भारत में जगत जननी भगवती दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा, आराधना, उपासना और भक्ति की जाती है। इन स्वरूपों में एक स्वरूप महासरस्वती का भी है। महासरस्वती विद्या, बुद्धि, सुख और शांति की दाता हैं। उनका स्वरूप सौम्य है। इसी तरह शांत एवं सौम्य मुद्रा की प्रतिमा मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर नामक स्थान पर प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा हंस पर आरूढ़ है तथा पुस्तक धारण किये हुए है। लोकमान्यता में शारदा माता के नाम से प्रसिद्ध इस स्थान को भगवती दुर्गा का शक्ति पीठ कहा जाता है।
धर्मग्रन्थों के अनुसार भगवती सती ने जब यज्ञ कुंड में गिरकर आत्मदाह किया था तब उनके कंठ में शोभायमान हार जिस स्थान पर आकर गिरा वह स्थान ‘माई का हार के नाम से प्रसिद्ध हुआ जो कालांतर में मैहर कहलाने लगा। एक उल्लेख यह भी मिलता है कि मय दानव के वध के उपरांत भगवती दुर्गा ने इस स्थान पर विश्राम किया तथा अपने उग्र रूप को शांत किया। इसलिये यह स्थान मैहर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मध्यकाल में मैहर की शारदा मां की कीर्ति सारे उत्तर भारत में व्याप्त थी। वे मध्यकाल के दो महान योद्धा आल्हा-ऊदल की आराध्य देवी रही हैं। लोकमान्यता है कि विभिन्न युद्धों में विजय प्राप्त करने के लिये आल्हा ने शारदा माता को प्रसन्न करने के लिये घोर तपस्या की थी तथा अपने पुत्र इंदल की बलि दे दी थी। किवंदती है कि इस भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर मां शारदा ने इंदल को जीवित कर दिया था तथा आल्हा को अमर होने का वरदान दिया था। आज भी कई लोग यह कहते हुये पाये जाते हैं कि आल्हा आज भी जीवित है और वे प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में मां शारदा की पूजा करने आते हैं। रात्रि को मैहर के मंदिर में किसी को रहने और ठहरने नहीं दिया जाता है। इसके पीछे यही धारणा है कि आल्हा की पूजा और आराधना में कोई व्यवधान न हो। आल्हा जीवित है या नहीं यह विवाद और अविश्वास का विषय हो सकता है, पर इस बारे में दो राय नहीं हो सकती कि बुंदेलखंड के लोक जीवन में आल्हा का नाम अमर है। जिसका प्रमाम है जगनिक द्वारा रचित लोक काव्य आल्हखंड जिसे बुंदेलखंड के गांव-गांव में आज भी गाया जाता है।
मैहर इलाहाबाद-कटनी रेलमार्ग के बीच एक स्टेशन है, जहां रेल और बस दोनों से पहुंचा जा सकता है। शारदा माता का मंदिर त्रिकूट नामक एक पहाड़ी पर स्थित है जिस पर पहुंचने के लिये 565 सीढिय़ां चढऩा पड़ती है। पहले ये साीढिय़ां काफी ऊंची थी, पर अब मार्ग के कुछ स्थानों पर छोटी सीढिय़ां भी बना दी गई है। इस तरह अब सीढिय़ों की संख्या 1200 हो गयी है। कार, स्कूटर तथा अन्य वाहनों के लिये भी एक मार्ग भी बना दिया गया है।
शारदा माता के मूल मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी के आसपास हुआ। मंदिर की दीवार पर एक शिलालेख भी है पर अब मंदिर का मूल स्वरूप परिवर्तित हो गया है एवं दिन-प्रतिदिन यह मंदिर भव्य स्वरूप धारण करता जा रहा है। मंदिर में शारदा माता की भव्य एवं दिव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। प्रतिमा के बायीं ओर भगवान नरसिंह की भी एक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसी परिसर में काल भैरव की प्रतिमा है, दायीं ओर हनुमान जी की प्रतिमा है।
मां शारदा की लोकमान्यता कितनी अधिक है, इसका उदाहरण महान संगीतकार अलाउद्दीन खां की भक्ति है। वे वृद्धावस्था तक में प्रतिदिन 565 सीढिय़ां चढ़कर इस मंदिर में जाते थे तथा वहां सरोद वादन करते थे। मां शारदा या सरस्वती संगीत की भी देवी हैं। वे स्वयं वीणा वादिनी है। इसलिये यह धारणा है कि मां शारदा की कृपा से उस्ताद अलाउद्दीन खां विश्वविख्यात संगीताकर बने।
शारदा देवी को पुत्रदाता एवं संतान दाता माना जाता है। एक मान्यता यह भी है पुत्र प्राप्ति के लिये मां पार्वती ने देवी शारदा के बीज मंत्र का जाप किया था, जिससे भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई थी। पुत्र प्राप्ति तथा अन्य मनोकामनाओं को लेकर प्रतिदिन सैकड़ों नर-नारी मैहर में शारदा माता के दर्शन करने पहुंचते हैं।
एक परंपरा मनौती पूरी हो जाने पर अपनी संतानों या अपना स्वयं का मुंडन कराने की भी है। मंदिर के परिसर के बाहर पाहड़ी पर रोज सैकड़ों मुंडन होते हैं। चैत्र और आश्विन की नवरात्रियों में मैहर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में होती है। इन अवसरों पर विशाल मेले लगते हैं। मैहर के आसपास भी कुछ महत्वपूर्ण स्थान है, जिनमें गोलमठ, आल्हाताल, गणेश घाटी तथा आल्हा का अखाड़ा आदि उल्लेखनीय है।