पंच पर्व युग्म दीपावली

दीपावली में पांच प्रमुख पर्व एक साथ मिलते हैं। यह पंच पर्व युग्म दीपोत्सव भारत का प्रमुख त्योहार है। यह खुशियों से सराबोर रहता है। घर से लेकर बाजार तक खुशियां बिखरी रहती हैं।


हिन्दुओं के कार्तिक मास में पड़ने वाला यह त्योहार घर से लेकर बाहर तक धन बरसाता है। किसान के घरों में अन्न एवं नौकरी पेशा के घर में बोनस के रूप में धन भरा रहता है। इस धन का बहाव बाजार की ओर होता है इसलिए बाजार भी उल्लसित रहता है। सभी त्योहारों में दीपाली सर्वथा निराली है।


दीपावली के समय एक-एक कर पांच त्योहार लगातार मनाए जाते हैं। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज यह पांच पर्व युग्म कहलाता है। उसका संबंध धन, स्वास्थ्य, स्वच्छता, गोवर्धन पूजा व भाई बहन से है। धनतेरस स्वास्थ्य के देवता धन्वन्तरि का जन्म दिन है। वे अमृत कलश लिए प्रकट हुए, इसलिए धातु पात्रों या आभूषणों की खरीदी की जाती है।


नरक चतुर्दशी अकाल मृत्यु से बचाता है। दीपावली में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। गोवर्धन कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से बचाया था इसलिए कृष्ण व उनके गोवंश की पूजा की जाती है। भैया दूज यम द्वितीया में भाई बहन एक दूसरे की पूजा करते हैं। इस दिन चित्रागुप्त की पूजा भी की जाती है।


भगवान राम ने दशहरे के समय रावण जो आततायी था उस पर विजय पाई थी, इसलिए बुराई के प्रतीक दशशीश दशमुख रावण का पतुला जलाया जाता है। दशहरे के उपरान्त राम वापस अयोध्या लौटे थे और उनका राजतिलक हुआ था जिससे प्रसन्न प्रजा ने सात दिनों तक दीप जलाये थे। कालांतर में यह प्रतिवर्ष इसी कार्तिक मास में निर्धारित तिथियों पर मनाया जाने लगा और दीपावली नाम पाया।


यह भी मान्यता है कि महान दानी महाबली को वामन अवतारी विष्णु ने पाताल लोक का राजा बनाया था और इन्द्र का स्वर्ग का सिंहासन बच गया था इसलिए खुशी में तब महाराज इन्द्र ने दीप जलाए थे। समुद्र मंथन के समय तेरस के दिन धन्वन्तरि एवं अमावस्या के दिन लक्ष्मी प्रकट हुई थी, इसलिए उसी तिथि पर कार्तिक मास में दीपावली मनाई जाती है।
इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की रचना की थी, यह आर्य समाज संस्थापक महर्षि दयानंद का निर्वाण दिवस भी है। इस पांच दिनों की पूजा की जानकारी सभी को परंपरा अनुसार मिलती है। फिर भी यहां संक्षेप में दे रहे हैं।


धनतेरस, दीपावली के आगमन का संदेश देता है। यह धन्वन्तरि की जयंती और पूजा का दिन है। इस दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है। पुराने अनुपयोगी बर्तनों को बदलकर नए खरीदने की भी परंपरा है। चांदी का सामान खरीदने से पुण्य फल मिलता है।
यह पूजन एवं दीप दान भी रात को किया जाता है। इससे यम अकाल मृत्यु से बचाते हैं। एक दीप में तेल डालकर चार बत्तियां जलाई जाती हैं। नरक चतुर्दशी की पूजा से नरक व नारकीय जीवन से मुक्ति मिलती है। भगवान कृष्ण ने नरकासुर का इसी दिन संहार किया था।


त्रायोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या, तीनों रात दीपक अधिक संख्या में जलाए जाते हैं। दीपावली की रात घर के खिड़की, दरवाजे खुले होने चाहिए। लक्ष्मी गुणगान करते रात्रि जागरण करना चाहिए।


गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट की पूजा होती है। कृष्ण ने इन्द्र का घमण्ड तोड़कर इस दिन ब्रज को बचाया था। भैया दूज में बहन-भाई की पूजा करती है। इसमें यम प्रसन्न होकर भय से मुक्त करते है। पांचों दिनों की पूजा विधि लम्बी भी है। इन दिनों हर क्षेत्रा में पूजा विधियों के साथ कुछ न कुछ नया जुड़ा रहता है। बहुत सी पूजा परंपराएं अंचल एवं क्षेत्रा अनुसार जुड़ जाती हैं।


सभी देव साफ-सफाई एवं सादगी पसंद हैं। मात्रा दीप जलाकर भगवान की प्रार्थना कर लें, इतना भी पर्याप्त है। हर जगह विस्तृत पूजा विधि असंभव है। महत्त्व यथाशक्ति का है। फिर भी व्यवसाय करने वाला एवं वैश्य परिवार समय पर विस्तृत पूजा विधि करने का प्रयास करता है। वे पूजा की पूर्ण विधि का पालन करते हैं।