‘प्राणायाम‘ की परिभाषा देते हुए महर्षि पातंजलि ने ‘योगसूत्रा‘ के साधनपाद सूत्रा में लिखा है-‘श्वासोच्छवास की गति का विच्छेद करके प्राण को रोकने का नाम ही प्राणायाम है।‘
प्राणायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है और अतिरिक्त मेद कम हो जाता है। प्राणायाम से दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है एवं स्मरण शक्ति का विकास होता है। मानसिक रोगों को दूर करने का प्राणायाम से बढ़कर अन्य कोई दूसरा उपाय नहीं होता।
प्राणायाम से पेट, यकृत, मूत्राशय, छोटी-बड़ी आंतें और पाचनतंत्रा भली भांति प्रभावित होते हैं और कार्यक्षम बनते हैं। इससे नाड़ियां शुद्ध हो जाती हैं तथा शारीरिक सुस्ती दूर होती है। जठराग्नि प्रदीप्त होकर शरीर स्वस्थ बनता है। मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है। वस्तुतः प्राणायाम आत्मानन्द, आत्मप्रकाश और मानसिक शान्ति को प्रदान करके व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से निखार डालता है।
फेफड़ों को मजबूत बनाने और वायु संबंधी विकारों को दूर करने के लिए गहरे श्वांस लेना (डीप ब्रीदिंग) भी प्राणायाम की ही एक किस्म मानी जाती है। अगर प्राणायाम के माध्यम से जीवनी शक्ति की मात्रा को बढ़ाया जाये तो न केवल रूग्णता पर ही विजय पायी जा सकती है बल्कि व्यक्तित्व को प्रखर, तेजस्वी और दिव्य शक्ति से सम्पन्न भी बनाया जा सकता है।
प्राणायाम के अनेक प्रकार हैं। विभिन्न प्रयोगों के लिए उनकी विविध प्रक्रियाएं भी निर्धारित हैं। सूर्य भेदन, उज्जयी, सीत्कारी, शीतली, भ्रस्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा एवं प्लाविनी को प्राणायाम अर्थात् कुम्भक का प्रकार माना गया है। प्रत्येक प्रक्रिया स्वयं में अनेक गुणों को धारण करने वाली हुआ करती है।
प्राणायाम प्राण नाड़ियों को साफ करके उनकी अवरूद्धता को दूर कर अनेकानेक लाभों को प्रदान करता है। नित्यकर्म से निवृत्त होकर ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सुखासन में बैठ जाएं। कमर और मेरूदण्ड को सीधा रखते हुए आंखों को अधखुली रखें। दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को बंद कर बायें छिद्र से श्वांस खींचें और उसे धीरे-धीरे नाभिचक्र तक ले जायें। ध्यान पूर्वक इस आसन में बैठकर श्वांस को खींचने (पूरक क्रिया) तथा श्वांस को छोड़ने (रेचक क्रिया) के साथ ही सांस को रोकने (कुम्भक क्रिया) का अभ्यास करते रहें।
इसके बाद नाक के बायें छ्रिद्र से श्वास को बाहर निकालते रहें। श्वास छोड़ने की गति एकदम धीमी होनी चाहिए। कुछ देर श्वास बाहर रोके रहें अर्थात् बिना श्वास के रहें। इस क्रिया को तीन बार तक करें। इसके बाद अंगूठे को दाहिने नाक के छेद से हटा लें और अनामिका अंगुली से बायें नासिका के छिद्र को बंद कर दाहिनी नासिका छिद्र से तीन बार पुनः पूरक, कुम्भक एवं रेचक की क्रिया को करें।
इस क्रिया के उपरान्त दोनों नासिका छिद्रों को छोड़ दें एवं सहज ढंग से दोनों में लम्बी-लम्बी श्वास खींचें और थोड़ी देर भीतर रोक कर तथा मुंह खोलकर उसे बाहर निकाल दें। यह क्रिया मात्रा एक बार करें। इन क्रियाओं को नाड़ी शोधन प्राणायाम कहा जाता है।
प्रातःकाल पूर्व दिशा में मुंह करके सहज आसन में ध्यान की मुद्रा में बैठकर आंखें बंद कर लें और नासिका के दोनों छिद्रों से धीरे-धीरे श्वांस खींचना शुरू कर दें। जब श्वांस पूरी तरह खींच लें तो उसे कुछ देर भीतर की ओर रोकें रहें। उसके बाद कुम्भक एवं रेचक की क्रियाओं को करें। इस विधि को प्राणाकर्षण प्राणायाम कहा जाता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम तथा प्राणाकर्षण प्राणायाम के करते रहने से अनेक लाभ होते हैं साथ ही व्यक्तित्व में परिवर्तन एवं आत्मबल में भी स्वाभाविक परिवर्तन होता है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से निम्नांकित लाभ दृष्टिगोचर होते हें।
प्राणायाम से दीर्घ आयु की प्राप्त होती है तथा स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही मानसिक रोग भी दूर होते हैं।
प्राणायाम से पेट, यकृत, मूत्राशय, छोटी-बड़ी आंतें और पाचनतंत्रा भली भांति सुदृढ़ होते हैं।
प्राणायाम से नाड़ियां शुद्ध होकर शारीरिक सुस्ती को दूर करते हैं। इससे सम्पूर्ण दिन तन एवं मन दोनों ही खिले-खिले रहते हैं।
प्राणायाम के निरन्तर अभ्यास से ज्ञानतंत्रा को शक्ति मिलती है तथा मन की चंचलता दूर होकर मन एकाग्र होने लगता है।
प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर के सभी अवयव सम्पुष्ट होते हैं तथा अनेक प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है।
इस प्रकार प्राणायाम के नियमित अभ्यास से व्यक्तित्व के साथ-साथ शारीरिक सौष्ठव का भी निखार होता है। आज के समय में युवा एवं युवती दोनों को ही प्राणायाम का नियमित अभ्यास करते हुए उनके लाभों को उठाना चाहिए।