वैभव एवं ज्ञान प्राप्ति का पर्व नवरात्रि

34-31

भगवती दुर्गा या शक्ति की उपासना की परम्परा भारत में कितनी प्राचीन है, इसका प्रमाण हमें मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई में मिली प्रतिकृतियों से मिलता है। लगभग हर वेद में शक्ति या देवी का विवरण मिलता है। शक्ति या देवी की उपासना नवरात्रि में अधिक फलदायी मानी जाती है। नवरात्रि के दो अर्थ हैं- पहला अर्थ तो बहुत ही सीधा-सादा है, अर्थात नौ रातें, जबकि दूसरा अर्थ अधिक महत्वपूर्ण है। नव का अर्थ है- नया या नवीन तथा र = रवि या प्रकाश, अ = अंधकार, त्र = त्राण अर्थात् अंधकार से मुक्ति दिलाने वाला प्रकाश। इसका एक अर्थ यह भी है कि यह वह कालखंड होता है, जब अज्ञान के अंधकार से ज्ञान का प्रकाश मुक्ति देता है।


देवी भागवत् के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रियां होती हैं। ये नवरात्रि चैत्र, आषाढ़, आश्विन (क्वांर) एवं माघ मास में होती हैं। पर इन दिनों चैत्र एवं आश्विन नवरात्रियों की ही मान्यता है। इन्हीं दो नवरात्रियों में लाखों नर-नारी भगवती दुर्गा या शक्ति की उपासना, आराधना एवं पूजन करते हैं। भारत में शक्ति या देवी की उपासना इतनी प्राचीन है कि कई ऋषियों की यह मान्यता है कि इस सृष्टि की संरचना ही देवी मूल प्रकृति ने की थी। अजा नाम से इस महाशक्ति ने काली, महालक्ष्मी एवं सरस्वती के रूप में परिणित होकर इस धराधाम का सृजन, पालन एवं प्रलय का चक्र चलाया।


ऋग्वेद में पहले नदी, फिर देवी स्वरूप लक्ष्मी तथा सरस्वती का स्तवन है। सामवेद में शक्ति की स्तुति है। वेदों में पृथ्वी और अदिति देवी का भी विवरण है।


अथर्ववेद में तो देवी अपने मुख से ही अपना वर्णन इस प्रकार करती है- मैं रुद्र, आदित्य, अग्नि आदि देवताओं में व्याप्त हूं। इसी तरह ऋग्वेद में शक्ति कहती है- मैं इस विश्व के मूर्धन्य स्थान पर स्थित द्युलोक पिता को उत्पन्न करती हूं। मेरा मूल स्रोत समुद्र जल की गहराई में है। उसी स्रोत-स्थल से समस्त भुवनों को व्याप्त करती हूं। मैं द्युलोक की मात्र जन्मदात्री नहीं हूं, अपितु मेरे व्यापक स्पर्श से सकल लोक स्पंदित हैं। इसके अतिरिरक्त ज्योतिष्टोम, केनोपनिषद, देवी भागवत, देवी पुराण, कालिका पुराण, मार्कण्डेय पुराण, दशोपनिषद आदि प्राचीन धार्मिक ग्रंथ, देवी भगवती, दुर्गा एवं उनके विभिन्न स्वरूपों के विवरण से भरे पड़े हैं। भगवान राम द्वारा भगवती दुर्गा की उपासना का आख्यान कुछ धर्मग्रन्थों में मिलता है। शक्ति देवी या भगवती दुर्गा का हमारे धार्मिक ग्रंथों में इतना विशद विवरण है कि उनके एक हजार आठ नाम प्रचलित है। शक्ति या देवी के उपासकों की मान्यता है कि भगवती, जगत-जननी की उपासना से ज्ञान एवं वैभव की प्राप्ति होती है। नवरात्रि इसी ज्ञान की प्राप्ति का पर्व है। नवरात्रि में उपासना या आराधना का विधान भी ज्ञान-प्राप्ति के अनुरूप ही बनाया गया है।


नवरात्रि के प्रथम तीन दिनों में काली या दुर्गा की उपासना की जाती है इसका उद्देश्य यह होता है कि हमारे भीतर जो आसुरी वृति है, उसका नाश हो। मध्य के तीन दिनों में महालक्ष्मी की उपासना की जाती है। इसका उद्देश्य यह होता है कि हमें सम्पन्नता एवं वैभव प्राप्त हो। अंत के तीन दिनों में महासरस्वती की उपासना होती है, जिसका अर्थ है ज्ञान की प्राप्ति। अर्थात् नवरात्रि की उपासना एवं आराधना का सीधा अर्थ या उद्देश्य यही है- आसुरी वृति का नाश, लोक-वैभव एवं ज्ञान की प्राप्ति। मानव अपने प्रारंभ से ही अपने आसुरी अवगुणों का नाश करके वैभव और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहा है। नवरात्रि उसके इन्हीं प्रयासों का प्रतीक है। नवरात्रि में वह भगवती दुर्गा, देवी या शक्ति की उपासना या आराधना के माध्यम से अवगुणों को नष्ट करने तथा ज्ञान एवं वैभव प्राप्ति का प्रयत्न करता है। नवरात्रि का यही अर्थ है, यही उद्देश्य है, यही महत्व है। अज्ञान का अंधकार समाप्त हो तथा ज्ञान के प्रकाश की प्राप्ति हो। युगों-युगों से भारतीय जनमानस अज्ञान के इसी अंधकार को दूर करने के लिए प्रयत्न करता रहा है और भविष्य में भी करता रहेगा और इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शक्ति या देवी की उपासना करता रहेगा।