शक्ति स्वरूपा भगवती दुर्गा की आराधना की परंपरा हमारे देश में सदियों से चली आ रही है। शक्ति की पूजा मातृभाव से की जाती है। भगवती दुर्गा जहां मां के रूप में सृष्टि की सृजनकर्ता हैं, वहीं काली के रूप में संहारक भी। इसी कारण शक्ति स्वरूपा भगवती दुर्गा को जीवन का मूलाधार माना गया है, जो सृजन भी करती है और मोक्ष भी देती है। नवरात्रि महोत्सव दैत्यों और असुरों पर शक्ति की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस महोत्सव में देवी की नौ रूप में पूजा की जाती है। देवी कवच में भी नौ देवियों की स्तुति करते हुये कहा गया है।
प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीय चन्द्रघण्टे कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।
पंचम स्कन्दमतेतिषष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रिति महागौरीति चाष्टमम्।
नवं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तितता:।
अर्थात् नवरात्रि की प्रथम रात्रि में शैलपुत्री, द्वितीय में ब्रह्मचारिणी, तृतीय में चंद्रघंटा, चतुर्थ में कूष्माण्डा, पांचवीं में स्कन्दमाता, छठवीं में कात्यायनी, सातवीं में कालरात्रि, आठवीं में महागौरी और नौवीं रात्रि पर सिद्धिदात्री स्वरूप में भगवती दुर्गा अवतरित होती है। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि यदि शारदीय नवरात्रि में इन स्वरूपों में भगवती दुर्गा की आराधना की जाए तो देवी दुर्गा की कृपा दृष्टि बनी रहती है तथा समस्त दु:ख और बाधाएं नष्ट हो जाती हैं जिससे सुख एवं समृद्धि का वातावरण निर्मित होता है।
शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन देवी दुर्गा की आराधना शैलपुत्री के रूप में की जाती है। शैलपुत्री देवी को पर्वतराज हिमवान की पुत्री के रूप में पूजा जाता है। देवी के शैलपुत्री स्वरूप को जगत माता भी कहा जाता है, इनका वाहन बैल है। पूर्वजन्म में शैलपुत्री ही दक्ष प्रजापति की कन्या सती थीं। पिता द्वारा भगवान शिव की उपेक्षा से क्रोधित होकर सती ने अपना शरीर हवन कुण्ड में समर्पित कर दिया था। बाद में जब सती ने राजा हिमवान के यहां जन्म लिया तो शैलपुत्री या पार्वती कहलाई।ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा की स्तुति ब्रह्मचारिणी स्वरूप में की जाती है। हाथों में माला और कमण्डल लिए हुए तपस्या करती हुई देवी ब्रह्मचारिणी हैं। इनका स्वरूप आनन्ददायी है, यह अज्ञान का विनाश करते हुए ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलाती हैं। इनकी आराधना वाग्देवी के रूप में भी की जाती है। देवी ने ब्रह्मचारिणी स्वरूप में तप करके भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था।चन्द्रघंटा
देवी का तीसरे दिन चन्द्रघंटा स्वरूप होता है। मस्तिष्क पर घंटे के आकार का अर्धचन्द्र होने के कारण ये चन्द्रघंटा कहलाती हैं। स्वर्ण के समान पीले रंग वाली देवी के तीन नेत्र और दस हाथ हैं, जिन पर विविध अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। चन्द्रघंटा देवी का वाहन सिंह है। इन्हें श्री समृद्धि की देवी भी माना जाता है। यह दैत्यों का संहार करने वाली तथा प्रकृति की रक्षक भी मानी जाती है।कूष्माण्डा
नवरात्रि के चौथे दिन देवी के कूष्माण्डा स्वरूप की उपासना की जाती है। ये ब्रह्मांड को उत्पन्न करती हैं। इसलिए इनका नाम कूष्माण्डा है। ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली ये शक्ति सूर्य के समान तेजस्वी है। इसकी ऊर्जा दसों दिशाओं में फैली हुई है। यह सिंह पर सवार अष्टभुजा देवी है। इनकी भुजाएं अस्त्रों से सुसज्जित हैं। ये प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्यों की रक्षा करती हैं।स्कंदमाता
सर्वशक्तिमान, ममतामयी मां स्वरूपा भगवती दुर्गा का पांचवां रूप स्कंदमाता के रूप में प्रतिष्ठित है। अपने ब्रह्मचारिणी स्वरूप में देवी ने तपस्या करके भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। भगवान शिव और शक्ति के पुत्र के रूप में स्कंदमाता का जन्म हुआ, जिन्होंने देवताओं की सेना का संचालन किया। देवताओं के सेनापति सनत कुमार की माता के रूप में देवी का स्कंदमाता स्वरूप ममतामयी और मनमोहक हैं। देवी की गोद में स्कंद विराजमान है, देवी की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। शुभ्रवर्मी देवी पदम पर विराजमान है। सिंह इनका वाहन है।कात्यायनी
भगवती दुर्गा का छठा स्वरूप पुत्री स्वरूपा है। ऋषि कात्यायन के अनुरोध पर देवी उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई हैं। सिंह वाहिनी देवी कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। वृंदावन में गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए देवी के कात्यायनी स्वरूप की ही आराधना की थी। देवी का कात्यायनी स्वरूप धन, वैभव और सुख प्रदाता है। स्वर्णमयी दिव्य स्वरूपा कात्यायनी देवी के तीन नेत्र और अष्ठ भुजाएं हैं। यह प्राणियों के हितार्थ ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में अवतरित हुई थीं।कालरात्रि
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना की जाती है। देवी का वाहन गर्दभ (गधा) है। शरीर का रंग गहन अंधकार की भांति काला है, नाक से श्वसन प्रक्रिया में अग्नि की ज्वाला निकलती है। बाल बिखरे हुए हैं। गले में नरमुण्डों की माला और मुर्दों पर सवार देवी का यह स्वरूप भयानक अवश्य है लेकिन फिर भी मां सदैव शुभ फल ही देती हैं। इसी कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। कालरात्रि दुष्टों का विनाश करती हैं। दैत्य-दानव, राक्षस और भूत-प्रेत तो देवी के स्मरण मात्र से भाग जाते हैं। अपने भक्तों के प्रति उदारमना देवी का एक हाथ सदैव वरदान के लिए उठा रहता है।महागौरी
भगवती दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी कहलाता है। देवी के इस सौम्य और सात्विक स्वरूप की लोक कामना की जाती है, इसलिए दुर्गाष्टमी के दिन इस स्वरूप की आराधना के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। भगवान शिव की घोर तपस्या करके देवी ने शंख, इन्दु और कुंद के समान गौरवर्ण प्राप्त किया था, इसलिए वह महागौरी कहलाती हैं। महागौरी के वस्त्राभूषण श्वेत, स्वच्छ हैं। वह सुवासिनी, शांत और निर्मल चित्त वाली शांत मुद्रा में हैं। उनके एक हाथ में डमरू तो दूसरे हाथ में त्रिशूल है। इनका वाहन वृषभ (बैल) है। महागौरी ने शुम्भ नामक दानव का संहार किया था।सिद्धिदात्री
भगवती दुर्गा का नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री कहलाता है। पुराणों के अनुसार सिद्धिदात्री अणिमा, लघिमा प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वाशित्व सर्व कामावसारिया, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायाप्रवेश, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरण सामथ्र्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना आदि समस्त सिद्धियों की दाता हैं। देवीपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप की आराधना करके समस्त सिद्धियां प्राप्त की थीं और देवी की कृपा से उनका आधा शरीर देवी का हो गया था। इसी कारण भगवान शंकर अद्र्धनारीश्वर कहलाए। सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली देवी सिद्धिदात्री की उपासना सिद्धि या मोक्ष प्राप्ति के लिए की जाती है।
वैसे तो जगत जननी आदिशक्ति मां भगवती की आराधना के लिए देवी भागवत में एक हजार आठ नाम प्रयुक्त किए गये हैं, लेकिन भक्तों के लिए तो भगवती का एक ही नाम मां हजारों सुखों का दाता सिद्ध होता है। भक्तों को देवी हमेशा मां स्वरूप ही दिखाई देती है और देवी भी अपने इसी स्वरूप में भक्तों को आनंदित करती हैं। यह देवी की ही अद्भुत महिमा है कि जहां एक ओर तो वह सृष्टि का सृजन करके भक्तों की मां कहलाती हैं, वहीं दूसरी ओर दुष्टों का विनाश करके महाकाली भी कहलाती हैं। यही शक्ति की महत्ता है और महानता भी।