हिन्दू धर्म में राम और कृष्ण का स्थान

हिन्दू जाति ने राम और कृष्ण दो ऐसे महामानव महापुरूष पैदा किये हैं जो हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, रीतिरिवाज और जन मानस में इस कदर रच बस व घुल मिल गये हैं कि इन के बगैर हिन्दू धर्म अधूरा व पंगु है। एक आम आदमी अपने परिवार के लालन पालन व समस्याओं को सुलझाने में इतना व्यस्त रहता है कि उसको अच्छे कामों जैसे सत्संग, स्वाध्याय, तीर्थाटन, प्रार्थना, उपासना आदि के लिये न तो समय है, न साधन है और न ही रूचि है। वह राम और कृष्ण को ही भगवान मानता है और इन की पूजा अर्चना कर के ही अपने को धन्य मानता है और शांति प्राप्त करता है।


यह ठीक भी है क्योंकि इन दोनों के कार्य और कृत्य इतने श्रेष्ठ, प्रजा हितकारी और समाज कल्याण के थे कि उनको याद कर मस्तक अपने आप नम जाता है। वास्तव में राम और कृष्ण मूर्तिमान धर्म थे। अगर हिन्दू जाति अब तक जीवित है तो इसका एक बड़ा कारण यहां राम और कृष्ण का अवतार लेना है।


राम के समय में कई राक्षसों ने बड़ा उत्पात मचा रखा था जो आम जन को परेशान करते थे, संत महात्माओं, ऋषिमुनियों के यज्ञों में विघ्न डालते थे। राम ने सब राक्षसों को मार कर शान्ति कायम की, धर्म की स्थापना की ओर लोगों को निर्भय कर सुख पहुंचाया। राम ने सारे काम मर्यादा में रहकर किये जिस से वह मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। उनका जीवन आदर्श सभी के लिये शिक्षाप्रद है। उन्होंने धर्म का ऐसा मार्ग प्रशस्त किया जो सहस्त्रों वर्ष बीत जाने पर भी करोड़ों-करोड़ों मनुष्यों को सत्य व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रहा है।


राम ने जिस जाति के निषाद राज को लगाया, शबरी भीलनी के झूठे बेर खाये, अर्द्ध सभ्य जातियों वानर, भालू, भील आदि के साथ मैत्रा की और उनको बराबरी का दर्जा दिया। राम ने अहिल्या जो इन्द्र द्वारा धोखे से बलात्कार किये जाने से दुख एवं मानसिक वेदना के कारण शिववत हो गई थी, का उद्धार किया। राम ने अहिल्या को सांत्वना दी और बलात्कारी इन्द्र की कड़े शब्दों में निंदा की। उन्होंने मरणासन जटायु के सिर पर हाथ रखा, उसको सांत्वना दी और मरने पर उसका अपने हाथों से विधिपूर्वक दाह संस्कार किया।


राम ने किसी के राज्य पर अधिकार नहीं किया, बाली को मारा तो उसके भाई सुग्रीव को राजा बनाया और पुत्रा अंगद को युवराज, रावण को मारा तो उसके भाई विभीषण को राजा बनाया। राजा लोगों के चलन के विपरीत राम ने एक पत्नी व्रत धारण किया। सीता बनवास के पश्चात जब अश्वमेध यज्ञ किया, तब भी राम ने मंत्रियों, सभासदों, गुरू वशिष्ठ के कहने के बावजूद दूसरा विवाह नहीं किया और सीता की सोने की मूर्ति बनवा कर पत्नी के स्थान पर बिठाया।


राम के मन में शत्राओं के प्रति भी बैरभाव नहीं था। रावण के वध के पश्चात वे विभीषण से कहते हैं-बैर-भाव जीवन काल तक ही रहता है, मरने के बाद उस बैर का अंत हो जाता है। इसका संस्कार करो। इस समय यह जैसे तुम्हारा स्नेह पात्रा है वैसे ही मेरा भी स्नेह भाजन है। राम स्वयं रावण की वीरता, उत्साह की प्रशंसा करते हुए उसे शूरवीर योद्धा कहते हैं। रामराज श्रेष्ठ और उत्कृष्ट शासन का पर्याप्त बन गया है। राम का नाम लेते तथा उनका चित्रा देखते ही मन में एक अजीब खुशी होती है और आनंद मिलता है। इसीलिये कहा गया है कि राम से बड़ा राम का नाम है।


भारत के हर प्रदेश में अपनी अपनी भाषा में रामायण है कि जिसकी कथा होती रहती है और लोग बड़ी संख्या में श्रद्धा और उत्साह से सुनने पहुंचते हैं। राम का जन्म दिन रामनवमी तथा रावण पर विजय-दशहरा पूरे भारत में बड़ी धूम धाम से मनाये जाते हैं। दशहरा के दौरान स्थान स्थान पर रामलीलाएं होती हैं जिस में पूरी रामायण दिखाई जाती है। इस से लोगों को प्रेरणा मिलती है और राम तथा उनके काल की याद ताजा हो जाती है। तभी तो चर्चिल ने कहा था कि अगर हिन्दुओं को समाप्त करना है तो दशहरा मनाना बंद करवा दो। राम राम पूजा का मंत्रा बन चुका है और कई लोग इस का जाप भी करते हैं। राम राम अभिवादन का वाक्य भी है।


कृष्णा के काल में समाज में कई बुराइयां आ गई थी, अधर्म में बढ़ गया था। कई राजा अत्याचारी हो गये थे जो प्रजा पर अत्याचार करते थे। ऐसे ही कई राक्षस स्वछंद घूमते थे जिन्होंने आतंक मचा रखा था और लोगों को परेशान करते थे। कुछ राजाओं ने सैंकड़ों औरतों को अपने निवास में रखा हुआ था जो एक प्रकार से नारकीय जीवन जी रही थी। कृष्ण ने इन सबको मार कर धर्म की स्थापना की और लोगों को निर्भय कर सुख पहुंचाया तथा औरतों को मुक्त कराया।


कृष्ण को अपने 125 वर्ष के लम्बे जीवन में बड़े संघर्ष करने पड़े, कई लड़ाइयां लड़नी पड़ी परन्तु उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा और अपने उद्देश्य में सफल रहे। इसको उन्होंने गीता में स्पष्ट किया है ‘जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं अर्थात प्रकट करता हूं क्योंकि साधु पुरूषों का उद्धार करने के लिये और दूषित कर्म करने वालों का नाश करने के लिये तथा धर्म स्थापना करने के लिये युग युग में प्रकट होता हूं।


राम की तरह कृष्ण ने भी किसी के राज्य पर अधिकार नहीं किया। कंस को मारा तो स्वयं राजा नहीं बने, कंस के पिता उग्रसेन को राजा बनाया। जरासंध को मारा तो राजा उस के बेटे को ही बनाया। राम की तरह कृष्ण में भी नम्रता, सद्भावना और सहानुभूति की प्रचुरता थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कृष्ण ने अतिथि सत्कार का काम संभाला और अतिथियों के चरण धोये। महाभारत के युद्ध में कृष्ण अर्जुन के सारथी बने।


कृष्ण जन स्वास्थ्य के प्रति भी सजग थे। उन्होंने गोधन के महत्त्व को समझा और लोगों को भी समझाया। उनको गऊों से बड़ा लगाव था। वह गऊों के बीच खुश रहते थे, उनको चराने में सुख महसूस करते थे। इस कारण वह गोपाल कहलाये। कृष्ण ने कालिया नाग को इसलिये हराकर भगा दिया क्योंकि वह अपने किसी कारखाने के द्वारा यमुना के जल को प्रदूषित कर रहा था। कृष्ण बांसुरी बजाने में भी बड़े प्रवीण थे। उनकी बांसुरी की धुन और तान सुन कर न केवल स्त्रा पुरूष बल्कि पशु पक्षी भी खिंचे चले आते थे। बांसुरी बजाने के कारण ही कृष्ण को मुरली मनोहर भी कहा जाता है।


कृष्ण का जन्म दिन जन्म अष्टमी भी पूरे भारत में बड़ी धूम धाम, श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। उनके जीवन से संबंधित श्रीमद भागवत की कथा शहर शहर गांव-गांव में होती रहती है जिस को सुनने लोग बड़ी संख्या में आते हैं। कृष्ण के नाम में भी एक विचित्रा आकर्षण है और नाम लेते ही मन में प्रसन्नता छा जाती है।


कृष्ण नाम भी मंत्रा के रूप में जपा जाता है। जय श्री कृष्ण अभिवादन वाक्य भी बन गया है। मध्य युग में राम और कृष्ण के कई उच्च कोटि के भक्त हुए हैं जिन्होंने इन दोनों की भक्ति का पूरे भारत में खूब प्रचार किया और इन पर कई ग्रंथ भी लिखे। कृष्ण की गीता विश्व भर के ज्ञानियों और विचारकों को प्रेरणा दे रही है। अनेक लोगों ने गीता के ज्ञान से जीवन को उच्च और श्रेष्ठ बना लिया।


लेख का समापन भाई परमानन्द के शब्दों से कर रहा हूं, अगर राम और कृष्ण न होते तो रामायण और महाभारत का साहित्य न बनता। राम और कृष्ण हिन्दू जाति की आत्मा हैं। हिन्दुओं के घरों से, उनके दिलों से, उनके इतिहास से और उनकी भाषा से राम और कृष्ण का जीवन निकाल दीजिये तो हिन्दू जाति मुर्दा हो जायेगी। इसके प्राण पखेरू उड़ जायेंगे। राम और कृष्ण का जीवन इतना ऊंचा था कि लम्बे समय तक हिन्दू जाति में कोई और ऐसा न हुआ जिस के जीवन में उनके गुणों की झलक दिखाई देती हो।