अधिकतर गृहणियां आटे को छानकर उसका चोकर निकाल कर अलग रख देती हैं जिससे रोटी मुलायम और देखने में सुन्दर लगे। सुन्दरता की दृष्टि से बनाई गई गेहूँ की चोकर रहित रोटी से सिर्फ पेट भरा जा सकता है। हम इस बात से अनभिज्ञ हैं कि चोकरयुक्त आटे की रोटी हमारे स्वास्थ्य के लिए एक सजग प्रहरी का कार्य करती है, साथ ही पाचन प्रणाली के अंगों को भी मजबूत बनाती है।
गेहूं के दानों को मुख्यतः तीन भागों में अलग किया जाता है। पहला और बड़ा भाग भ्रूणपोष का है जो गेहूं के दाने का लगभग 83 प्रतिशत है। दूसरा भाग भ्रूण का होता है जो दाने के भार का 2.5 प्रतिशत एवं तीसरा भाग चोकर जो गेहूं के दाने के वजन का लगभग 14.5 प्रतिशत होता है।
गेहूं के दानों के तीनों भागों में रासायनिक पदार्थों की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। कुल प्रोटीन की 70-75 प्रतिशत मात्रा भू्रणपोष में, 19 प्रतिशत चोकर में और लगभग 8 प्रतिशत भ्रूण में होती है। विटामिन बी कॉम्प्लेक्स एवं विटामिन ई (टोकोफेरोल) की मात्रा भी तीनों भागों में भिन्न होती है।
सम्पूर्ण आटे के तत्वों (भू्रणपोष, चोकर, भ्रूण) के मुकाबले में मैदे (भ्रूणपोष से बना आटा) से बनी डबल रोटी की पौष्टिकता घट जाती है। इसमें प्रोटीन के अतिरिक्त विटामिन और खनिज पदार्थों की भी भारी कमी हो जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सिलिकोन की कमी से हड्डी, मज्जा और उन्हें जोड़ने वाले ऊतकों में भारी विकार पैदा हो जाते हैं। भोज्य पदार्थ अनुसंधान वैज्ञानिकों ने अमेरिका में मैदे से बनी डबल रोटी में संतुलित पौष्टिक तत्वों का एक मानक स्तर रखने के लिए कुछ विटामिन और कुछ खनिज मिलाना अनिवार्य कर दिया है परन्तु परीक्षणों से पता चला है कि मैदे से बनी रोटी सम्पूर्ण आटे से बनी रोटी के मुकाबले पौष्टिकता की दृष्टि से अच्छी नहीं होती।
आंख का आना, पेट के डायफ्राम (फेफड़े को ऊपर नीचे करने वाला) का ऊपर की ओर खिसक जाना जैसी बीमारियां चोकर के सेवन न करने की वजह से हो सकती हैं।
चोकर के महत्व का दूसरा मुख्य कारण उसमें उपलब्ध सेल्यूलोज युक्त रेशे, लिग्निन, पेन्टीसाइनस (सेमी-सेल्यूलोज) और पौष्टिक पदार्थ हैं। आटे को छान लेने से ये पदार्थ चोकर के साथ ही निकल जाते हैं। इन पदार्थों की कमी के कारण कब्ज, अम्ल (खट्टे डकार) आदि बीमारियां हो जाती हैं।
चोकर में पाया जाने वाला सेल्यूलोज मनुष्य की पाचन नली में पचता नहीं है परन्तु वह अन्य पचे हुए भोजन के पदार्थों को आगे की ओर ले जाने में सहायता करता है। इसी कारण चोकर खाने वाले व्यक्ति को कब्ज (जो सभी बीमारियां की जड़ है) जैसी बीमारी नहीं होती।
वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि इस प्रकार की बीमारियां सम्पन्न देशों में जहां चोकर रहित आटे से बनी डबल रोटी और अन्य रेशे रहित भोज्य पदार्थ खाए जाते हैं, अधिक पाई जाती हैं। इसके विपरीत अमेरिका, अफ्रीका एवं एशियाई देशों में जहां रेशेयुक्त भोजन का अधिक प्रयोग होता है, ये बीमारियां कम पायी जाती हैं। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि मनुष्य मैदे से बनी रोटी को खाना क्यों पसंद करता है?
आमतौर पर मैदे से बनी डबल रोटी देखने में सफेद एवं खाने में मुलायम होती है तथा उसे चाय या दूध के साथ भी बड़ी सुगमता से खाया जा सकता है। इसको इसी कारण से पसंद किया जाता है। चोकर के महत्व को देखते हुए अमेरिका की कुछ कंपनियों ने भी डबलरोटी बनाने के अपने तरीकों में ऐसा बदलाव किया है कि वह देखने में सफेद और खाने में मुलायम तो रहे ही, साथ ही साथ उसकी पौष्टिकता में भी कमी न आये। मैदे को गूंथने के बाद सांचों में डालने से पहले उसमें चोकर मिला दिया जाता है। ऐसा करने से डबल रोटी देखने में सफेद एवं उसमें भूरे रंग के चोकर के कण बिखरे दिखाई देते हैं और खाने में भी मुलायम होते हैं।
हैदराबाद के पोषण अनुसंधान केन्द्र के अनुसार चोकर में कुछ ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो जीन्स की संरचना पर प्रभाव डालते हैं। कोलोन के अति घातक कैंसर को रोकने में, मधुमेह जैसी महाव्याधि में व्यापक परिवर्तन लाने में तथा रक्त का कोलेस्ट्रोल कम करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका देखी गई है।
यह भी पाया गया है कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर इम्यूनोग्लोबुलीन्स की मात्रा रक्त में बढ़ाता है। ऐसी स्थिति में दमा, एलर्जी एवं एड्स जैसे रोगों में भी इसकी उपयोगिता को नहीं नकारा जा सकता। चोकर को आटे का निस्सार भाग मानकर फैंकने के बजाय यदि हम उसका उपयोग करना आरम्भ कर दें तो यह एक अमृतोपम औषधि की भूमिका निभा सकता है।