चीन की चेतावनी के बावजूद अमेरिका पहुंचे ताइवान के उप-राष्ट्रपति:बोले- अगर ताइवान सुरक्षित है तो पूरी दुनिया सुरक्षित है

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ताइवान के उप राष्ट्रपति विलयम लाई अमेरिका के दौरे पर हैं। इस पर चीन ने खासी नाराजगी जताई है। चीन ने उन्हें ट्रबलमेकर यानी मुसीबतें पैदा करने वाला कहा है। वहीं ताइवान ने चीन की इन धमकियों पर पलटवार किया है। उप राष्ट्रपति लाई ने कहा है कि ताइवान किसी भी धमकी से डरेगा नहीं और न ही पीछे हटेगा। चीन हमेशा से ही ताइवान के नेताओं के अमेरिका जाने पर आपत्ति जताता रहा है।

फिलहाल उप राष्ट्रपति लाई के अमेरिका दौरे को अलगाववादी कदम बताया है। चीन की इस दौरे पर नाराजगी जताने और धमकी देने की एक वजह ये भी है कि विलियम लाई अगले साल ताइवान में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में सबसे प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। ऐसे में चीन नहीं चाहता है कि वो अमेरिका से करीबी बढ़ाएं। लाई ने न्यूयॉर्क में अपने समर्थकों से बातचीत के दौरान कहा- अगर ताइवान सुरक्षित है तो पूरी दुनिया सुरक्षित है।

 

 

विलियम लाई को नापसंद करता है चीन
दरअसल, लाई पराग्वे की यात्रा पर जा रहे हैं। जहां वो राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे। पराग्वे उन 12 देशों में से एक है जिसने ताइवान को देश की मान्यता दी है। वहां जाने के दौरान ही लाई अमेरिका में रुके। लाई लगातार खुद को ताइवान को आजादी दिलाने के लिए काम करने वाले नेता के तौर पर पेश करते हैं। ऐसे में चीन उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करता है।

लाई के अमेरिका दौरे को ताइपे और वॉशिंगटन ने सामान्य बताते हुए चीन से ताइवान के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेने की मांग की है। इसके बावजूद ताइवान के अधिकारियों को लगता है कि चीन इसका बदला लेने के लिए मिलिट्री ड्रिल लॉन्च करेगा। पिछले साल 2022 में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन अमेरिका गई थीं। तब चीन ने ताइवान के इर्द-गिर्द हफ्ते भर तक मिलिट्री ड्रिल्स की थी।

 

चीन के साथ ओवरलैप होता है ताइवान का डिफेंस जोन
ताइवान का एयर डिफेंस जोन उसके एयरस्पेस से काफी बड़ा है और कई जगह पर यह चीन के एयर डिफेंस जोन पर ओवरलैप कर जाता है। इसके अलावा सिर्फ एयरस्पेस ही नहीं बल्कि कहीं-कहीं पर इसमें मेनलैंड भी शामिल है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ताइवान के डिफेंस जोन में चीन की बढ़ती दखलंदाजी उसकी ग्रे जोन रणनीति का हिस्सा है जिससे वह आइलैंड पर दबाव बनाए रखना चाहता है।

अमेरिका-चीन के रिश्तों में ताइवान सबसे बड़ा फ्लैश पॉइंट

  • अमेरिका ने 1979 में चीन के साथ रिश्ते बहाल किए और ताइवान के साथ अपने डिप्लोमैटिक रिश्ते तोड़ लिए। हालांकि चीन के एतराज के बावजूद अमेरिका ताइवान को हथियारों की सप्लाई करता रहा। अमेरिका भी दशकों से वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर अस्पष्ट नीति अपनाता है।
  • राष्ट्रपति जो बाइडेन फिलहाल इस पॉलिसी से बाहर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में उतरेगा। बाइडेन ने हथियारों की बिक्री जारी रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों का ताइवान से मेल-जोल बढ़ा दिया।
  • इसका असर ये हुआ कि चीन ने ताइवान के हवाई और जलीय क्षेत्र में अपनी घुसपैठ आक्रामक कर दी है। NYT में अमेरिकी विश्लेषकों के आधार पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सैन्य क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि ताइवान की रक्षा में अमेरिकी जीत की अब कोई गारंटी नहीं है। चीन के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका वहां सीमित जहाज ही भेज सकता है।
  • अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा कर लिया तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने लगेगा। इससे गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के मिलिट्री बेस को भी खतरा हो सकता है।

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