विश्व की आधी आबादी चावल का मुख्य अनाज के रूप में उपयोग करती है। अपने देश में चावल का उत्पादन बहुतायत में होता है। आहार में मुख्य अनाज के रूप में इस चावल को ही महत्त्व मिलता है। यहां चावल से विविध वस्तुएं बनाकर उपयोग की जाती हैं। चावल को अनेक तरह से पकाकर खाया जाता है। नाश्ते में रोटियों के साथ-साथ इससे कई वस्तुएं बनाकर खाई जाती हैं। यह चावल पकवान बनाने के काम भी आता है।
भारत में इसकी सैंकड़ों प्रजातियां हैं जो वर्षा, पानी की स्थिति एवं खेती की मिट्टी के अनुसार उपजाई जाती है। खेतों से उपजे धान को भी कई रूपों में चावल बनाया जाता है। जिस चावल को आम चावल कहा जाता है, वह ढेंकी या हाथ से कूटकर गांवों में बनाया जाता है। इसे देहाती भाषा में अरवा चावल कहते हैं। इसका दूसरा तरीका उसना विधि है। धान को उबालकर सुखाने के बाद कूटने से बना चावल उसना कहलाता है।
गांव की मिलों एवं राइस मिलों में बड़े पैमाने पर धान से चावल बनाया जाता है। इसे झकाझक सफेद दिखाने हेतु पालिश किया जाता है। यह पकाने पर दूध जैसा सफेद दिखता है। मिलों में पालिश करने के कारण इसकी उपयोगी ऊपरी परत जिसमें जीवनोपयोगी पौष्टिक तत्व मौजूद होता है, वह निकाल दिया जाता है। ब्राउन राइस या भूरा चावल जो अरवा व उसना के रूप में होता है वह सबके लिए सर्वोपयुक्त है जबकि राईस मिलों से प्राप्त पालिश किया गया चमकदार चावल नुकसानदायक है।
भूरे चावल की विशेषता
घर में कूटा गया चावलग्रामीण क्षेत्रों में ढेंकी उखल से हाथ से धान कूटने की प्राचीन परम्परा है। यह भूरे रंग का होता है।
उसना चावल धान को उबालकर सुखाने के उपरान्त ढेंकी या उखल से इसे कूटा जाता है। धान से उसना चावल बनाने के लिए आजकल आटोमेटिक राइस मिल के पारबायलिंग प्लांट का उपयोग किया जाने लगा है। इससे उसना चावल से अब गंध नहीं आती। यह चावल भी भूरे रंग का होता है। यह चावल बनाते समय बहुत कम टूटता है।
भूरे चावल में मौजूद तत्व
हाथ से कूटे चावल एवं उसना चावल में रेशा, खनिज, विटामिन, प्रोटीन, मैग्नीशियम, लिगानंस, फाइटोएस्ट्राजेंस और फाइटिक अम्ल होता है। ये सब तत्व धान को उबालते समय उस चावल के भीतर चले जाते हैं। इस तरह के भूरे चावल में मौजूद फाइबर पाचन में मद्द करता है। इसमें मौजूद फाइबर, प्रोटीन, विटामिन व खनिज तत्व स्वास्थ्य के लिए बहुत काम के हैं।पालिश किये गये चावल के सेवन से टाइप-टू मधुमेह होने का बड़ा खतरा पैदा करता है जबकि भूरे चावल में मौजूद तत्व टाइप-टू मधुमेह की आशंका को कम करते हैं। ये भूरे चावल कोलेस्ट्राल कम करते हैं एवं दिल की रक्षा करते हैं। भूरे चावल ब्लड शुगर के लेवल को कम बढ़ाते हैं। मधुमेह एवं दिल के रोगों में यह भूरा चावल बढ़िया विकल्प है।
पॉलिश चावल की खामी
पालिश किए गए चावल में धान के छिलकों में मौजूद पोषक तत्वों की कमी होती है इसलिए पालिश किया गया चावल पाचन को बिगाड़ देता है। शुगर रक्त लेवल को तेजी के साथ बढ़ाता है। आजकल के खाने वाले आधुनिकों को यह टाइप टू मधुमेह रोगी बनाता है। भारत को मधुमेह की राजधानी बनाने में खलनायक रूपी इसी पालिश चमकदार सफेद चावल की भूमिका है। अतएव हृदय एवं मधुमेह रोगी पालिश चावल के स्थान पर भूरे चावल को खाकर इन रोगों के खतरों से सुरक्षित रह सकते हैं।भूरे चावल की अन्य खूबी
भूरा चावल पकने पर मटमैला दिखता है। इसे ग्रामीण व गरीब खाते हैं कहकर पीछे न हटें। इसकी पौष्टिकता व लाभ को देखिए। यह हृदय रोगियों व मधुमेहियों तक के लिए उपयुक्त है। उसना चावल अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस पर घुन, फफूंद, कीड़ा भी नहीं लगता है। यह स्वयं टिकाऊ होता है और खाने वाले को भी टिकाऊ बनाता है। यह संपूर्ण अनाज कहलाता है।परिशोधित अनाज
पालिश किए गए चावल को परिशोधित अनाज कहा जाता है। उसी तरह आजकल की फ्लोर मिलों में पोषक गुणों वाले चोकर को निकाल कर आटा बनाया जाता है एवं उसे अत्यंत महीन पीसकर मैदा बनाया जाता है। चोकर शून्य आटे एवं मैदे में खूबियां कम खामियां ज्यादा हैं किन्तु आज की अनेक आधुनिक खाद्य वस्तुएं इसी मैदे से बनाई जाती हैं। समोसा, सलोनी, सेवई, मैगी, नूडल्स, पाव, तंदूरी व रूमाली रोटी, नान रोटी, भठूरे, बर्गर, हाट डाग, पिज्जा, बिस्कुट, केक, पास्ता, चाउमीन, ब्रेड आदि सभी आधुनिक खाद्य वस्तुएं इसी मैदे से बनाई जाती हैं। इन सबसे फायदे के बजाय नुकसान होता है।
चोकर शून्य आटे एवं मैदे से पालिश किए गए चावल की भांति यह शर्करा की मात्रा को बढ़ा सकता है। टाइप टू मधुमेह रोगियों की संख्या बढ़ाने में इसकी भी भूमिका है। गेहूं से परिशोधित आटा एवं मैदा बनाने पर उसमें मौजूद विटामिन बी तत्व समाप्त हो जाता है जबकि भोजन के कार्बोहाइट्रेट को पचाने में इसकी जरूरत पड़ती है।
ऐसे आटा व मैदा में विटामिन बी की कमी के कारण पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। चिड़चिड़ापन, थकान, आंखों की रोशनी में कमी, खून की कमी, हृदय रोग, मधुमेह टाइप टू आदि जैसी बीमारियां लग जाती हैं। यह विटामिन बी तत्व मूल रूप से साबूत गेहूं के छिलके में मौजूद होता है जो परिशोधन के दौरान चोकर के साथ निकाल दिया जाता है, वहीं मैदा बनाने के दौरान महीन पिसाई से यह समाप्त हो जाता है। इसमें रेशा तत्व की कमी से सेवनकर्ता को कब्ज होने लगता है जबकि कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर बनती हैं।
चोकर शून्य आटे एवं मैदे की वस्तुएं अच्छी दिखती हैं एवं खाने में स्वादिष्ट व भली लगती हैं पर ये किसी भी दृष्टि से सेहत के लिए उपयुक्त नहीं है। स्वास्थ्य के लिए सम्पूर्ण अनाज अर्थात् ब्राउन राइस, भूरा चावल, दलिया, रवा, आटा या चोकर समेत आटे के सेवन कीजिए, महीन आटे, मैदे की वस्तुओं व पालिश किए चावल को त्यागिए और आने वाले खतरों से बचिए।