते हैं। उनका कनफ्यूजन होता है ईश्वर है या ईश्वर का कांसेप्ट मिथ्या है।
जो भी हो, अपनी अपनी मान्यता और विचारधारा है लेकिन अंधविश्वास मन को उलझा कर भीरू बना देता है। अंधविश्वास सिर्फ बुराई को बढ़ावा देते हुए व्यक्ति को सुदगर्ज भी बना देता है। सोच को कुंद और संकुचित कर देता है। इसके अनेक दुष्परिणाम उदाहरण स्वरूप मिलेंगे।
अध्यात्म व्यक्ति को समाज से ऊपर उठाकर एनलाइटन करता है। मन से राग द्वेष जैसे नकारात्मक भावों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। सोच को विस्तार देता है। जीवन को तटस्थ भाव से समझने की सलाहियत देता है। जब व्यक्ति अध्यात्म से जुड़ जाता है वो सांसरिक प्रपंचों को बेहतर ढंग से डील कर सकता है क्योंकि उसके इमोशंस उसके कंट्रोल में रहते हैं।