कुपोषण के कारण

मानव शरीर एक मशीन है जिसमें विभिन्न क्रियाओं के सुचारू संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती जो भोजन से प्राप्त होती है। भोजन मनुष्य को जीवित रखने के लिए जरूरी है भोजन शरीर, निर्माण, सुरक्षा, मानसिक शांति के साथ अन्य कार्यों को करने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अत: भोजन मनुष्य की प्राथमिक तथा मूलभूत आवश्यकता है।
प्रत्येक मनुष्य का आहार अलग होता है। हर प्रांत का भोजन अलग है। भोजन चाहे जैसा भी लिया जा रहा हो परंतु वह संतुलित आहार होना चाहिए। संतुलित आहार में सभी पोषक तत्वों को सम्मिलित होना चाहिए। जैसे कार्बोज, प्रोटीन, वसा, विटामिन्स, लवण एवं पानी। आहार में एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी से शरीर कुपोषण का शिकार हो जाता है।
कुपोषण क्या है – कुपोषण विकृति जन्य दशा है जो एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी या अधिकता में लेने से हुई उत्पन्न स्थिति है जो आवश्यकता से अधिक या आवश्यकता से कम पोषाहार लेने अथवा असंतुलन के कारण होती है।


कुपोषण अव्यवस्थित भोजन, असंतुलित भोजन जो आवश्यकता से अधिक अथवा आवश्यकता से कम पोषक तत्वों को लेने के कारण होता है। उदाहरणत:


1. ऊर्जा प्रदान करने व शरीर को बढ़ाने वाले पोषक तत्वों की कमी से होने वाला सूखा रोग या प्रोटीन- कार्बोज की कमी से उत्पन्न रोग क्वाशिओरकर।


2. रोगों से बचाने वाले पोषक तत्वों की कमी से होने वाली खून की कमी (एनिमिया) और रतौंधी का रोग (विटामिन ए की कमी) इत्यादि। दूसरे देशों की अपेक्षा भारत वर्ष में मृत्यु दर 0-2 वर्ष के बच्चों में ज्यादा है तथा एक सर्वेक्षण के अनुसार 0-2 वर्ष  की उम्र के बच्चों में से आधे से अधिक कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।


कुपोषण के कारण : कुपोषण गर्भाधारण के साथ ही आरंभ हो जाती है। जिसमें मुख्य कारण 1. गर्भवती माताओं द्वारा पर्याप्त भोजन न ग्रहण करना। 

2. बहुत अधिक कार्यभार का होना। 

3. बार-बार बीमार पडऩा।


इस कारण उनके द्वारा जन्म दिये गये बच्चे छोटे होते हैं। जिनके कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती है। वे बच्चे जो कुपोषित माताओं के द्वारा जन्म दिये गये होते हैं वे शैशवावस्था में ही काल कवलित हो जाते हैं। यदि वे जीवित रहते हैं तो जीवन के दूसरे वर्ष में ही कई प्रकार से स्वास्थ्य संबंधी स्थायी समस्याओं से ग्रसित हो जाते हैं।
आरंभिक शैशवकाल में होने वाले कुपोषण का प्रभाव स्कूल जाने बच्चों में एवं वयस्क अवस्था में भी देखा जा सकता है जिसके कारण उनके स्वास्थ्य में, क्षमता में तथा गुणात्मक वृद्धि में पराभव देखा जा सकता है। छोटे एवं वयस्क महिलाएं जो बचपन में कुपोषित रहीं वे छोटे बच्चों को जन्म देती हैं। इस तरह कुपोषण एवं बीमारी का चक्र चलता रहता है।
अधिकांश लोगों में कुपोषण के पीछे बीमारियां तथा अपर्याप्त भोजन महत्वपूर्ण  कारण है। लेकिन इन कारणों के पीछे पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक कारण भी हैं –


1. भोज्य सामग्री की अनुपलब्धता : पर्याप्त भोजन सामग्री के उत्पादन व उनकी प्राप्ति में असमर्थता, 

2. कृषि विकास मे कमी, 

3. भोजन सामग्री के वितरण एवं विपणन में असमानता, 4. आर्थिक अक्षमता अशिक्षा व अज्ञानता, भोजन में मिलावट, भोजन संबंधी आदतें भी कुपोषण तथा अपोषण को जन्म देती है।


मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य व्यवहार में कमी – 


1. परिवार एवं समुदाय स्वास्थ्य प्रति पर्याप्त समय एवं स्थान नहीं देते।

2. मातृ एवं शिशु से संबंधित भोजन, भावनात्मक एवं विकासात्मक जरूरतों की उपेक्षा।
त्रुटिपूर्ण देखभाल एवं व्यवहार – 


1. बीमार बच्चों को पर्याप्त भोजन न देना, 

2. किशोर बालिकाओं एवं गर्भवती महिलाओं को उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधा का लाभ न देना, 3. स्वच्छता पर ध्यान न देना, 

4. शिशुवती माताओं को स्तनपान हेतु सहयोग न देना, 

5. पर्याप्त पूरक आहार नहीं देना, 

6. महिलाओं को पर्याप्त भोजन नहीं देना, 

7. गर्भावस्था के दौरान तथा गर्भावस्था के पश्चात् भोजन उपयोग के प्रति गलत अवधारणा एवं प्रयोग तथा महिलाओं पर अधिक जिम्मेदारी एवं बोझ का होना।


4. स्वच्छ जल, स्वच्छता तथा स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी- स्वास्थ्य सुविधाएं- निम्न स्तर का होना, महंगा होना, अनुपलब्धता और असहज होना। 


अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं जो निम्न हैं –
1. अपर्याप्त टीकाकरण, 

2. गर्भवती महिलाओं के परीक्षण का अभाव, 

3. बीमार एवं कुपोषित बच्चों की अपर्याप्त देखभाल एवं निदान व्यवस्था, 

4. अपर्याप्त जल/शुद्ध पेयजल एवं स्वच्छता का अभाव।