आधे सिर का दर्द या माइग्रेन खतरनाक बीमारी न होते हुए भी भयानक कष्टप्रद रोग है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की दृष्टि से इस रोग के प्रकट होने का प्रमुख कारण है मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करने वाली कैरोटिड नामक धमनी और मस्तिष्क में स्थित शाखाओं में एकाएक फैलाव आने से रक्त-संचार का बढ़ जाना।
मस्तिष्क की रक्त वाहिनियां किसी अज्ञात कारण से सिकुड़ जाती हैं जिससे कुछ समय के लिए मस्तिष्क के विशेष भाग में रक्त की आपूर्ति एकाएक घट जाती है, इसीलिए माइग्रेन के समय में कुछ समय के लिए रोगी की नेत्रा ज्योति घट जाती है और उल्टियां आने लगती हैं। कभी-कभी रोगी को संज्ञा शून्यता का भी शिकार होना पड़ जाता है।
माइग्रेन या आधे सिर का दर्द क्यों होता है? इसका निश्चित कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है किंतु शरीर में संक्रामक रोगों का जीर्ण रूप धारण कर लेना अथवा बिगड़ जाना जैसे पुराना जुकाम, मस्तिष्कीय संक्रमण, मलेरिया और दांतों की सड़न आदि के कारणों से भी आधे सिर का दर्द हो जाता है।
स्वास्थ्य के प्राकृतिक नियमों का पालन न करना, पाचन संबंधी विकार, अंतड़ियों में सूजन, पुरानी कब्ज़, यकृत और आमाशय से संबंधित रोग, शराब का अत्यधिक मात्रा में सेवन करना, स्त्रियों में मासिक संबंधी विकार, शरीर में खून की कमी, अनिद्रा, मानसिक रोग, गुर्दे संबंधी रोग, धूप में अधिक समय तक कार्य करते रहना, रात को ओस में सोना, ठंडे पानी में भीग जाना, निरंतर संभोग क्रिया में व्यस्त रहना या संभोग न करना भी माइग्रेन के उत्पति के कारण होते हैं।
अभी हाल की खोजों से पता चला है कि स्त्रियों में सिर-दर्द का गहरा संबंध मासिक चक्र की अनियमितता और प्रजनन संस्थान के रोगों, मुख्यतः गर्भाशय की रसौली के साथ रहता है। इस अध्ययन से एक बात यह भी स्पष्ट हो गई है कि सिर दर्द का कुछ न कुछ संबंध हार्मोनल असन्तुलन के साथ भी है। ऐसा माना जाता है कि जब स्त्रियों में स्त्रियोचित हार्मोन ‘प्रोजेस्ट्रोन‘ का अभाव उत्पन्न होने लग जाता है तो उन पर सिर दर्द या माइग्रेन का हमला शुरू हो जाता है। मासिक चक्र शुरू होने से पहले और मासिक चक्र की अवधि, दो ऐसी विशेष परिस्थितियां होती हैं जिनमें माइग्रेन प्रारंभ हो सकता है।
ऐसा देखा गया है कि आधे सिर दर्द के बहुत से मामलों के पीछे व्यक्ति द्वारा खाया गया अनुचित और अपरिष्कृत आहार ही जिम्मेदार होता है। वैसे भी रोग के उपचार में औषधियों के साथ रोगी के आहार में अनुकूल परिवर्तन करना जरूरी हो जाता है क्योंकि कुछ खाद्य पदार्थ तो ऐसे हैं, जिनमें ऐसे कई रसायन या तत्व पाये जाते हैं जो या तो दर्द की तीव्रता को बढ़ा देते हैं या फिर सिर दर्द के दौरे को बुलावा दे सकते हैं। इसी तरह कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ भी हैं जिनमें प्राकृतिक रूप से कई दर्दनाशक रसायन पाये जाते हैं और वे दर्द के उपचार में औषधियों जैसा काम करते हैं।
हाल में हुए कुछ अनुसंधान कार्यों से पता चला है कि कई प्रकार के खट्टे फल जैसे जामुन, चैरी, स्ट्राबेरी आदि फल दर्द-नाशक की भूमिका बखूबी निभाते हैं। इनका दर्दशामक प्रभाव एस्प्रिन से मिलता-जुलता है, अतः अगर माइग्रेन का रोगी नियमित रूप से इन फलों का सेवन करता रहे तो वह माइग्रेन के साथ ही अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रह सकता है।
इन चैरियों में कुछ ऐसे रसायन भी मौजूद होते हैं जो इन एन्जाइमों पर हमला बोलकर उन्हें निष्क्रिय बना देते हैं जो सूजन की प्रक्रिया को शुरू कर देते हैं या दर्द की संवेदना को मस्तिष्क की ओर प्रेरित करने लगते हैं। इस प्रकार काला जामुन एवं अन्य चेरियां दर्द को दबाने का कार्य करती हैं।
माइग्रेन से पीड़ित रोगियों को टायरामिन युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। यह रसायन मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों को सीधे रूप में प्रभावित करता है जिससे सिरदर्द का पुनः आक्रमण हो सकता है। टायरामिन चॉकलेट, बासी पनीर, लाल रंग की शराब एवं मुर्गे के मांस में काफी मात्रा में मौजूद रहता है।
‘मोनो सोडियम ग्लूटामेट‘ अर्थात एम. एस. जी. चायनीज पदार्थों और बहुत से प्रक्रिया युक्त भोज्य पदार्थों में ‘हाइड्रोलाइजर्स‘ वेजीटेबल, प्रोटीन के नाम से पाया जाता है। यह रसायन भी माइग्रेन के आक्रमण को आमंत्रित कर सकता है। इस तरह माइग्रेन से पीड़ित रोगियों को औषधियों के साथ-साथ अपने भोजन में भी अनुकूल बदलाव कर लेना फायदेमंद होता है।