लौकी में विटामिन ए, बी, औरसी मिलता है। यह गरिष्ठ, रेचक और बलप्रद होती है। अशक्त और रोगियों के लिए यह लाभदायक है। गर्म प्रकृति वालों के लिए लौकी का सेवन ठंडक और पोषण देने वाला एवं अधिक हितकारी है। नरम, चिकनी व सफेद लौकी का सेवन ही करना चाहिए।
लौकी की अनेक किस्में होती हैं जैसे लम्बी, तुमड़ी, चिपटी, तूमरा इत्यादि। सामान्यतः लौकी मीठी होती है और तुमड़ी कड़वी। लौकी की एक किस्म को तुमड़ी के आकार के फल लगते हैं। उसे ‘मीठी तुमड़ी‘ कहते हैं और इसका साग बनाया जाता है जबकि कड़वी तुमड़ी के फलों का उपयोग नदी में तैरने के लिए होता है। लौकी की दूसरी किस्म ‘मगिया लौकी‘ के रूप में प्रसिद्ध है।
लौकी की तीसरी किस्म लम्बी बोतल जैसी होती है। लौकी लगभग बारह महीने होती है। हमारे देश में लौकी की पैदावार अधिक मात्रा में होती है।
सूखी लौकी की तुमड़ी का उपयोग पानी भरने के कूजे के रूप में, संगीत के वाद्य बनाने के लिए तथा इसी प्रकार के विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज का उपयोग औषधि के रूप में होता है। कड़वी लौकी के फल विषैले होते हैं। उसका उपयोग सख्त जुलाब देने के लिए होता है।
लौकी हृदय के लिए हितकारी, पित्त व कफ को नष्ट करती है। वीर्यवर्धक, रूचि उत्पन्न करने वाली और धातु पुष्टि को बढ़ाती है। लौकी गर्भ की पोषक है। सगर्भा स्त्रा के लिए लौकी पुष्टिदायक है। इसके सेवन से गर्भावस्था की कब्जियत दूर हो जाती है।
अर्श-मस्से में
लौकी के पत्तों का रस निकालकर अर्श के मस्से पर लगाने से आराम मिलता है।
क्षय रोग में
लौकी का रस निकालकर थोड़ा शहद या चीनी के साथ सेवन करने से शरीर का दाह, गले की जलन, रक्त विकार, फोड़ा, शीतपित्त, रक्त में गर्मी बढ़ने पर, गले या नाक से रक्त आने पर, क्षय रोग आदि रोगों में लाभप्रद है।
दिमाग की गर्मी में
लौकी को काटकर, दो टुकड़े करके सिर पर बांधने से दिमाग में यदि गर्मी चढ़ गई हो तो वह उतर जाती है।
बुखार में
लौकी को कद्दूकस पर घिसकर सिर और माथे पर बांधने से बुखार की गर्मी शांत होती है।
दूसरी विधि
यदि बुखार की गर्मी दिमाग में चढ़ जाए, इसके लिए ज्यादा बुखार में लौकी को छील कर सिर और माथे पर बांधने से बुखार कम हो जाता है।