राम का लोक कल्याणकारी स्वरूप

अवतारों की भूमि भारत में राम का जीवन वृत्तांत सर्वाधिक आदर्श इसलिए माना जाता है कि संभवतरू उनके जीवन का हर क्षण लोक कल्याणकारी रहा है। यही कारण है कि वे मंदिरों एवं महाकाव्यों में तो प्रतिष्ठिड्ढत रहे हीए हर भारतवासी के मन में भी गहराई तक प्रतिष्ठिड्ढत हैं। मंदिरों और महाकाव्यों. महाग्रंथों ने उन्हें मुक्तिदाता माना तो आम आदमी के लिए वे हर संकट और हर विपत्ति के तारणहार बने हुए हैं। कष्टड्ढ में सबसे पहले राम के नाम की याद आना ही इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।


राम का लोक कल्याणकारी स्वरूप उनके बचपन से ही प्रकट होता है। विश्वामित्र के साथ वन में जाकर ताड़का आदि का वध करना उनके इसी स्वरूप को दर्शाता है। उनका यह स्वरूप आम आदमी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने का रहा है।



वनवास का प्रसंग भी कुछ इसी प्रकार का है। राजपाट छोड़कर वन गमन करने के पीछे का उद्देश्य भी यही था कि साधारण व्यक्ति को शक्ति एवं अहंकार से उपजे अत्याचार और अनाचार से मुक्ति दिलाई जा सके। वनवास से लौटने पर सीता को त्यागने की कथा भी लोकमानस को संतुष्टड्ढ करने का उदाहरण है। उत्तर रामचरित में राम के इस निर्णय की सुंदर विवेचना की गई है। सीता की एक सखी बासंती भगवान राम से पूछती है. आपने सीता का निर्वासन क्यों कियाघ् राम का उत्तर था लोक को सीता का अयोध्या में रहना सहन नहीं था। बासंती ने फिर पूछा. इसका क्या कारण हैघ् राम का उत्तर था यह तो लोक ही जानें कि उन्हें सीता की अयोध्या में उपस्थिति स्वीकार क्यों नहीं थी।



राम का यह लोककल्याणकारी स्वरूप साधारण नहीं थाए बल्कि उसके पीछे उनके सर्वस्व त्याग की भावना थी। बचपन में जब उनके खेलने.कूदने के दिन थे तब वे वनों में विश्वामित्र के साथ लोक कल्याण के लिए राक्षसों से युद्ध कर रहे थे। युवावस्था में जब वास्तविक उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें अयोध्या के राजा के रूप में सुख का उपभोग करना था तब वे जंगलों में भटके तथा जन कल्याण के लिए वानरों की साधनहीन सेना को लेकर दुर्दांत दानवों और राक्षसों से जा भिड़े। अयोध्या के जब शासक बने तो गर्भवती पत्नी को त्याग दिया। पुत्र का मुंह देखने की लालसा सबको होती है पर राम को तो अपने पुत्र के जन्म की सूचना ही दूसरों से मिली।



भगवान राम का पूरा जीवन वृत्तांत ही दूसरों के दुरूख अनुभव करने तथा दूसरे के दुरूख दूर करने का वृत्तांत है। इसके लिए उन्होंने स्वयं ही कष्टए दुरूख झेले। लोक संतुष्टि के लिए उन्होंने सीता का त्याग किया पर स्वयं सीता की पीड़ा और व्यथा को अनुभव भी करते रहे। शायद यही कारण था कि लव.कुश से मिलने के बाद वे सीता को मनाने पहुंचे पर इस अवसर पर भी उन्हें दुरूख मिला और सीता सदासर्वदा के लिए यह संसार छोड़कर धरती में ही समा गईं।  राम का यह लोककल्याणकारी स्वरूप भारतीय जनमानस में आज भी रचा.बसा है। सदियों से उनका यह लोककल्याणकारी स्वरूप आदर्श और प्रेरणा का प्रतीक रहा है। शायद यही कारण है कि राम की कथा और उनके कल्याणकारी स्वरूप पर जितने ग्रंथ लिखे गए उतने किसी अवतार के बारे में नहीं लिखे गए। कवियों और साहित्यकारों ने जहां उनकी भगवान के रूप में वंदना कीए वहीं उन्हें मार्यादा पुरुषोत्तमए आदर्श  पुरुष तथा राष्टड्ढ्र नायक के रूप में भी चित्रित किया गया। हर साहित्यकार ने उनके लोक कल्याणकारी स्वरूप को किसी न किसी रूप में प्रस्तुत अवश्य किया। भारतीय जनजीवन में भगवान राम का लोककल्याणकारी स्वरूप कितनी गहराई तक बैठ गयाए इसका प्रमाण हर रोज हमारे आसपास ही दिखता है। यदि कोई साधारण.सी चोट भी लगती है तो हमारे मुंह से सबसे पहले यही निकलता है. हे राम।