भगवान गणेश को क्यों पसंद है दूर्वा घास?

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पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। नियम के अनुसार विधि-विधान के साथ भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है और पूजा में उन पर दूर्वा घास भी चढ़ाई जाती है। क्योंकि बिना दूर्वा या दूब घास के गणेश जी की पूजा पूरी नहीं होती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गणेश जी की पूजा में दूर्वा घास का क्या महत्व होता है और इसके बिना पूजा अधूरी क्यों होती है? आपको बता दें कि पूजा में गणेश जी को 21 बार 21 दूर्वा की गाठें अर्पित करी जाती हैं। माना जाता हैं कि इससे वह बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं। दूर्वा घास के बिना भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसके पीछे कई लोक कथा और पौराणिक कथा भी है कि भगवान गणेश को दूर्वा घास क्यों पसंद है?

राक्षस अनलासुर को निगल लिया था- कथा के अनुसार एक बार अनलासुर नाम का एक राक्षस था। वह राक्षस साधु-संतों को जिंदा ही निगल लेता था। जिसके प्रकोप से चारों तरफ हाहाकार मचा था। फिर सभी साधु-संतों ने मिलकर गणेश जी की प्रार्थना की और अनलासुर के बारे में बताया। गणेश जी अनलासुर के पास गए और उस राक्षस को ही निगल लिया। इसके बाद उनको परेशानी होने लगी और पेट में जलन होने लगी। तभी कश्यप ऋषि ने उस ताप को शांत करने के लिए गणेशजी को 21 दूर्वा घास खाने को दी थी। इससे गणेशजी का ताप शांत हो गया। इसके बाद से ही माना जाता है कि गणेशजी दूर्वा घास चढ़ाने से जल्द प्रसन्न होते हैं।

इस तरह गणेशजी की भूख हुई शांत – इसके अलावा गणेश पुराण में कथा यह भी बताया है कि नारद जी भगवान गणेश जी को जनक महाराज के अंहकार के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि वह स्वयं को तीनों लोकों के स्वामी बताते हैं। इसके बाद गणेश जी ब्राह्मण का वेश धारण कर मिथिला नरेश के पास उनका अंहकार चूर करने के लिए पहुंचे थे। तब गणेश जी जो ब्रह्माण के रूप में थे उन्होंने कहा कि वह राजा की महिमा सुनकर इस नगर में पहुंचे हैं और बहुत दिनों से भूखें हैं। तब जनक महाराज मिथिला नरेश ने अपने सेवादारों से ब्राह्मण(गणेश जी) देवता को भोजन कराने के लिए कहा। फिर गणेश जी पूरे नगर के अन्न खा गए थे लेकिन उनकी तब भी भूख शांत नहीं हुई। इस बात की जानकारी राजा को मिली और उसने अपने अंहकार के लिए गणेश जी से क्षमा मांगी।

तभी ब्राह्मण रूप में ही गणेश जी गरीब ब्राह्मण त्रिशिरस के घर के द्वार पर पहुंचते हैं। जहां उनको भोजन कराने से पहले ब्राह्मण त्रिशिरस की पत्‍नी विरोचना ने गणेश जी को दूर्वा घास दिया। जिसे खाते ही भूख शांत हो गई और वह पूरी तरह प्रसन्न हो गए थे। इसके बाद गणेश जी ने दोनों को मुक्ति का आशीर्वाद दिया। तब से गणेशजी को दूर्वा घास जरूर चढ़ाया जाता है।

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