गर्भस्थ-शिशु का विकास किन-किन अंगों से और किस-किस रूप में प्रभावित होता है, इस विषय पर विश्वसनीय प्रमाणों का अभाव है लेकिन कुछ मनोवैज्ञानिकों ने जी तोड़ मेहनत एवं अध्ययनों से प्रमाणित कर दिया है कि बच्चे का विकास जन्म के पूर्व गर्भ में बड़ी तेजी से होता है। गर्भावस्था में स्त्रा का भोजन, उसका स्वास्थ्य तथा विभिन्न पिंडों से उत्पन्न òाव आदि द्वारा उसके शरीर की रासायनिक स्थिति प्रभावित होती है और इसका असर बच्चे के विकास पर भी पड़ता है।
भोजन या मां का आहार
गर्भावस्था के समय माता का भोजन बच्चां के विकास को काफी प्रभावित करता है। गर्भस्थ बच्चे को तन्तुओं के निर्माण के लिए ताकत और शक्ति के लिए प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइट्रेट्स इत्यादि की जरूरत पड़ती है। ये सारी चीजें उसे माता से ही प्राप्त होती है। माता के भोजन में इन चीजों का अभाव रहता है तो बच्चे के विकास में बाधा पहुंचती है। मां के भोजन में विटामिन की कमी रहने पर बच्चे का शरीर हृष्ट-पुष्ट नहीं हो पाता। गर्भ में शिशु को मां से उचित एवं पौष्टिक आहार न मिलने से मस्तिष्क में 15 से 20 प्रतिशत कोशिकाएं कम हो जाती हैं जिससे बच्चों के मानसिक मंद उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है।
तनाव
गर्भावस्था में मां के मानसिक तनाव, चिंता एवं सांवेगिक परिस्थितियों का भी प्रभाव गर्भस्थ बच्चे पर काफी पड़ता है। गर्भवती मां यदि बहुत दिनों से चिन्तित रहती है तो उनके गर्भस्थ बच्चे के विकास में बाधा पहुंच जाती है और जन्म के बाद बच्चे में भिन्न-भिन्न प्रकार की विकृति उत्पन्न हो जाती है। इस स्थिति में यदि मां खुश और प्रसन्नचित्त रही तो जन्म लेने वाला बच्चा भी हंसमुख स्वभाव का होता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जो स्त्रियां अपने गर्भ से किसी कारणवश प्रसन्न नहीं रहती, उन्हें मिचली उलटी अन्य स्त्रियों की अपेक्षा ज्यादा होती है।
औषधि
प्रायः संतुलित आहार नहीं मिलने से गर्भवती मां अस्वस्थ ही रहती है, जिनके लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की औषधियों का इस्तेमाल करती हैं जिसका परिणाम गर्भस्थ बच्चे पर पड़ता है। कुनैन औषधि का प्रयोग किये जाने पर उनके बच्चे में जन्मजात बहरापन होता है। एंटीबॉयोटिक का प्रयोग गर्भवती मां द्वारा करने से बच्चे में जन्मजात हृदय रोग तथा बहरापन रोग उत्पन्न होता है। गर्भवती माताओं द्वारा औषधि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे एक तो स्वास्थ्य की रक्षा होगी तथा दूसरे स्वास्थ्य की क्षति नहीं होगी।
गर्भास्थ स्त्रियों को धूम्रपान नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के कारणों पर ध्यान देते हुए ही गर्भावस्था में बच्चे की जान की रक्षा हो सकती है। मनोवैज्ञानिक तरीके से गर्भावस्था पर ध्यान रखने से ही गर्भस्थ बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं। स्वास्थ्य ही धन है। यदि गर्भवती मां स्वस्थ्य है तो बच्चे स्वतः ही स्वस्थ होंगे।