आज के आधुनिक युग में कोई भी व्यक्ति बीमार होकर रोगियों की भांति अस्पताल में भरती होना नहीं चाहता। यही नहीं, वर्तमान समय में हर एक व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि वह सदैव स्वस्थ और प्रसन्नचित रहे परंतु ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि आज की तारीख में किसी भी व्यक्ति को अपनी बेशकीमती तंदुरूस्ती से कोई सरोकार नहीं है या यूं कह लीजिये कि अब जनमानस के बीच यह मान्यता बड़ी तेजी से घर करती जा रही है कि अच्छे-अच्छे व्यंजनों को बनाकर सेवन कर तृप्ति की डकार आने तक खाते रहना ही स्वस्थ शरीर का वास्तविक मूलमंत्रा है। और तो और, बिना परिश्रम किये तथा हाथ-पैर डुलाये धन-दौलत का खजाना मिल जाने की भी उनकी प्रबल आकांक्षा रहती है।
जनसाधारण को इस बात का जरा-भी आभास नहीं होता कि इस तरह की कार्यप्रणाली उनके लिए कितनी हानिकारक सिद्ध होती है। निस्संदेह इस प्रकार की प्रवृत्ति आलस्य को तो जन्म देती ही है, साथ ही खान-पान में अनियमितताओं के चलते पाचन व मल का निष्कासन भी सुचारू रूप से नहीं होता। नतीजा, पेट में भारीपन, गैस, कब्ज इत्यादि न जाने कितनी बीमारियां हमारे शरीर में धीरे-धीरे पनपने लगती हैं और व्यक्ति बीमार होकर अस्पताल की दहलीज पर न चाहते हुये भी दस्तक दे ही देता है।
इतना ही नहीं, विशेषज्ञों ने तो इस आलस्य तथा मोटापे को सिद्धान्त रूप में अनेक बीमारियों का जन्मदाता बताया है। उनकी राय में, यदि हम अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखने की मनोकामना करते हैं तो प्रत्येक दिन अवश्य इस शरीर रूपी यंत्रा के लिए कुछ न कुछ समय निकालकर सेवारत होना पड़ेगा। साथ ही, कुछ नियमों को भी भली-भांति अमल कर जीवन में धारण करते हुए खान-पान के अतिरिक्त रहन-सहन में भी उचित सुधार करना पड़ेगा। तब कहीं जाकर हम इस आलस्य और मोटापे के चंगुल छल रूपी जाल से मुक्ति पा सकेंगे अन्यथा नहीं।
अच्छी तरह सोना
निस्संदेह हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी रात की नींद से उठने के उपरांत प्रारंभ करते हैं। इसलिए स्वस्थ शरीर की आचार-संहिता में सर्वप्रथम स्थान अच्छी तरह से सोने का आता है। जहां तक सवाल शरीर को स्वस्थ रखने का है, हमें हमेशा स्मरण रखना चाहिए कि रात को अच्छी तथा पूरी नींद लेनी चाहिए। उषाकाल में सूर्य उगने से पूर्व ही बिस्तर को त्याग देना ही हितकर होगा पर यह भी तभी संभव होगा जब हम रात्रि को जल्दी सो जायें।अगर हम प्रतिदिन रात को जल्दी सोने और सुबह-सूर्योदय से पहले उठने के अभ्यस्त हो जाते हैं तो समझ लें कि हमने स्वस्थ शरीर का पहला नियम भली-भांति सम्पूर्ण कर लिया है परन्तु इस दौरान ध्यान रखें कि कम से कम 6 घण्टे तथा अधिक से अधिक 8 घंटे की ही नींद का आनंद उठायें क्योंकि अधिक सोने से शरीर में मोटापा एवं आलस्य दोनों ही हावी होने लगते हैं जबकि अच्छी तथा पूरी नींद सेहत के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। फलस्वरूप-सारा दिन व्यक्ति स्वस्थ और प्रसन्नचित रहता है।
प्रातः भ्रमण करना
रोजाना प्रातः काल में बिस्तर से जल्दी उठना ही काफी नहीं है अपितु सुबह जल्दी उठने के पश्चात् हमें रोजाना घूमना चाहिए। इसके लिए हम कोई भी पार्क, बाग-बगीचा अथवा समुद्र का किनारा अपनी मनपसंद के अनुरुप चुन सकते हैं लेकिन यह सुविधान होने पर। आप सड़क की पटरियों तथा खेतों की पगडंडी को बेझिझक प्रयोग में ले सकते हैं।घूमते समय हमें अपनी क्षमता के अनुसार लगभग एक घण्टा तेज चाल से भ्रमण करना अवश्य चाहिए। साथ ही, यह नहीं भूलें कि भ्रमण करते समय हमें बिल्कुल मौन धारण रखना है। अगर हम प्रतिदिन उषाकाल में इसी तरह नियमित प्रयास करते रहें तो हमारी पाचन क्रिया तो ठीक कार्य करेगी ही, मोटापे तथा आलस्य के अलावा बुढ़ापे से भी छुटकारा मिलेगा।
शरीर-शुद्धि अनिवार्य
उत्तम स्वस्थ शरीर की अगली सीढ़ी में नंबर शरीर को शुद्ध करने का आता है। निद्रा से जागने के तुरन्त बाद पहला कर्तव्य मल-मूत्रा का त्याग अर्थात् शौच विसर्जन करना है। वैसे तो स्वास्थ्य की दृष्टि से शौच का विसर्जन सूर्योदय होने से पहले अनिवार्य है लेकिन फिर भी आप घूमने के उपरांत भी मल-मूत्रा त्याग कर शरीर शुद्ध कर सकते हैं। देखने में आया है कि हर व्यक्ति को प्रातः चार से छः बजे के बाद अचानक मूत्रा त्यागने के लिए उठना पड़ता है। वास्तव में उस समय गुदा मार्ग से गंदी वायु बाहर निकलती है। निस्संदेह यह प्रकृति की शौचालय जाने की चेतावनी है जिसका हमें सदुपयोग करना चाहिए।ताजे पानी से स्नान करें
शरीर पर मालिश करने के कुछ समय के उपरांत हमें स्नान की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्नान करते समय स्मरण रखें कि चिड़ियों की तरह स्नान नहीं करना है बल्कि कम से कम दो चार बाल्टी (ताजे पानी की) से जरूर नहायें। अच्छे साबुन का इस्तेमाल कर कटि स्नान करना फायदेमंद साबित होगा क्योंकि कटि स्नान करने से महिलाओं के मासिक धर्म की गड़बडी कोसों दूर हो जाती है।हल्का फुल्का परिश्रम करें
महानगरों में अमूमन देखने को मिलता है कि अधिकांश व्यक्ति अपना समस्त कार्य घर बैठे या कुर्सी पर आसीन होकर ही निपटाते हैं जो सरासर गलत है। मैं उन लोगों से कहना चाहता है कि आप कम से कम एक घण्टे का समय काम से निकाल कर कोई भी व किसी भी प्रकार के व्यायाम, योगासन तथा प्राणासन में अवश्य लगायें। अगर यह करना भी संभव न हो सके तो कम से कम प्रातः काल सूर्य-नमस्कार करना तो अवश्य ही उचित होगा जो वास्तव में आपके लिए नितान्त आवश्यक है।संतुलित भोजन करें
अक्सर हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए सदैव सजग रहना चाहिये। यह बात याद रखनी चाहिये कि हमारा आहार जहां तक हो सके, शाकाहारी ही हो, मांसाहारी नहीं। मांसाहारी भोजन हमारे लिए महंगे के अलावा कष्टदायक तथा हानिकारक साबित होता है, इसलिए, हमेशा प्रकृति के माध्यम से उत्पन्न मौसम के अनुरूप हरी साग-सब्जियों को अपना आहार बनाना चाहिये जिसमें गाजर, मूली, शलजम, पालक, बन्दगोभी का प्रयोग भली-भांति किया जा सकता है। दही, छाछ, मट्ठा इत्यादि का बना हुआ रायता भी सांझ से पहले सेवन में ले लेना अच्छा है। सोने से पूर्व दूध पीने वाले व्यक्तियों को रात होने से पूर्व ही दूध पी लेना श्रेष्ठकर साबित होगा। ध्यान रहें कि खीरा इन भोजनों में केवल दोपहर को ही लें। संध्या के समय खीरा खाना बिल्कुल भी उचित नहीं होगा। फलों का सेवन व रस अपनी इच्छानुसार पिया जा सकता है।
कम उपवास करें
स्वस्थ शरीर की आचार-संहिता में अन्तिम पड़ाव उपवास का आता है इसलिए इस विषय में ध्यान देने योग्य बात यह है कि महीने में मात्रा एक उपवास ही रखें, इससे अधिक नहीं। दिन में उपवास के दौरान कुछ भी न खायें। साथ ही सुनिश्चित करें कि यह आपके लिए किसी भी तरह से नुक्सानदायक साबित न हो और आप बेहतरीन ढंग से इसका समापन कर सकें। यदि इस दौरान आपको आवश्यकता महसूस हो तो एक गिलास नींबू का रस जिसमें मधु मिला हो, ले सकते हैं। सही मायनों में इन परिस्थितियों में यह आपके लिए अमृत साबित होगा।
यदि हम इस आचार संहिता के नियमों का कड़ी लगन अथवा दृढ़ता से पूरा कर पालन करते हैं मगर खान-पान तथा रहन-सहन में कोई बदलाव नहीं लाते तो इसका कोई भी विशेष लाभ हमको प्राप्त होने वाला नहीं है लेकिन यदि हम सावधानीपूर्वक इन समस्त नियमों का नियमित अभ्यास करने के अलावा व्यायाम आदि करना कतई नहीं भूलते तो निश्चय ही हम लोग बुढ़ापे, आलस्य और मोटापे को दूर भगा पायेंगे, साथ ही निरोग, स्वस्थ तथा सुंदर भी बने रहेंगे।