मानव के शरीर का अन्दरूनी तापमान हर ऋतु में चाहे वातावरण का तापमान – 20 डिग्री से + 50 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य हो, 97 डिग्री से.ग्रे. के आसपास स्थिर रहता है। इसी तापमान पर शरीर के विभिन्न अंग और रासायनिक क्रियायें सामान्य रूप से कार्यरत रहती है। यदि वातावरण का तापमान कम होता है तो शरीर में ऊर्जा उत्पादन करने की शक्ति बढ़ जाती है और ऊर्जा निकलने की प्रक्रिया मंदगति से होती है। जाड़े के मौसम में कंपकंपी होती है, भूख अधिक लगती है, कसरत करना अच्छा लगता है, थॉयरायड हार्मोन्स का स्त्राव बढ़ जाता है जिससे शरीर में ऊर्जा उत्पादन बढ़ जाता है। साथ ही त्वचा की रक्तवाहिनियां सिकुड़ जाती है, मनुष्य बंद गर्म कमरे में रहने की कोशिश करता है, गर्म कपड़े पहनता है और गठरी सा बन कर बैठता है जिससे शरीर से कम से कम गर्मी बाहर निकले। गर्मी के मौसम में उल्टी प्रक्रियायें होती है, पसीना आता है, मनुष्य हल्के सूती वस्त्र पहनता है, पंखे कूलर का इस्तेमाल करता है जिससे शरीर में गर्मी का उत्पादन कम हो जाये और ज्यादा से ज्यादा गर्मी बाहर निकले। शरीर में तापमान नियंत्रण मस्तिष्क में स्थित ‘हाइपोथैलमसÓ की कुछ नाभिकाओं द्वारा किया जाता है, यदि शरीर का तापमान बढऩे लगता है तो शरीर के तापमान को कम करने की प्रक्रिया सक्रिय हो जाती है, जबकि तापमान गिरने की अवस्था में ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रियायें सक्रिय होकर शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का प्रयत्न करती है। कभी-कभी शरीर के तापमान को नियंत्रण करने वाली प्रक्रिया में गड़बड़ी आने से शरीर का तापमान कम या ज्यादा हो सकता है। इसमें ज्वर आम समस्या है जो कि कुछ हानिकारक रसायनों के प्रभाव के कारण हो सकता है। कभी कभी शरीर का तापमान कम हो सकता है जिसको ‘हाइपोथर्मियाÓ कहते हैं। यदि कोई मनुष्य बहुत ठंडे मौसम में कसरत करता है या श्रम करता है तो वह हाइपोथर्मियां से ग्रस्त हो सकता है। कुछ रोग भी हाइपोथर्मिया कर सकते हैं। इस दशा में शरीर की रासायनिक एवं अन्य क्रियाओं की गति धीमी होती है। श्वास एवं हृदय गति कम हो जाती है, रक्तचाप भी कम हो जाता है। शरीर का तापमान बहुत कम हो जाने से (91 डिग्री फा. या 32.8 डिग्री से.ग्रे.) बेहोशी छा जाती है। यदि तापमान 83 डिग्री फा. (28.5 डिग्री सें.ग्रे.) से कम हो जाता है तो हृदय की गति अनियमित हो जाती है और हृदय का धड़कना बंद हो जाता है और मृत्यु हो सकती है। 28 डिग्री सें.ग्रे. से कम तापमान हो जाने पर शरीर की स्वयं ही पुन: सामान्य तापमान में आने की शक्ति समाप्त हो जाती है और उसको पूर्ववत सामान्य तापमान में लाने का एकमात्र तरीका बाहर से धीरे-धीरे गर्मी देने से ही हो सकता है।
समाधान :- यदि किसी कारण से शरीर का तापमान कम हो गया है तो मरीज को गर्म पेय दें। हल्का गर्म कर नस से ग्लूकोज दिया जा सकता है। मरीज को कम्बल, रजाई से ढंके। मरीज का हृदय और श्वांस बंद न हो इसके प्रयत्न करें, आक्सीजन भी दी जा सकती है। बाहर से गर्मी देकर बहुत धीरे-धीरे शरीर का तापमान बढ़ाना चाहिए क्योंकि यदि शरीर का तापमान धीरे-धीरे गर्मी देकर बढ़ाया जाता है तो कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता है। शरीर के तापमान को या कुछ विशिष्टï अंगों के तापमान को 21-24 डिग्री से.ग्रे. (70-75 डिग्री फा.) तक लाकर अनेक प्रकार की शल्य चिकित्सा की जाती है। इस विधि को क्रामों सर्जरी कहते है। क्रामो सर्जरी विधि हृदय, मस्तिष्क के जटिल आपरेशन करने में इस्तेमाल की जाती है। इस विधि से रक्त बहाव कम हो जाता है और आपरेशन के समय रक्त स्त्राव होने की संभावना कम हो जाती है। यदि शरीर का कोई विशेष अंग अत्यधिक कम तापमान में ज्यादा समय रहता है तो धमनियों में संकुचन होने तथा रक्त प्रभाव कम होने के कारण कोशिकायें नष्टï हो सकती हैं। पर्वतारोही, और सैनिक जब बर्फीले स्थानों में रहते हैं तो कोशिकाओं का पानी जमकर बर्फ के क्रिस्ट्रल बनाता है जिससे शरीर का वह हिस्सा नष्टï हो जाता है। इस दशा को क्रोस्टबाईट कहते हैं। यह समस्या उंगलियों, अंगूठों और कान नाक में हो सकती है। यदि अत्यधिक ठंडक और नमी स्थान वाले स्थान में खास तौर से पैर रहता है तो उस अंग में असहनीय दर्द होता है जो कि रक्त प्रवाह कम होने के परिणाम स्वरूप होता है। इस अवस्था को ‘ट्रेचफूटÓ कहा जाता है क्योंकि यह दशा उन सैनिकों की जो ट्रैचों में लंबे समय तक रहते हैं सामान्य समस्या होती है।
ठंडे स्थान पर जाने पर ठंडक से पूरी सुरक्षा के उपाय रखना आवश्यक है। साथ ही ध्यान रखे कि हाइपोथर्मिया की समस्या खुले स्थान पर ज्यादा हो सकती है। यदि हवा चलती है तो यह समस्या होने की संभावनायें ज्यादा होती है क्योंकि तेज हवाओं के कारण शरीर से तेजी से गर्मी निकलती है। हाइपोथर्मिया होने का भय कम तापमान में अचानक कसरत या कठिन मेहनत करने से ज्यादा होता है। हाइपोथर्मिया के कारण ठंडे स्थान पर रह रहें सैनिकों में अनेक गंभीर समस्यायें हो सकती है। यदि सुरक्षा के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है तो ठंडे क्षेत्रों में तैनात सैनिक फ्रासबाइट के कारण उंगलियों और अंगूठों से हाथ धो सकते है। ठंडे स्थान में जाते समय पूरी सावधानी जरूरी है। हां यदि कोई मरीज ऐसा मिलता है जो मरा प्रतीत होता है, हृदय और श्वास नहीं चल रही है, तब भी आशा न छोड़ें। उसको गर्मी देकर गर्म कर कृत्रिम श्वांस दे, हृदय मसाज दे, गर्म करने के बाद भी यदि श्वांस और हृदय काम करना नहीं शुरू करें तभी उसे मरा मानें।