पुरुषोत्तम मास में श्रीकृष्ण पूजन का विधान है। इस पवित्र महीने में भगवान कृष्ण की पूजा और व्रत करने से महापुण्य मिलता है। जिससे जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। साथ ही जरुरतमंद लोगों को दान देने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है…
18 जुलाई से अधिक मास शुरू हो गया है जो कि 16 अगस्त तक रहेगा। तीन साल में एक बार आने वाले इस महीने के स्वामी भगवान विष्णु ही हैं। इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।
पद्म पुराण में इस बात का जिक्र है। इसी कारण ये महीना श्रीकृष्ण को समर्पित है। चातुर्मास के दरमियान होने से पूरे महीने व्रत और दान करते हुए श्रीकृष्ण की पूजा इस महीने में करने का विधान है।
पुरी के ज्योतिषाचार्य और धर्म ग्रंथों के जानकार डॉ. गणेश मिश्र कहते हैं कि ये श्रीकृष्ण का प्रिय महीना है। पद्म पुराण में लिखा है कि अधिक मास में व्रत-उपवास और भगवान कृष्ण का विशेष पूजन करने से अक्षय पुण्य मिलता है।
इस पुरुषोत्तम मास में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के मंदिरों में घी और तिल के तेल के दीपक लगाने चाहिए। दर्शन और पूजन करना चाहिए। साथ ही घर पर भी श्रीकृष्ण की विशेष पूजा और श्रंगार रोज किया जाना चाहिए।
पूजा में शंख से अभिषेक और तुलसी के साथ मक्खन-मिश्री का भोग लगाना चाहिए। घी का दीपक जलाएं। कृष्णाय गोविंदाय नम: मंत्र का जाप करते हुए पूजा करनी चाहिए।
ऐसे कर सकते हैं श्रीकृष्ण की पूजा
पुरुषोत्तम मास में रोज सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल डालकर नहाएं। इसके बाद उगते हुए सूरज को अर्घ्य दें। फिर सबसे पहले गणेश पूजन करें। इसके बाद श्रीकृष्ण की पूजा शुरू करें।
श्रीकृष्ण को स्नान कराएं। फिर शंख में कच्चा दूध भरकर अभिषेक करें। इसके बाद पंचामृत से नहालाएं। फिर शुद्ध जल से अभिषेक करें और भगवान का श्रंगार करें।
जनेऊ चढ़ाएं, चंदन लगाएं और अक्षत और फूल अर्पित करें। फूलों से श्रृंगार करें। हार-फूल, फल मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, पान, दक्षिणा और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं। तुलसी के पत्ते डालकर माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
कृष्णाय गोविंदाय नमो नम: मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें। आरती करें। आरती के बाद परिक्रमा करें। आखिरी में पूजा में हुई अनजानी भूल के लिए भगवान से क्षमा याचना करें। इसके बाद प्रसाद बांटें और और खुद भी ग्रहण करें।