डेविस कप खेलने की उत्सुकता नहीं रही, यह किसी अन्य टूर्नामेंट की तरह हो गया है: बोपन्ना

लखनऊ,  अनुभवी टेनिस खिलाड़ी रोहन बोपन्ना देश के लिए खेलते समय दिग्गज लिएंडर पेस और महेश भूपति के साथ तालमेल बनाने के लिए अपनी शैली में बदलाव से पीछे नहीं हटे लेकिन उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि समय के साथ डेविस कप खेलने का उत्साह कम हो रहा है।



बोपन्ना को पिछली पीढ़ियों के खिलाड़ियों की तुलना में मौजूदा खिलाड़ी डेविस कप खेलने के प्रति उतने उत्साहित नहीं लगते।

रविवार को अपना आखिरी डेविस कप मुकाबला (मोरक्को के खिलाफ) खेलने की तैयारी कर रहे बोपन्ना ने कहा, ‘‘ यह मशीन की तरह हो गया है। आओ, खेलो और जाओ।’’



उन्होंने निराशा भरे लहजे में कहा कि मौजूदा दौर के खिलाड़ियों के लिए डेविस कप किसी अन्य टूर्नामेंट की तरह हो गया है’’



दूसरी तरफ, डेविस कप एक ऐसा टूर्नामेंट है जिसमें रैंकिंग मायने नहीं रखेगी। इसमें टेनिस में कमजोर माने जाने वाले देश भी कभी-कभी दिग्गजों को मात देने में सफल हो जाते हैं।



इस सफलता के लिए हालांकि टीम में एकता, योजना, वैकल्पिक खिलाड़ियों की मौजूदगी जरूरी है।



बोपन्ना ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘ पहले टीम में शानदार माहौल हुआ करता था, जो पिछले कुछ वर्षों से नहीं दिख रहा है। हमें इसे वापस लाने की जरूरत है।’’



उन्होंने कहा, ‘‘डेविस कप पूरी तरह से टीम में एक दूसरे को समझने, टीम के साथ समय बिताने, एक साथ रहने, हर किसी की एकजुटता के बारे में है। मुझे लगता है कि यह एक छोटी सी कड़ी है। एक सफल टीम बनाने के लिए हमें इसे वापस लाने की जरूरत है।’’



बोपन्ना ने 2002 में पदार्पण किया था लेकिन उन्हें भी नहीं पता कि टीम इस स्थिति तक कैसे पहुंची।



उन्होंने कहा, ‘‘ ऐसा होने का कोई खास कारण नहीं है। आप जानते है कि टूर (एटीपी) अलग तरह की प्रतियोगिता है और डेविस कप अलग है।’’



उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि टेनिस का खेल किसी नौकरी की तरह हो गया है। मैं सिर्फ डेविस कप की बात नहीं कर रहा हूं लेकिन आम तौर पर हर कोई आता है, मैच खेलता है, चला जाता है। खिलाड़ी लगभग 30 सप्ताह तक लगातार यात्रा करते हैं, उनके पास अपना खुद का कोच, अपना फिजियो और सब कुछ होता है।’’



उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं टीम में आया, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि किसके (खिलाड़ियों) क्या मतभेद हैं। ड्रेसिंग रूम में सब एकदूसरे का सम्मान करते थे। मुझे अब इन चीजों की कमी दिखती है।’’



उन्होंने कहा, ‘‘ मौजूदा दौर में हर कोई केवल इस बात पर ध्यान दे कर रहा है कि उन्हें (अपने लिए) क्या करने की ज़रूरत है। वास्तव में यह पता नहीं लगा रहा है कि टीम के लिए सबसे अच्छा परिदृश्य क्या है।’’



बोपन्ना ने अपने करियर में पेस और भूपति दोनों के साथ खेला है। डेविस कप का उनका अभियान रविवार को उनके 33वें मुकाबले के साथ समाप्त होगा।



पेस और भूपति के दमदार खेल के कारण बोपन्ना को भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा। वह डेविस कप में पेस के साथ जोड़ी बनाकर सात मैच तो वही भूपति के साथ जोड़ी बनाकर दो मैचों में खेले हैं।

बोपन्ना ने कहा कि इन दोनों दिग्गजों के खेलने का अनुभव काफी अलग था।



उन्होंने कहा, ‘‘मुझे इन दोनों खिलाड़ियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए अपने खेल में काफी बदलाव करना पड़ा। पेस के साथ मैच नेट के आस-पास खेलने पर ज्यादा ध्यान देता था तो वहीं भूपति के खिलाफ मुझे काफी ताकत का इस्तेमाल करना पड़ता था। हम दोनों करारे रिटर्न लगाने के लिए जाने जाते है। भूपति का सर्विस काफी तेज होता था।’’



उन्होंने कहा , ‘‘ जब आप विभिन्न संयोजन के साथ खेलते है तो आप लगातार सीखते रहते है कि मैं अपने साथ वाले खिलाड़ी के साथ कैसे तालमेल बिठा सकता हूं।’’



बोपन्ना ने हालांकि कहा कि आज के दौर में भी भारत के लिए खेलने से मना करना आसान नहीं है।



उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे नहीं लगता कि कोई देश के प्रतिनिधित्व के लिए मना करना चाहेगा लेकिन डेविस कप खेलने का उत्साह निश्चित तौर पर कम हुआ है। अब खिलाड़ी इसे किसी अन्य टूर्नामेंट की तरह लेते है। डेविस कप में पहले वाला माहौल नहीं रहा। मैं 43 साल की उम्र में भी यहां खेलने आया हूं क्योंकि इसने मेरी जिंदगी में बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई है।’’



डेविस कप के सबसे यादगार मैच के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 2010 में ब्राजील के खिलाफ जीत वह हमेशा याद रखेंगे।



बोपन्ना ने कहा,‘‘ चेन्नई में 2010 में ब्राजील के खिलाफ खेला गया मैच मेरे लिए काफी यादगार है। हम 0-2 से पिछड़ रहे थे और फिर लगातार तीन मैच जीतकर हमने लंबे समय के बार विश्व ग्रुप प्ले ऑफ के लिए क्वालीफाई किया था।’’