अजमेर से 11 किलोमीटर दूर राजस्थान के मध्य में स्थित पुष्कर धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्रा पर उभरता जा रहा है। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे पुष्कर क्षेत्रा में, एक ओर रेतीले टीले भी हैं। सुन्दर फूलों एवं छायादार पेड़ों से आच्छादित पुष्कर घाटी विहंगम नजारों से सरोबार कराती है। तीन ओर से पर्वतीय सुरम्य घाटी को नाग पर्वतीय क्षेत्रा कहा जाता है।
समुद्र तल से 1580 फुट की ऊंचाई पर स्थित पुष्कर तीर्थ, पुष्करराज नाम से भी जाना जाता है। चारों ओर से प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पुष्कर तीर्थ अपनी नयनाभिराम झील के लिये भी प्रसिद्ध है जहां लाखों लोग धार्मिक दृष्टि से लाभान्वित होने डुबकी लगाने हेतु आते हैं।
पुष्कर विदेशी सैलानियों को भी बहुत अच्छा लगता है। यही कारण है कि विदेशी सैलानी गर्मी इत्यादि की परवाह नहीं करते हुए पूरे वर्ष भर आने-जाने का क्रम बनाये रखते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पुष्कर में जबरदस्त मेला लगता है जो अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप लिए होता है। इस मेले का एकादशी तिथि से पूर्णिमा तक आयोजन रहता है। धार्मिक भावना के वशीभूत लोग जहां मेला अवसर पर स्नान-ध्यान में रत रहते हैं, वहीं दूसरी ओर मेले के उद्देश्य से आये लोग ऊंट, घोड़े, बैलों आदि को खरीदते हुए देखे जा सकते हैं।
इस अन्तर्राष्ट्रीय मेले में, विदेशी सैलानियों की उपस्थिति में ऊँट तथा घोड़ों आदि की दौड़ भी होती है। सर्कस, विविध प्रकार के छोटे बड़े झूले, मौत का कुआं, जादूगर, कालबेलिया नृत्य सहित विविध रंगों की छटाएं, मेला अवसर पर बिखरी मिलती हैं। राजस्थान के ग्रामीण अंचल के लोग अपने आंचलिक स्वरूप में लोक-प्रस्तुतियां देते हुए नजर आते हैं जिनका दृश्यांकन-फिल्मांकन विदेशी लोग बड़े उत्साह से करते हैं। इस मेले की सार-सम्हाल तथा व्यवस्था राज्य सरकार के हाथों होती है।
मुगल शासक औरगंजेब ने अपने शासन के दौरान अनेकों हिन्दू मन्दिरों को ध्वस्त करवाया था। इसी क्रम में औरगंजेब ने पुष्कर के वराह मन्दिर को भी नुकसान पहुंचाया। पश्चात् वह कनिष्ठ पुष्कर पहुंचा जहां हाथ, मुंह धोकर अपनी थकान मिटाने लगा, तभी उसे पता चला कि उसकी दाढ़ी के बाल सफेद हो गये हैं। फलस्वरूप औरगंजेब ने इस स्थान विशेष को चमत्कारिक मानते हुए पुष्कर के पाराशर ब्राह्मणों को बावन हजार बीघा जमीन दान दी। यह सब वृतान्त ब्राह्मण, पुरोहितों के पास सुरक्षित ताम्र-पत्रा व बहियों में देखे जा सकते हैं।
पुष्कर तीर्थ क्षेत्रा में 24 कोस परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि पुष्कर तीर्थ के दर्शन मात्रा से ही व्यक्ति पाप रहित हो जाता है किंवदन्ति अनुसार पुष्कर में पितरों का श्राद्ध करने पर पितर ब्रहमा के एक कल्प तक तृप्त रहते हैं। अपनी पत्नी के हाथों से दिये हुए पुष्कर जल से संध्या करके, गायत्रा मंत्रा का जाप करने वाला व्यक्ति सम्पूर्ण वेदों के अध्ययन के पश्चात् मिलने वाले फल के बराबर पुण्य प्राप्त करता हैं।
धार्मिक मान्यतानुसार पुष्कर तीर्थ पर एक दिन संध्या करने पर 12 वर्षों तक की संध्या के बराबर उपासना का फल मिलता है।
पुष्कर झील (जो पुष्कर राज के स्वरूप के रूप में जानी जाती है) में, भक्त-जनों के स्नानार्थ 52 घाट बने हुए हैं। धार्मिक दृष्टि से इन में से तीन गऊ घाट, ब्रहम घाट तथा वराह घाट का अत्यन्त महत्त्व है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की जल-झुलनी एकादशी के दिन सभी समाज के मन्दिरों से भगवान की मूर्तियों को आस्था के साथ लाया जाता है और गऊघाट पर स्नान अभिषेक किया जाता है। हिन्दू नव-वर्ष के दिन गऊ घाट पर पुष्कर राज का विशेष श्रृंगार, पूजा, अभिषेक किया जाता है। प्रत्येक महीने की एकादशी तिथि को संध्याकाल अवसर पर गऊ घाट पर हरि कीर्तन किये जाने की परम्परा है।
गऊघाट पर प्राचीन शिवलिंग एवं कल्याण जी का मन्दिर भी दर्शनीय है। सिखों के दसवें गुरू गोविन्द सिंह ने इसी घाट पर गुरू ग्रंथ साहब का पाठ किया था। पुष्कर राज की चमत्कारिता से प्रभावित होकर जार्ज पंचम की पत्नी क्वीन मैरी ने श्रद्धा के वशीभूत गऊ घाट पर जनाना घाट बनवाया। महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्रा तथा इन्दिरा गांधी आदि की अस्थियों के अवशेष गऊ घाट पर ही विसर्जित कराये गये। गऊ घाट के अलावा ब्रहम तथा वराह घाट भी भक्तजनों की श्रद्धा के केन्द्र हैं।
पुष्कर के दर्शनीय स्थल
मूलतः पुष्कर सनातन मतावलंबियों का बहुचेतन केन्द्र है जहां अनगिनित मंदिरों का वजूद है। लगभग छोटे-बड़े पांच सौ मन्दिरों के इस प्रसिद्ध शहर में ब्रहमा मंदिर श्रद्धालुओं का मुख्य प्रतिपाद्य होता है। इसके अलावा वराह मन्दिर, पुरा नारंग नाथ मन्दिर, अटपटेश्वर महादेव, रमा-बैकुण्ठ मन्दिर तथा सावित्रा मंदिर प्रसिद्ध हैं।
ब्रह्मा मंदिर
ब्रह्मा मंदिर का पुननिर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ। विश्व के एक मात्रा पौराणिक ब्रह्मा मंदिर को वर्तमान स्वरूप सन् 1809 में सिंधिया के मंत्रा गोकुलचन्द ने प्रदान करवाया। मंदिर में ब्रह्मा की आदमकद चतुर्भुज मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर की दीवारों पर सरस्वती के साथ मोर की सवारी करते हुए ब्रह्मा के आकर्षक भित्ति चित्रा दर्शनीय हैं। मंदिर के कोने से एक गुफा जाती है, जहां भगवान शिव का मंदिर हैं। निज मण्डप में चांदी के सिक्के जड़े हुए हैं।
विष्णु वराह मंदिर
यह पुष्कर का प्राचीन मंदिर है जहां भगवान वराह का स्वयं प्रकट विग्रह है। दसवीं शताब्दी में राजा रूदादित्य ब्राह्मण ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 13वीं शताब्दी में चौहान राजा अरणोराज ने प्रदान करवाया। इस मंदिर ने कई बार यवन आक्रमण झेला। मंदिर को किलेनुमा रूप महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह ने प्रदान करवाया। मुगल शासक औरगंजेब ने भी इस मंदिर को नष्ट करने का पूरा प्रयास किया था।
अटपटेश्वर महादेव
यह चमत्कारिक शिवलिंग जमीन के अंदर, भूगर्भ में है। यहां का वातावरण बिलकुल शांत तथा वातानुकूलित प्रतीत होता हैं, ब्रह्म तथा वराह मंदिर की भांति यह भी अति पुरातन मंदिर है।
रंगजी मंदिर
दक्षिणी शैली में बने इस पुरातन मंदिर में भगवान श्री कृष्ण, देवी लक्ष्मी एवं गोदम्बा की प्रधान प्रतिमाएं हैं। यहां रंगनाथ जी एवं रामानुजाचार्य की प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं। चैत्रा मास के कृष्ण पक्ष में यहां ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है।
रमा बैकुण्ठ मंदिर
यह मंदिर भी दक्षिण शैली में निर्मित है। यह रामानुज संप्रदाय का मंदिर है। निज मंदिर में भगवान विष्णु, लक्ष्मी एवं गोदम्बा की प्रतिमाएं हैं। निज-मंडप की परिक्रमा में दुर्लभ चित्राकारी देखते ही बनती है। यहां स्वर्णपत्रा से जुड़ा गरूड़ स्तम्भ दर्शनीय है। ब्रह्म मुहूर्त एवं सायंकाल में भगवान का प्रसाद यहां वितरित किया जाता है जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
सावित्रा मंदिर
ब्रह्मा मंदिर के पीछे स्थित पहाड़ी पर सावित्रा मंदिर स्थित है जो ब्रह्मा जी की पहली पत्नी का मंदिर है। सीढ़ियों की सहायता से इस मंदिर की यात्रा तय की जा सकती है। खोपरें के गट में मौली की बत्ती डालकर घी का दीपक यहां किया जाता है। सुहागिनें अपने सुहाग की अमरता की कामना के वशीभूत होकर यहां श्रद्धावश पूजा इत्यादि करती हैं। मंदिर से पुष्कर झील तथा रेगिस्तान का विहंगम नजारा देखा जा सकता है।
असंख्य धर्मशालाओं, होटल, लॉज, विश्रामगृहों की सुविधाओं से युक्त पुष्कर तीर्थ पर ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। साथ ही हर प्रकार के शाकाहारी भोजन की भी व्यवस्था यहां सुलभ है। पुष्कर अजमेर के कारण देश के प्रमुख नगरों से रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है। विदेशी पर्यटकों की आश्रय स्थली बनता जा रहा पुष्कर तीर्थ न केवल भारतीय संस्कृति का विश्व में परचम लहरा रहा है बल्कि पौराणिक भारत की पुनप्रर्तिष्ठा का संदेश भी दोहरा रहा है।